नवरात्रि के आठवें दिन पूजा होती है मां महागौरी की
मां महागौरी की कथा
नवरात्रि हिंदू धर्म का बहुत ही पवित्र त्यौहार है। यह 9 रात और 10 दिनों के लिए मनाया जाता है। भले ही देश के उत्तरी और पश्चिमी हिस्से में इसे दशहरे के रूप में मनाया जाता हो, लेकिन भारत के पूर्वी राज्यों में दुर्गा पूजा के रूप में भी जाना जाता है।
नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। जिसमें नवरात्रि का पहला दिन दिन मां शैलपुत्री से शुरू होता है, और उसके बाद मां चंद्रघंटा, मां कुष्मांडा, मां कात्यायनी और मां दुर्गा के अन्य अवतारों की पूजा की जाती है।
नवरात्रि के आठवें दिन नवदुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती है। जिसे एक अशुभ ग्रह भी माना जाता है।
बैल पर बैठने के कारण इनको वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। मां महागौरी की चार भुजाएँ बताई गई है। जिनमें उन्होंने एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में डमरू, तीसरा हाथ अभय मुद्रा में और चौथा हाथ में वरद मुद्रा बनाये हुए है।
मां महागौरी की पूजा: शक्ति का आठवां अवतार
नवरात्रि का आठवां दिन मां महागौरी की पूजा को समर्पित है। जिसमें ‘महा’ शब्द का अर्थ असाधारण है, और गौरी शब्द का अर्थ है-शानदार। महागौरी का अर्थ है वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, जिसमें प्रकाश चमकता है।
माँ गौरी बहुत ही दयालु है। अपने भक्तों की सभी जरूरतों को हमेशा पूरा करती है। ऐसा माना जाता है जो भी इनकी पूजा अर्चना करते हैं, वो उनके सभी दुःख दर्द को हर लेती है। नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा करके अपने सभी कष्टों और चुनौतियों को दूर करें। शुभ मुहूर्त जानने के लिए करें अभी हमारे एक्सपर्ट्स से बात।
मां महागौरी की कथा और उत्पत्ति
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव देवी सती के निधन के कारण बहुत दुखी थे। वे बहुत ही गहन समाधि में चले गए। सब देवतायों ने उनसे अपनी समाधि तोड़ने की बहुत प्राथना की। लेकिन भगवान शिव ने समाधि से बाहर आने से इनकार कर दिया और कई वर्षों तक अपनी समाधि में बैठे रहे।
इसी बीच, तारकासुर नाम का एक राक्षस स्वर्ग में अशांति पैदा कर रहा था। तब देवताओं ने मां दुर्गा की पूजा की और उनसे राक्षस को हराने का उपाय पूछा। तब देवी दुर्गा ने कहा की जब देवी सती का दूसरा जन्म होगा। वो भगवान शिव को उनकी समाधि से बाहर लेकर आएगी। उसके बाद उनका शिव से विवाह होगा, फिर उनकी संतान ही इस राक्षस का वध करेंगी। देवताओं की प्रार्थना के बाद, देवी सती ने हिमालय की बेटी मां शैलपुत्री के रूप में पुनर्जन्म लिया। उन्हें मां पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। एक दिन, नारद ऋषि मां पार्वती के महल में पहुंचे और उन्हें अपने पिछले जन्म के बारे में सब याद दिलाया।
तब नारद मुनि ने उनको बताया की भगवान शिव को पाने के लिए उन्हें कठिन तपस्या करनी होगी, ताकि भगवान शिव को उसके पिछले जीवन के बारे में पता चल सके। माँ पार्वती ने भी सहमति व्यक्त की और अपने शाही निवास की सभी सुख-सुविधाओं को त्याग दिया। वह एक जंगल में गई। वहा पर तपस्या करते हुए कई हजारों साल बीत गए, लेकिन मां पार्वती ने हार नहीं मानी। उन्होंने ठंड, मूसलाधार बारिश और तूफान सभी मौसम में लगातार तपस्या करती रही। कुछ समय बाद उन्होंने अन्न और जल भी त्याग दिया।
जिसकी वजह से उनका शरीर बहुत ही कमजोर हो गया। अत्यधिक तपस्या के कारण, माँ पार्वती ने अपनी सारी शक्तियां खो दीं। अंत में, भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए, उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से यह भी जान लिया की वे देवी सती का ही पुनर्जन्म है। सब कुछ जानने के बाद भगवान शिव और पार्वती से शादी करने को तैयार हो गये। चूंकि माँ पार्वती अधिक तपस्या की वजह से बहुत ही दुर्बल हो गई थी। इसलिए भगवान शिव ने उनका श्रृंगार किया। भगवान शिव ने अपने बालों से गंगा के पवित्र जल से माँ पार्वती नहलाया। इस पवित्र जल ने माँ पार्वती के शरीर से सभी अशुद्धियों को धो दिया, और वह अपनी शक्ति और तेज को दोबारा पा लेती है। माँ दुर्गा के इसी रूप को महागौरी के नाम से जाना जाता है।
क्या आप पार्टनर के साथ एक आदर्श मैच के इच्छुक हैं? राशि चक्र अनुकूलता विश्लेषण
नवरात्रि का आठवां दिन: शक्ति और प्रतिभा का प्रतीक
अपने असाधारण तेज के कारण, माँ पार्वती को महागौरी के नाम से भी जाना जाने लगा। महागौरी सफेद कपड़े पहनती है, सफेद रंग के बैल की सवारी करती है, और उनकी चार भुजाएँ हैं। वह अपने प्रत्येक हाथ में एक त्रिशूल, कमल और डमरू रखती है। उनका चौथा हाथ अपने भक्तों को हमेशा आशीर्वाद देता है। माँ महागौरी हर जीव की रक्षा करती है। वे आपकी आराध्य देवी भी हो सकती है, जो अपने भक्तों की हमेशा देखभाल करती है, और उनकी परेशानियों को भी दूर करती है।
मां महागौरी का वाहन
महागौरी का वाहन बैल है। उन्हें हमेशा एक बैल पर सवार दिखाया जाता है। बैल पर सवार होने की वजह से इनको वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है।
महागौरी मंत्र
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
महागौरी स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां महागौरी बीज मंत्र
श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
मां महागौरी की पूजा का महत्व
ऐसा माना जाता है कि महागौरी की पूजा करने से आपके जीवन से सभी दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं। इनकी पूजा करने से अशुभ राहु के प्रभाव भी दूर होते है। नवरात्रि में महा अष्टमी ऐसा दिन माना जाता है, जब भक्तों को अपने जीवन से सभी कष्टों को दूर करने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
निष्कर्ष
दुर्गा अष्टमी पर मां महागौरी को पूजा में सफेद फूल, विशेष रूप से चमेली के फूल चढ़ाना चाहिए, और ऊपर दिए गये मन्त्रों का पाठ करना चाहिए। इस शुभ दिन पर कन्या पूजन का नियम भी होता है। इस दिन कन्यायों की पूजा की जाती है, फिर उनको खीर- पुड़ी खिलाई जाती है। बाद में उनकी पसंद की कोई वस्तु भी उन्हें भेंट की जाती है।
अपने राशिफल के बारे में जानना चाहते है? अभी किसी ज्योतिषी से बात करें!