जानें फाल्गुन पूर्णिमा 2025 का महत्व

जानें फाल्गुन पूर्णिमा 2025 का महत्व

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा दिवस या पूर्णिमा को अत्यधिक शुभ और भाग्यशाली दिन माना जाता है। यह पूरे देश में पूनम, पूर्णिमा और पूर्णमासी जैसे विभिन्न नामों से मनाया जाता है। भक्त आमतौर पर इस विशेष दिन उपवास रखते हैं और चंद्रमा और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

फाल्गुन पूर्णिमा क्या है?

हिन्दू पंचाग में फाल्गुन माह सबसे आखिरी माना जाता है। उसी प्रकार फाल्गुन पूर्णिमा साल की अंतिम तिथि होती है, जो शुक्ल पक्ष मे मनाई जाती है व आखिरी दिन भी। होलिका दहन भी इसी दिन किया जाता है जो हिन्दुओं के बड़े त्योहारों में से एक है। कहा जाता है कि वसंत ऋतु और पूर्णिमा का इस दिन संयोग होता है। वसंत ऋतु का आगमन भी इसी दिन से होता है। इसलिये इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह पर्व धार्मिक रूप से बहुत महत्व रखता है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपना प्रभाव विशेष रखता है। यह दिन बहुत सौभाग्यशाली भी माना जाता है।

फाल्गुन पूर्णिमा 2025 में कब है?

फाल्गुन पूर्णिमाबृहस्पतिवार, मार्च 13, 2025
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भमार्च 13, 2025 को 01:05 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्तमार्च 14, 2025 को 02:53 ए एम बजे

फाल्गुन पूर्णिमा का क्या महत्व है?

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा को अंतिम पूर्णिमा माना जाता है, जिस दिन होली का त्योहार मनाया जाता है। इस विशेष दिन पर, विभिन्न स्थानों पर, लोग लक्ष्मी जयंती भी मनाते हैं, जो कि बहुतायत और धन की देवी लक्ष्मी की जयंती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जो लोग फाल्गुन पूर्णिमा का व्रत रखते हैं और इस दिन भगवान विष्णु और भगवान चंद्रमा की पूजा करते हैं, उन्हें देवता का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही उन्हें अपने वर्तमान और पिछले पापों से भी छुटकारा मिलता है।

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फाल्गुनी पूर्णिमा व्रत करने की विधि

  • इस व्रत को करने के लिये सुबह जल्दी उठकर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। 
  • व्रत करने वाले व्यक्ति को अन्न नहीं खाना चाहिए। 
  • सुबह सूर्य उदय से लेकर चंद्रोदय तक उपवास रखें। 
  • उसके पश्चात उपवास खोलें।  
  • व्रत वाले दिन किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस ना पहुचाएं, मन सकारात्मक रखें।

इस महत्वपूर्ण दिवस पर भगवान विष्णु की पूजा कराने से सारे संकट दूर हो जाते हैं…

फाल्गुन पूर्णिमा पूजा विधि

फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा की जाती है, जो भगवान विष्णु का चौथा अवतार माना जाता है। इसके अलावा लक्ष्मी जी की पूजा भी साथ में करना चाहिए।

  • सुबह उठ कर सबसे पहले साफ पनि से स्नान कर लें।
  • स्नान करने के पश्चात साफ वस्त्र पहनकर सही दिशा चुनकर पूजन करना चाहिए।

फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका पूजा

  • उपलों व लकड़ियों को एकत्रित करें। 
  • होलिका दहन से पहले होलिका की पूजा करने के लिए एक थाली में कुमकुम, चावल, हल्दी, मेहंदी, गुलाल, रोली, नारियल, मुट्ठी भर गेहू, लच्छा सूत और लौठा भरकर सजाकर ले जाएं। 
  • इसे होलिका माता को चढ़ाएं। 
  • इसके अलावा पुष्प और माला चढ़ाएं। 
  • भगवान नरसिंह जी का ध्यान करें।  
  • पूजा सम्पन्न होने के बाद आरती करें और होलिका के चारों ओर परिक्रमा करें।  
  • घर के छोटे बच्चों को भी परिक्रमा करवाएं, बड़ों से आशीर्वाद लें।

