अद्वैत वेदान्त (Advaita Vedanta) का अर्थ और महत्व
हम आपको एक ऐसी अवधारणा के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने आम में बहुत ही अनोखी है। एक ऐसी अवधारणा जिसके बारे में बताते हुए हम बहुत ही उत्साहित महसूस कर रहे हैं। यहां हम बात कर रहे हैं अद्वैत वेदांत दर्शन की। यह दर्शन अपने आप में बहुत ही खास है। इस लेख में हम आपको अद्वैत वेदांत दर्शन की परिभाषा के अतिरिक्त भी बहुत सारी बातें बताने जा रहे हैं।
अद्वैत का अर्थ और उसके बारे में सामान्य जानकारी
अद्वैत वेदांत एक भारतीय विचारधारा और धार्मिक परंपरा है, यह विचारधारा करीब तीन हजार साल से ज्यादा पुरानी है। संस्कृत शब्द है अद्वैत, इस शब्द का अर्थ है ‘दो नहींÓ, इस शब्द से इस शब्द के बारे में बहुत कुछ समझा जा सकता है। अद्वैत शब्द के अनुसार मोक्ष या स्वतंत्रता (जिसे मुक्ति, ब्रह्मांडीय चेतना या विवेक के रूप में भी जाना जाता है) किसी के जीवन में हासिल किया जा सकता है। अद्वैत के विचार को सामने लाने वाले प्रभावी व्यक्ति थे आदि शंकर वेदांत। वे काफी प्रभावशाली व्यक्ति थे। आदि शंकर वेदांत 800 ईस्वी के समय मौजूद थे।
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अर्थ और दर्शन
व्यक्तिगत अधिकार
स्वतंत्रता और अद्वैत के बीच क्या संबंध हैं। इनका आपस में क्या आशय है, ये एक दूसरे से कैसे जुड़े हुए हैं। क्या यह मृत्यु, भ्रम, अभाव, दुष्टता और इस वैश्विक समुदाय से मुक्ति के बारे में बताता है?
अद्वैत में स्वतंत्रता का आशय एक सामान्य विचार है, सामान्य व्याख्या है, जो विश्वास करने का अवसर प्रदान करती है। बताया गया है कि हम में से प्रत्येक के दो जीवन हैं। हम दो जीवन जीते हैं। पहली जीवन वह होता है जिसके बारे में हम सोचते हैं, हम जी नहीं पाते हैं। दूसरा जीवन वह होता है जो हम वास्तव में जी रहे होते हैं। जीवन जीने की यह उच्च स्तरीय राह ही अद्वैत दर्शन है। जब हम जीवन के छोटे उद्देश्यों से दूर होकर दो नहीं एक ही की राह पकड़ लेते हैं तो यह अद्वैत दर्शन होता है। जब हम पर मौजूद छवि या छाप हल्की होने लगती है, धुंधली हो जाती है। इसके बाद हमारी त्वरित प्रतिक्रिया जिस प्रकार हमारी सोच को प्रदर्शित करती है, वह अद्वैत दर्शन को परिलक्षित करती है।
स्वतंत्रता की प्राप्ति
सबसे असली बात यह है कि आप व्यक्तिगत स्वतंत्रता तक किस तरह पहुंच सकते हैं। दरअसल आप अपने जीवन में निर्धारित किए लक्ष्यों को सही दिशा में चलकर प्राप्त कर लेते हैं। यही लक्ष्य प्राप्त करना और सही दिशा में बढ़ते रहने के लिए आप अपनी प्रकृति में कई तरह के बदलाव लेकर आते हैं। इसी के जरिए आप व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त करते हैं। आप विभिन्न परिस्थितियों के हिसाब से अपने आपको बदलने और सही कार्य करने की क्षमता हासिल करके इस स्वतंत्रता के भाव को पा सकते हैं।
