क्यों है मंगला गौरी व्रत महत्वपूर्ण, जाने 2025 की तिथि, व्रत विधि

क्यों है मंगला गौरी व्रत महत्वपूर्ण, जाने 2025 की तिथि, व्रत विधि

श्रावण का मास शिवशक्ति को समर्पित है। कहा जाता है की माता पार्वती ने शिव को पाने के लिए असंख्य व्रत किये थे, जिनमें से यह भी एक है। मंगलवार के दिन किए जाने से इसका नाम मंगला गौरी व्रत पड़ा। मंगला गौरी व्रत को भगवान शिव और पार्वती को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा के लिए और कुंआरी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत करती है। जुलाई 15, 2025, मंगलवार से शुरू होने वाला मंगला गौरी व्रत 05 अगस्त चलेगा।

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मंगला गौरी व्रत कब है

मंगला गौरी व्रत श्रावण मास के हर मंगलवार को किया जाता है। इस साल सावन जुलाई 11, 2025, शुक्रवार
से शुरू होगा। इसके साथ ही श्रावण में हर मंगलवार या मंगला गौरी व्रत इन तारीखों पर हैं-

पहला मंगला गौरी व्रत – जुलाई 15, 2025, मंगलवार

द्वितीय मंगला गौरी व्रत – जुलाई 22, 2025, मंगलवार

तृतीय मंगला गौरी व्रत – जुलाई 29, 2025, मंगलवार

चतुर्थ मंगला गौरी व्रत – अगस्त 5, 2025, मंगलवार

श्रावण समाप्त – अगस्त 8, 2025, शुक्रवार


मंगला गौरी व्रत कथा

प्राचीन काल में एक नगर में धर्मपाल नामक एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसके घर में धन-धान्य व संपदा की कोई कमी नहीं थी और उसकी पत्नी बहुत भी सुशील व गुणवंती थी। उनके जीवन में किसी तरह के सुख की कोई कमी नहीं थी, सिवाय एक सुख के। धर्मपाल की कोई संतान नहीं थी और अपने जीवन की इस कमी को पूरा करने के लिए वह अपनी पत्नी के साथ मिलकर खूब व्रत-अनुष्ठान और दान पुण्य करता था। उसके सद्कर्म को देखकर भगवान की उस पर कृपा हुई और उसे संतान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन उसकी खुशी तब क्षीण पड़ गई जब पुत्र के जन्म के बाद ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी की कि यह बालक अल्पायु है और अपने जीवन के सोलहवें साल में सर्पदंश की वजह से इसकी मृत्यु हो जाएगी।

अपने पुत्र के ऐसे जीवनचक्र को सुनकर धर्मपाल व्यथित हो उठे और उन्होंने ईश्वर के ऊपर सब चिंता छोड़कर अपने पुत्र का विवाह एक सुन्दर-सुशील नया से करवा दिया। सौभाग्य से उस कन्या की माता मंगला गौरी व्रत का पालन करती थी जिससे उस कन्या को अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त था। इसी व्रत के प्रभावस्वरूप धर्मपाल के पुत्र को दीर्घायु प्राप्त हुई और उसने एक खुशहाल जीवन व्यतीत किया।


मंगला गौरी व्रत पूजन सामग्री और विधि

मंगला गौरी व्रत सामग्री

फल, फूलमाला, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लोंग, जीरा, धनिया (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए), साडी सहित सोलह श्रंगार की 16 वस्तुएं, 16 चूड़ियां, पांच प्रकार के सूखे मेवे (16-16) सात प्रकार के धान्य।

मंगला गौरी व्रत 2025 पूजन विधि

व्रत का आरंभ करने वाली महिलाओं को श्रावण मास के प्रथम मंगलवार के दिन इन व्रतों का संकल्प सहित प्रारम्भ करना चाहिए। श्रावण मास के प्रथम मंगलवार की सुबह, स्नान आदि से निवृत होने के बाद, मंगला गौरी की मूर्ति या फोटो को लाल रंग के कपडे से लपेट कर, लकड़ी के पाट पर रखा जाता है। इस पर चावल से नौ ग्रह बनाते हैं तथा पाट पर बिछे लाल कपड़े पर गेहूँ से षोडश (सोलह) माता बनाते हैं। पाट के एक तरफ चावल व फूल रखकर कलश स्थापित करते हैं। कलश में जल रखते हैं।

इसके बाद गेहूं के आटे से एक दीया बनाया जाता है, इस दीये में 16-16 तार कि चार बातियां बनाकर जलाई जाती है. सर्वप्रथम श्री गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान, चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढ़ाते हैं. इसके पश्चात कलश का पूजन भी श्री गणेश जी की पूजा के समान ही किया जाता है. फिर नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा की जाती है. चढाई गई सभी सामग्री किसी गरीब व्यक्ति को दी जानी चाहिए।

मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान कराकर, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी व काजल लगाते हैं। श्रृंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं। सोलह प्रकार के फूल-पत्ते माला आदि चढ़ाते है, फिर मेवे, सुपारी, लौंग, मेंहदी, चूडियां चढ़ाते है। अंत में मंगला गौरी व्रत की कथा सुनी जाती हैं. कथा सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को सोलह लड्डु दान देती हैं और इस व्रत में एक समय अन्न खाने का विधान है। इसके बाद यही प्रसाद ब्राह्मण को भी दिया जाता है. अंतिम व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विर्सिजित कर दिया जाता हैं. इस व्रत को लगातार पांच वर्षों तक किया जाता हैं. इसके पश्चात इस व्रत का उद्यापन किया जाता है।

मंगलागौरी व्रत उद्यापन विधि

श्रावण माह के मंगलवारों का व्रत करने के बाद इसका उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन में खाना वर्जित होता है। मेहंदी लगाकर पूजा करनी चाहिए। पूजा चार विद्वानों से करानी चाहिए। एक पाट के चार कोनों पर केले के चार खम्ब लगाकर मण्डप पर एक ओढ़नी बांधनी चाहिए। कलश पर कटोरी रखकर उसमें मंगलागौरी की स्थापना करनी चाहिए। उस पर साड़ी, नथ व सुहाग की सभी वस्तुएँ रखनी चाहिए। हवन के उपरान्त कथा सुनकर आरती करनी चाहिए। चाँदी के बर्तन में आटे के सोलह लड्डू, रुपया व साड़ी सासू माँ को देकर उनके पैर छूने चाहिए। पूजा कराने वाले विद्वानों को भी भोजन कराकर उन्हें उपहार देना चाहिए। मंगला गौरी व्रत 2025 में पूरे विधि- विधान से पूजन करने से स्त्रियों की संतान सुख और अखंड सौभाग्य की मनोकामना पूर्ण होगी।


समापन

मंगला गौरी व्रत रिश्तों की शक्ति को प्रदर्शित करता है, जहां महिलाओं के हाथों में एक शक्तिशाली तंत्र है जो अपने पतियों को जाने अनजाने खतरों से बचाती हैं।

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