फाल्गुन पूर्णिमा श्लोक

फाल्गुने पौर्णमायान्तु होलिका पूजनं स्मृतम्।

पंचयं सर्वकाष्ठानाँ पालालानान्च कारयेत्॥

श्लोक का अर्थ – नारद पुराण के इस श्लोक के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को सूर्यास्त होने पर प्रदोष काल में घर के चौड़े आँगन, किसी चौराहे या किसी निश्चित स्थान पर गोबर से लिपी-पुती भूमि पर सूखी लकड़ी, गोबर के कंडे, घास-फूस आदि इकट्ठा करना चाहिए और उसे जलाकर होलिका का विधिवत पूजन करना चाहिए।

फाल्गुन पूर्णिमा कथा

लाखों वर्ष पुरानी बात है इसका वर्णन विष्णु पुराण में विस्तार से किया गया है। बहोत समय पहले की बात है सतयुग में राक्क्षस राज्य हिरनकश्यप नामक राक्क्षस राजा की हुआ करता था । जिसने आतंक और भय से  सम्पूर्ण पृथ्वी लोक का जीना मुश्किल कर दिया था। हिरनकश्यप ने घोर तपस्या कर भगवान् ब्रम्हा से वरदान लिया था, कि वह न रात में मरे ना  दिन में, ना उसे नर मार पाए न नारी, ना पशु मार पाए ना पक्षी, ना देवता मार पाए ना राक्षस ना कोई, अस्त्र ना ही कोई शस्त्र कोई भी उसकी मृत्यु न कर पाए, जब भगवान् ब्रम्हा ने उसे वरदान दे दिया, तो वह अपने आप को शक्तिशाली समझने और उसने सम्पूर्ण राज्य में घोषणा कर दी की अब भगवान् श्री विष्णु नहीं उसकी पूजा होगी।

और जो भी उसकी पूजा नहीं करेगा वह मृत्यु का भागीदार बनेगा।  मृत्यु से बचने के लिये के भय से सब लोग उसकी पूजा करने लगे, लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रहलाद भगवान् श्री विष्णु का भक्त था। उसने अपने पिता की पूजा करने से माना कर दिया। जिससे नाराज होकर हिरण्य कश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई सारे प्रयत्न किए, लेकिन भगवान् विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर बार बच जाते थे।

हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को मारने के लिए कई उपाय किए कभी प्रहलाद को मारने के लिए सापों के तयखाने में बंद किया, तो कभी हाथी के पैरो से कुचलवाने का प्रयास किया। जब वह असफल रहा, तो उसने अपने सैनिको को प्रह्लाद को पर्वत से नीचे फेकने को आदेश दिया। इसके बावजूद प्रह्लाद श्री हरी विष्णु की कृपा से बच गये । 

भगवान् श्री विष्णु ने स्वयं प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर बचा लिया। भक्त प्रहलाद को पर्वत से धक्का देने के कारण वर्तमान में यह पर्वत को डिकोली पर्वत के नाम से जाना जाता है। कई प्रयास करने के बावजूद जब हिरण्य कश्यप प्रहलाद को मारने में असफल रहा, तो हिरण्य कश्यप ने होलिका से कहा कि बहन तुम्हें वरदान है कि आग में नहीं जल सकती, तो तुम प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाओ । 

जिससे प्रहलाद आग में जलकर मर जायेगा। फिर लकड़ियों का एक ढेर बनाया गया, होलिका प्रहलाद को लेकर लकड़ी के ढेर पर बैठ गयी और ढेर में आग लगा दी गई। लेकिन एक बार फिर भगवान विष्णु की कृपा प्रह्लाद पर रही और प्रहलाद बच गए और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका आग में जल गयी।

तब से होलीका दहन किया जाने लगा। जब प्रह्लाद तब भी नहीं मरे और हिरण्य कश्यप ने प्रह्लाद को मारने की कोशिश तभी भगवान् श्री विष्णु ने नरसिंह का अवतार ले लिया, जो की सिंह और नर का अवतार था। और अपने नाखुनो से हिरण्य कश्यप का वध कर दिया।

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