इसके अलावा एक और तरीका है, जिसके द्वारा इस आत्म स्वतंत्रता को पाया जा सकता है। दरअसल इसके लिए रोजमर्रा के जीवन में ध्यान लगाकर, इसका प्रयास करके प्राप्त किया जा सकता है। ध्यान के दौरान आपके मन में गलत तरीके के विचार नहीं आएंगे, वे मन में आने से पहले ही धुंधले हो जाएंगे, ये बुरे विचार आपकी बुरी सोच का नतीजा होते हैं। ध्यान के दौरान मौन उत्पन्न होगा, जो आपको बहुत ही अच्छा और परिचित सा लगने लगेगा। आप के अंदर से भावनाएं गायब होने के बावजूद लोग आपसे जुडऩे लगेंगे। जब आप नियमित तौर पर ध्यान और योग करेंगे तो लोग आपको समझने लगेंगे। आपकी गतिविधियों से जुडऩे लगेंगे। यह प्रयास आपकी चिंताओं को गायब करने में मदद करेगा, आप अपने आप को समझने मदद मिलती देखेंगे। सुखद महसूस करेंगे।
इसके साथ ही एक अन्य दृष्टिकोण भी होता है, यह दृष्टिकोण है सांसारिक जगत के अपने पर पड़ रहे प्रतिबिंबों को कम करना। उनमें सुधार लाने के लिए प्राकृतिक वातावरण में घंटों बिताना और सुधार लाना। एक विचार अपने आप में खास है। समुद्र अपने आप चलता है, झीलें बहती है, ये अपने आप को बनाए रखती हैं। ऐसे में इन प्राकृतिक पलों का आनंद लें। सिर पर कपड़ा बांधे और जंगल के बीच पहुंच जाएं। वहां मौजूद खुशनुमा पलों का आनंद लें। यह आपके लिए सही परिणाम देने वाला साबित होगा।
सौभाग्य से प्राकृतिक दुनिया या यूं कहें तो प्रकृति के बीच में हमारा मन और मस्तिष्क सबसे बेहतर तरीके से काम करता है। बागवानी, व्यायाम, खेल, संगीत, बुनाई और अन्य शौक आपको परफेक्शन देते हैं, यह आपको अपने कार्य में निरंतरता लाने के लिए सही प्रेरित करते हैं। ऐसे में जो लोग इनका पालन करते हैं, केवल वहीं हैं जो इस राज को जानते हैं कि उनके जीवन में यह संतुलन किस कारण से आ रहा है। उनका जीवन क्यों बदल रहा है। इसके पीछे छिपा राज क्या है।
अद्वैत वेदांत को लेकर इसके प्रस्तावक आदि शंकर ने यह कहते हुए प्रतिक्रिया दी
वह केवल हमारा मस्तिष्क ही है जो अंतर्ज्ञान प्राप्त करने के बाद, उसका विस्तार होने के बाद हमें स्वतंत्रता की सही दृष्टि को समझने लायक बना सकता है। यह ज्ञान किसी दूसरी की आंखों से देखकर हासिल नहीं किया जा सकता है। हम अपनी आंतरिक आंखों से किसी भी चीज के विभिन्न पहलुओं के बारे में देख सकता है, सोच सकते हैं। हम इसके बारे में दूसरे लोगों की नजर या नजरिए से देखकर कैसे पहचान सकते हैं, कैसे जान सकते हैं कि लोग हमारी स्वतंत्रता की अवधारणा को किस तरह महसूस करते हैं।
इस तरह अद्वैत या दो नहीं एक ही की अवधारणा को जानने के लिए प्रश्न पूछकर, जागरूकता लाकर या सजह होकर ही मुक्ति नहीं पाई जा सकती है। ये वाक्य या ये शब्द हमारा पीछा तब तक नहीं छोड़ेंगे जब तक हम स्वतंत्रता के सही मायने नहीं तलाश लेते हैँ। तब तक हमारे लिए यह एक चुनौती बने रहेंगे।
शंकराचार्य के अनुसार स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए विचारों के बहिष्कार को समझाना या उनके बारे में अपनी राय स्पष्ट करने में असमर्थता महसूस करना आवश्यक हो जाता है।
