दूर्वा अष्टमी 2025: शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व
भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को दूर्वा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि दूर्वा अष्टमी पर दूर्वा (दूब) की पूजा करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और परिवार में सुख, समृद्धि तथा शांति का आगमन होता है। इस वर्ष दूर्वा अष्टमी का पर्व रविवार, 31 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। दूर्वा अष्टमी पर राहु दोष को दूर करने के लिए दूब की पूजा जरूर करना चाहिए। यदि आपकी कुंडली में राहु दोष है, या राहु की महादशा चल रही है, तो आपको राहु की शांति के लिए दूब पूजा और राहु ग्रह की शांति जरूर करवाना चाहिए। इससे आपको मानसिक शांति मिलती है और आपके सभी कार्य बनने लगते हैं।
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दूर्वा अष्टमी शुभ मुहूर्त 2025
इस बार दूर्वा अष्टमी का पर्व रविवार, 31 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:
अष्टमी तिथि प्रारम्भ | रविवार, 31 अगस्त 2025 |
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पूर्वविद्या समय | 06:22 ए एम से 06:58 पी एम |
अवधि | 12 घण्टे 36 मिनट्स |
अष्टमी तिथि प्रारंभ | अगस्त 30, 2025 को 10:46 पी एम बजे |
अष्टमी तिथि समाप्त | सितम्बर 01, 2025 को 12:57 ए एम बजे |
दूर्वा अष्टमी के व्रत का महत्व
विभिन्न हिंदू कर्मकांडों तथा अनुष्ठानों में दूर्वा का प्रयोग किया जाता है। मां आद्यशक्ति भगवती तथा गजानन गणपति की पूजा करते समय दूर्वा अर्थात् दूब अनिवार्य रूप से अर्पित की जाती है। गणेश जी को यह अतिप्रिय है, दूर्वा के बिना उनकी पूजा अधूरी ही मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय अमृत से भरे कलश से अमृत की कुछ बूंदे दूर्वा पर भी गिर गई। इस कारण भी दूर्वा को पवित्र माना जाता है। अत: जो कोई भी इस दिन व्रत रखकर दूर्वा की पूजा करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं तथा उन पर दैवीय आशीर्वाद बना रहता है।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान गणेश राक्षसों के साथ युद्ध कर रहे थे। युद्ध में राक्षसों की मृत्यु नहीं हो पा रही थी, तब उन्हें समाप्त करने के लिए गणेश जी ने उन्हें निगल लिया। ऐसा करते ही गणेश जी के शरीर में भीषण गर्मी उत्पन्न हो गई, उनके पेट और शरीर का ताप असहनीय हो गया। तब देवताओं ने उन्हें हरी दूब अर्पित की। दूर्वा ने उनके शरीर का ताप कम करके उन्हें शीतलता प्रदान की। यही कारण है कि गणेश जी को दूर्वा अत्यन्त प्रिय है तथा इसे अर्पित किए बिना गणपति की पूजा अधूरी ही रहती है।
दूर्वा अष्टमी का व्रत एवं पूजा विधि
यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन सुबह जल्दी ही स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहन कर व्रत का संकल्प करें। घर के पूजास्थल में स्थापित सभी देवताओं को फल, फूल, माला, चावल, धूप, दीपक आदि अर्पित कर उनकी पंचोपचार पूजा करें। सबसे अंत में भगवान शिव की पूजा कर गणेश जी को दूर्वा चढ़ाएं एवं उन्हें तिल तथा मीठे आटे से बनी रोटी का भोग लगाएं। पूजा के बाद यथाशक्ति दान आदि करें और जरूरतमंदों को भोजन कराएं।
गणेश जी की पूजा अवश्य करें
दूर्वा अष्टमी के पर्व पर गणेश जी की विधिवत पूजा कर उन्हें दूब अर्पित करनी चाहिए। इसके बाद गणेश गायत्री मंत्र का कम से कम 108 बार जप कर उनसे अपने संकट दूर करने की प्रार्थना करें। इस प्रकार गणेश जी का अनुष्ठान करने से आपके जीवन में आने वाली सभी समस्याएं तुरंत ही नष्ट हो जाएंगी। गणेश गायत्री मंत्र इस प्रकार है
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात