गंगा सप्तमी क्यों मनाई जाती है, इसका महत्व
हमारे देश भारत में गंगा नदी का बहुत प्रमुख स्थान है। वह जीवनदायिनी के रूप में भी जानी जाती है, जीवन को फिर से संवार देने वाली और पापों को मिटा देने वाली पापनाशिनी। गंगा सप्तमी हिंदू त्योहार है, जिसे गंगा नदी के पुनर्जन्म की याद में मनाया जाता है। इस दिन को जह्नु सप्तमी और गंगा पूजन के रूप में भी जाना जाता है।
वैशाख महीने में बढ़ते हुए चंद्रमा के 7वें दिन को गंगा सप्तमी का शुभ दिन आता है। इस दिन विभिन्न स्थानों पर, जहां से गंगा नदी गुजरती है, गंगा नदी की पूजा की जाती है। हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थानों जैसे उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी संगम और उत्तराखंड के ऋषिकेश में गंगा सप्तमी का बहुत महत्व है। देश के उत्तरी भाग में लगभग सभी जगहों पर गंगा सप्तमी को भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है। गंगा सप्तमी के पीछे एक रोमांचक कहानी है, हिंदी में लोग इसे गंगा सप्तमी की कथा कहते हैं।
गंगा सप्तमी 2025 तिथि और मुहूर्त समय
इस वर्ष 2025 में, गंगा सप्तमी शनिवार, 3 मई 2025 को पड़ रही है।
महीना: वैशाख (पूर्णिमांत और अमंता दोनों)
मुहूर्त का समय:
गंगा सप्तमी मध्याह्न मुहूर्त – 11:04 से 13:34 तक
अवधि – 02 घंटे 29 मिनट
- सप्तमी तिथि आरंभ – 03 मई 2025 को 07:51 बजे से
- सप्तमी तिथि समाप्त – 04 मई 2025 को 07:18 बजे
गंगा सप्तमी की कथा
हिंदू पौराणिक कथाएं देवी-देवताओं और अन्य बैकुंठ के पात्रों से जुड़ी रोमांचक कहानियों से भरी हुई हैं। गंगा नदी हिंदू पौराणिक कथाओं में भी प्रमुख स्थान रखती है। पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण और नारद पुराण में गंगा का कई जगह उल्लेख है। ये पुराण कहानी और गंगा सप्तमी के महत्व के बारे में बात करते हैं, जिसे गंगा सप्तमी की कथा के रूप में भी जाना जाता है।
हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों के अनुसार गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थी। जब वह पृथ्वी पर आई, उस दिन को गंगा दशहरा के नाम से भी जाना जाता है। गंगा नदी पूरी ताकत से बह रही थी और धरती पर आते समय राह में आने वाली हर चीज को कुचल रही थी। गंगा का पानी ऋषि जह्नु के आश्रम में पहुंच गया। वे आश्रम की ओर बढ़ते गंगा के भयानक जल को देखकर आगबबूला हो गए। फिर उन्होंने गुस्से में नदी का पूरा पानी पी लिया।
बाद में, गंगा सप्तमी की कथा के मुताबिक संत बने राजा भागीरथ के अनुरोध पर ऋषि जह्नु ने गंगा को छोड़ा। राजा भागीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाना चाहते थे। इस दिन को जह्नु सप्तमी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह दिन वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष सप्तमी को पड़ता है। ऋषि ने तब गंगा को अपनी पुत्री माना था। उन्होंने गंगा को फिर से नया जन्म दिया और इसलिए गंगा को एक और नाम जाह्नवी मिला।
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गंगा का ज्योतिष महत्व
गंगा सप्तमी की कथा का ज्योतिष के साथ भी संबंध है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र बताता है कि गंगा सप्तमी के दिन गंगा की पूजा करना अत्यधिक लाभदायक है। यदि किसी व्यक्ति को मंगल दोष है, तो गंगा सप्तमी पर गंगा पूजन उसके जीवन में मंगल के प्रभाव को कम करने में मदद करता है। इस दिन नदी में स्नान करने से भी लोगों को अपने पिछले बुरे कर्मों से छुटकारा मिलता है।
गंगा सप्तमी पूरे अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों के साथ उन जगहों पर मनाई जाती है, जहां गंगा बहती है और वहां भी जहां उसकी सहायक नदियां बहती हैं। गंगा नदी में गोता लगाना भी मोक्ष या मुक्ति तक पहुंचने का एक आसान मार्ग है। गंगा नदी के घाट पितरों के लिए, अंतिम संस्कार के लिए आदर्श स्थान है। इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
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गंगा सप्तमी महोत्सव की पूजा विधान
गंगा सप्तमी की कथा के अनुसार पूजा विधान इस प्रकार है-
- भक्त सुबह जल्दी उठते हैं, सूर्य उदय होने से पहले और पवित्र गंगा नदी में स्नान करता है।
- अपने मन और शरीर को शुद्ध करना बहुत महत्वपूर्ण है। इस प्रकार गंगा सप्तमी पर पूजा विधान शुरू करने के लिए गंगा में एक डुबकी की आवश्यकता होती है।
- लोग फूल चढ़ाते हैं और दूसरों के साथ गंगा आरती करते हैं।
- मनुष्यों को ताजा जल उपलब्ध करवा कर नवजीवन देने वाली मां गंगा के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनकी आरती की जाती है।
- बहुत सारे भक्त एक साथ गंगा नदी की आरती उतारते हैं, गंगा नदी के सभी घाट इसके गवाही देते हैं।
- आरती का समापन भक्तों के बीच दीपक ले जाकर किया जाता है, ताकि हर कोई गंगा नदी का आशीर्वाद ले सके।
- दीपक के साथ फूल भी होते हैं, जिन्हें बाद में नदी में प्रवाहित किया जाता है।
- पूजा विधि गंगा नदी के तट पर पवित्र मेलों को आयोजित करके भी की जाती है।
- भक्त जरूरतमंद लोगों को दान देते हैं।
गंगा सप्तमी पर पूजा विधान का इष्टतम लाभ प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका गंगा सहस्रनाम, गंगा नदी के हजार नामों, का जाप करना है।
गंगा को हिंदू धर्म में देवी की उपाधि से सम्मानित किया जाता है। गंगा सप्तमी का दिन गंगा नदी को समर्पित है। जो उसकी परम भक्ति करता है और जल में स्नान करता है वह मोक्ष या मुक्ति के मार्ग पर पहुंच जाता है। गंगा नदी सभी को समृद्धि और संपन्नता प्रदान करती है।