वह कोई भी जो स्वतंत्रता चाहता है, वह अपने हृदय के पवित्र स्थान में उस पर ध्यान देना सीखेगा। उसे अपने मन की शुद्धता और पवित्रता को संभालकर रखना होगा। यह बात, यह विचार बुद्धि के लिए समझ से परे हो सकता है। यह दिमाग के नियंत्रण से बाहर है। जरूरी नहीं कि यह बात दिमाग सोच सके। यह कुछ ऐसा है जिसे व्यक्त नहीं किया जा सकता है। यह केवल महसूस किया जा सकता है। इसे लेकर आम तौर पर यही निष्कर्ष हासिल किए जा सकते हैं कि अद्वैत की मुक्ति या स्वतंत्रता भावों द्वारा प्राप्त की जा सकती है। इसका यह निष्कर्ष निकलता है कि ब्रह्मांड की मूल उत्पत्ति, अपने व्यक्तित्व की वास्तविकता, दुनिया के साथ एकता और नींद को सामना करने जैसी कई रोचक व आकर्षक बातों के बारे में यह बताता है।
कई बार कुछ व्यक्ति धीरे-धीरे हो रही भावनाओं की कमी को पहचानते हैं। इसके अलावा उनके जीवन में कुछ भी नया बताने लायक नहीं होता है। यहां कुछ भी घोषित तौर पर नहीं होता है,जैसा सामने होता है, वैसा ही सब कुछ प्रतीत होता है। बस यह कहा जा सकता है कि इसका ज्ञान होने के बाद जीवन अधिक सुखद हो सकता है।
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अद्वैत वेदांत का उपदेश
अद्वैत वास्तव में स्वयं और ब्रह्मांड के एक होने से जुड़े विचार का दार्शनिक सार है। यह एक दार्शनिक विचार है जो हमें अच्छी तरह से जीने और हमारे विकास को अधिकतम करने के लिए एक तर्कसंगत रास्ता दिखाता है। यहां न्याय के प्रभावों को अद्वैत भक्ति आंदोलन के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा अनुशासन को अध्यात्म योग या चेतना की यात्रा के रूप में जाना जाता है।
हर किसी इंसान की आंतरिक अवचेतन आत्मा जब पूरी तरह से समझ में आने लगती है। गैर दोहरी समझ या अद्वैत विचारधारा के मुताबिक सभी प्राणियों का व्यक्तित्व ब्रह्म से अलग नहीं होता है। यह एक सार होते हैं। वास्तविक स्व या आत्मबोध हमें दीर्घकालिक सद्भव, भावनात्मक समृद्धि, साधन संपन्नता और उपलब्धि के साथ पुरस्कृत करता है।
दुनिया का अधिकांश विविधताएं अद्वैत की भावना और प्रकाश के तहत एक सर्वव्यापी सोच के भीतर रहती हैं, पलती बढ़ती है। इस एकता के सार को समझना सभी चीजों की उत्पत्ति को समझने जैसा ही है। इसके परिणाम स्वरूप अभ्यास आंतरिक गुणों और कौशल को बढ़ाता है, मन में मौजूद गुण जैसे दृढ़ता, करुणा, रणनीतिक तर्क और संवेदनशीलता के विकास के साथ शुरू होता है। इन्हीं गुणों के साथ विकास आगे बढ़ता है।
शांति सदन में इससे जुड़े खास निर्देश व्यक्ति के व्यक्तित्व की प्राकृतिक स्थिति, वास्तविक स्वरूप, सुलभता के साथ एक सार बने रहते हैं। यह सब एक पारंपरिक गैर-द्वैत कोर स्वरूप के परिचायक होते हैं। इन शब्दों की व्याख्याओं को व्यवहार में लाने के लिए खर्च किया गया धन या संसाधन कभी नष्ट नहीं होते हैं, वे जीवन के अंतिम उद्देश्य यानी आत्मा चेतना को प्राप्त करने में बड़ा योगदान देते हैं।
वास्तव में अद्वैत क्या है?
