इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) 2025
आश्विन मास, कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। साल 2025 में इंदिरा एकादशी बुधवार, सितम्बर 17, 2025 को पड़ रही है। इस एकादशी की विशेष मान्यता इसलिए भी है क्योंकि यह पितृ पक्ष के दौरान आती है। इंदिरा एकादशी व्रत को मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है और इस व्रत को रखने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। इस व्रत को सभी व्रतों में सबसे पावन और पवित्र माना गया है। मान्यता के अनुसार इस व्रत को विधिवत रूप से करने पर मनुष्य का परलोक सुधरता है, किसी कारणवश अगर उसके पितरों को मोक्ष नहीं मिला है, तो वह भी संभव हो जाता है। श्री हरी की कृपा से पितरों के पाप कर्म कट जाते हैं और पितृलोक में भुगत रहे यातनाओं से मुक्त हो जाते हैं।
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इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) तिथि व मुहूर्त
तिथि और समय | |
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एकादशी व्रत तिथि | बुधवार, 17 सितंबर 2025 |
पारण का समय | 18वाँ सितम्बर को 06:27 ए एम से 08:54 ए एम |
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त | 11:24 पी एम |
एकादशी तिथि प्रारंभ | सितम्बर 17, 2025 को 12:21 ए एम बजे |
एकादशी तिथि समाप्त | सितम्बर 17, 2025 को 11:39 पी एम बजे |
इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में महिष्मति नगर के राजा इंद्रसेन भगवान विष्णु का परम भक्त और प्रतापी राजा थे। उनके महिष्मति राज्य में सभी सुखपूर्वक रहते थे वहां की जनता को कोई कष्ट नहीं था। यदि कोई कष्ट या मुश्किल होती तो राजा इंद्रसेन उसका समाधान अतिशीघ्र निकाल देते थे। एक दिन जब राजा अपने मंत्रियों के साथ दरबार में बैठकर चर्चा कर रहे थे, तभी देवर्षि नारद मुनि उनके दरबार में उपस्थित हुए। राजा ने उन्हें प्रणाम करते हुए सम्मान सहित उन्हें बिठाया और आने का कारण जानना चाहा।
तब देवर्षि नारद, नारयण – नारयण का जाप करते हुए, उन्हें कहा कि – हे राजन! आपके महिष्मति राज्य में सभी लोग सुखपूर्वक और बिना कष्ट के जीवन व्यतीत कर रहे हैं। लेकिन आपके पिता पूर्व जन्म में किसी गलती के कारण वश उन्हें यमलोक में निवास करने के लिए विवश हैं। यही संदेश देकर आपके पिताजी ने मुझे यहां भेजा है ताकि मैं आपको पूरा वृतांत सुना सकूँ। यह सुनते ही राजा इन्द्रसेन व्याकुल हो गए और उन्होंने देवर्षि नारद जी से पूछा की उन्होंने और क्या संदेश भेजा है? मुनि ने उन्हें बताया कि आपको आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत विधि पूर्वक करने के लिए उन्होंने कहा है ताकि उनके पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाएं और वह बैकुण्ठधाम की और प्रस्थान कर सकें।
राजा इन्द्रसेन ने एकादशी के व्रत को करने की विधि नारद जी से पूछे, इस पर नारद जी ने बताया कि इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) से ठीक एक दिन पहले दशमी तिथि को नदी में स्नान कर पितरों का श्राद्ध करें। एकादशी को भगवान श्री विष्णु की पूजा करके फलाहार करें। इस व्रत को करने पर आपके साथ – साथ आपके पिता को भी पुण्य लाभ मिलेगा। इसके बाद राजा इन्द्रसेन अपने भाइयों और दासों के साथ इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) का विधिपूर्वक व्रत किया।
जिसके फलस्वरूप उनके पिता को मुक्ति मिली और वह गरुण पर सवार होकर विष्णु लोक चले गए और जब राजा इंद्रसेन की मृत्यु हुई, तो एकादशी व्रत के पुण्य लाभ के कारण उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।
इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) का महत्व
इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) का व्रत पितरों की मुक्ति और उनकी आत्मा की शांति की कामना से किया जाता हैं। इस व्रत को रखने से श्री हरी विष्णु जीवों को मुक्ति दिलाते हैं। इस दिन भगवान की आराधना, पूजा अर्चना और व्रत से व्रत धारी को वासुदेव का का आर्शीवाद प्राप्त होता है और उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। इस व्रत को करने से मनुष्य को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, और साथ में पितरों का भी उद्धार हो जाता है। इस दिन व्रत और पूजन के साथ विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से मनुष्य को दोनों ही लोक में सुख की प्राप्ति होती है।
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इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) की व्रत विधि
- इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) के दिन दैनिक कार्यों से मुक्त होकर सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें।
- एक चौकी लें. उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।
- कुमकुम से कपड़े पर स्वास्तिक बनाएं।
- भगवान गणेश को प्रणाम कर “ओम गणेशाय नमः” का जप करते हुए स्वास्तिक पर फूल और चावल चढ़ाएं।
- शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल पर शालिग्राम या भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें।
- गंगाजल से नहलाकर रोली, चंदन, अक्षत, धूप, दीप, मिठाई आदि अर्पित करें।
- दीपक जलाकर, पीले फूलों की माला अर्पित करें।
- तुलसी का पत्ता जरूर चढ़ाएं।
- पूजा अर्चना करें।
- विष्णु जी के सहस्त्र नामों का पाठ करें।
- आरती करने के बाद भगवान को भोग लगाएं।
- शाम की आरती करके तुलसी जी के सामने दीपक जरूर जलाएं।
- इंदिरा एकादशी व्रत की कथा सुनें।
- उसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें।
- अंत में पितरों को यमलोक से मुक्ति और बैकुंठ धाम गमन के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना करें।
- पितरों द्वारा किये गए गलत कर्मों की क्षमा याचना मांगें।
- पितरों के नाम से श्राद्ध करके ब्राह्मणो को भोजन करवाएं और दक्षिणा दें।
- द्वादशी के दिन निर्धारित समय में पारण करें।
- दिन में फलाहार और रात्रि में जागरण करें।
इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) की पारण विधि
पारण का अर्थ है व्रत तोड़ना। द्वादशी तिथि समाप्त होने के भीतर ही पारण करें। द्वादशी में पारण न करना अपराध के समान है। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासरा के खत्म होने का इंतजार करें, हरि वासरा के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचें। व्रत तोड़ने का समय प्रात:काल है। किसी कारणवश प्रात:काल के दौरान व्रत नहीं तोड़ पाते हैं तो मध्याह्न के बाद व्रत ख़तम करें।