अद्वैत एक विचारधारा, एक राष्ट्रीय पहचान और नैतिकता की भावना प्रतीत होती है। सिद्धांत के अनुसार वस्तुनिष्ठ सत्य है। यह वास्तव में बांटा नहीं जा सकता है। इसकी परिधि इसकी सीमाएं तय नहीं हैं असीमित हैं, शानदार हैं। यह पूरी तरह से सत्य नहीं है। इसकी अवधारणा अपने स्वयं के अस्तित्व से जुड़ी है। इसके लक्ष्य को आम तौर पर मोक्ष के रूप में जाना जाता है। यहां नैतिकता का आशय है इस तरह से कार्य कि आत्मा जो कुछ भी देखती है, महसूस करती है, वह सत्य के रूप में सामने आए, अद्वैत के रूप में सत्य बन सके।
अद्वैत का वास्तिवक अर्थ क्या है?
संस्कृत शब्द अद्वैत का अर्थ है अद्वैत। अद्वैत शब्द के अनुसार जब अस्तित्व को एक निश्चित दृष्टिकोण के मुताबिक ही माना जाए। उसे अलग अलग स्वरूप न मानकर एक स्वरूप ही माना जाता है। यहां जीवन की श्रेष्ठता उसके सही उपचार और सही निदान में मानी जाती है, कहा जाता है जीवन का एक स्पष्ट नजरिया होता है, दृष्टिकोण होता है, वो है अद्वैत।
क्या अद्वैत को धर्म माना जाता है?
अद्वैत विचार धारा की ओर से यह दावा किया जाता है कि वास्तव में अद्वैत एक सत्य है, ऐसा सत्य जिसे प्राथमिक रूप से निर्धारित किया जा सकता है। ऐसा करने के लिए आपको सहायता और सलाह की आवश्यकता होगी, इन तर्कों व सलाह को आपको तथ्यों पर आधारित रखना चाहिए।
अद्वैत वेदांत ध्यान
ध्यान अभ्यास जो अद्वैत नहीं होता
नियमित रूप से अद्वैत अंतर्दृष्टि से ध्यान हमारे अपने अस्तित्व के गैर-दोहरे सिद्धांतों की वैधता की पुष्टि करने के सबसे महत्वपूर्ण तरीकों में से एक है।
ध्यान का अभ्यास
मन और मस्तिष्क को लेकर ध्यान या मेडिटेशन के बाद अद्वैत या गैर-दोहरी ध्यान प्रथाओं को शुरू करने या चलाने के लिए प्रशिक्षण सत्र एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। यहां एक सलाह यह भी है कि आप एक दिन पूर्व निर्धारित अवधि में नियमित आधार पर विश्राम करें। दैनिक ध्यान के अभ्यास के लिए लय पाने में और उसे कायम रख पाने के बारे में अधिक जानकारी पाई जा सकती है। मेडिटेशन से गतिविधियों की एक गाइड का सहारा भी लिया जासकता है। यह ध्यान के मामले में फायदेमंद साबित हो सकता है।
समापन
यदि आपने किसी के जीवन के प्रति अज्ञानता वाला भाव विकसित कर लिया है, कोई गलत सोच विकसित कर ली है। ऐसे गलत विचारों या भावों के बीच आप पाएंगे कि जब एक बार चिंताओं को बाहर कर दिया जाता है तो वह पल हमेशा हमेशा के लिए हमारे साथ बना रहता है।
हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि अद्वैत वेदांत का अर्थ कितना महान है। इसके अलावा, आप अद्वैत वेदांत की शिक्षाओं को हल्के में नहीं ले सकते। इन सिद्धांतों को प्रभावहीन नहीं मान सकते हैं।