फाल्गुन अमावस्या 2025: व्रत तिथि, शुभ समय, पूजा विधि और महत्व

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष मे जो अंतिम तिथि पड़ती है, उसे फाल्गुन अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन पितरों को तर्पण देते हैं जिससे पितृ दोष की मुक्ति मिल सकें। साथ ही इसके लिए पवित्र नदी में स्नान करते है तथा दान व्रत पुण्य आदि भी किया जाता है। 

माना जाता है कि फाल्गुन अमावस्या के दिन देवी-देवता पवित्र नदियों के आसपास ही अपना निवास स्थान बनाते हैं। इसलिए लोग पवित्र नदियों मे डुबकी लगाते है। गंगा, जमुना ,सरस्वती इन तीनों नदियों मे स्नान का विशेष महत्व माना गया है, अगर फाल्गुन अमावस्या सोमवार के दिन आती है। इस दिन महा कुंभ स्नान का योग बनता है तो यह अनंत गुना फलदाई होता है। इस माह में भगवान शिव और श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है, इसलिए इस माह का और भी ज्यादा महत्व बढ़ जाता है ।

भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करवाएं…

2025 में फाल्गुन अमावस्या कब है?

फाल्गुन अमावस्याफरवरी 27, 2025, बृहस्पतिवार
अमावस्या आरम्भप्रारम्भ - 10:24 पी एम, फरवरी 26
अमावस्या समाप्तसमाप्त - 07:44 पी एम, फरवरी 27

फाल्गुन अमवास्या महत्व

धार्मिक मान्यता है की फाल्गुन अमावस्या के दिन नदियों में देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए माना जाता है कि अगर आप पवित्र नदी के तट पर खासकर के गंगा नदी में स्नान करते है, तो आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही पितृ को भी मोक्ष मिलता है। शास्त्रों में अनंत फलदायी अमावस्या गंगा स्नान को माना गया है। यह सारे दुख दरिद्रता से मुक्ति और कार्यों में सफलता दिलाती है। माना जाता है कि अमावस्या के दिन देवताओं का निवास संगम तट पर होता है। वैसे इस दिन प्रयाग संगम पर स्नान करने का भी विशेष महत्व है।

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फाल्गुन अमावस्या की पूजा कैसे करें?

फाल्गुन अमावस्या पूजन सामग्री

फाल्गुन अमावस्या के लिए पूजन सामग्री इस प्रकार से हैं:-

गौ मूत्र, गंगा जल, सफेद कपड़ा, गेहूं, चावल, सफेद पुष्प, सुपारी, लच्छा, दान करने के लिये वस्त्र, फल, पांच मेवा, काले तिल, जौ, हवन सामग्री, धूप दीप, अगरबत्ती आदि।

फाल्गुन अमावस्या व्रत पूजा विधि

फाल्गुन अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी या किसी तालाब मे स्नान करें। अगर आपके आसपास कोई जलाशय न हो तो आप किसी भी साफ जल से स्नान कर सकते हैं, या फिर पानी में गंगाजल डाल कर स्नान कर सकते हैं। उसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दे। पूरे दिन उपवास रखें और शाम को उपवास खोले। 

अपने पूरे घर में गौ मूत्र का छिड़काव करें। उसके बाद पूरे परिवार के साथ पवित्र तट पर पितृ का तर्पण करें। आप किसी ब्राहमण को भी भोजन करवा सकते हैं। पूजा होने के बाद आहुति दें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और, अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों को स्मरण करें। पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा लगाएं। इस दिन गौ दान का बहुत महत्व है। गौ दान अगर संभव ना हो तो आप गाय को चारा खिला सकते हैं।

पितरों की पूजा

इस पितरों की मुक्ति के लिए पूजा की जाती हैं, उनका आशीर्वाद बना रहे इसलिए पितरों की आरती और पितर पाठ इस प्रकार कर सकते हैं।

श्री पितर जी की आरती

जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी।

शरण पड़यो हूँ थारी बाबा, शरण पड़यो हूँ थारी।।

आप ही रक्षक आप ही दाता, आप ही खेवनहारे।

मैं मूरख हूँ कछु नहिं जाणूं, आप ही हो रखवारे।। जय…।।

आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी, करने मेरी रखवारी।

हम सब जन हैं शरण आपकी, है ये अरज गुजारी।। जय…।।

देश और परदेश सब जगह, आप ही करो सहाई।

काम पड़े पर नाम आपको, लगे बहुत सुखदाई।। जय…।।

भक्त सभी हैं शरण आपकी, अपने सहित परिवार।

रक्षा करो आप ही सबकी, रटूँ मैं बारम्बार।। जय…।।

पितृ सूक्त पाठ

उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः। 

असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।

तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।

तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥

त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।

तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥

त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।

वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥

त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।

बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।

तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥

आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।

बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।

तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥

आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।

अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।

अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।

तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥

अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।

ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।

मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।

पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥

फाल्गुन अमवास्या व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है। दुर्वासा ऋषि इन्द्र देव तथा सभी देवताओं से क्रोधित थे और क्रोध में आकर इंद्र देव और सभी देवताओं को उन्होंने श्राप दे दिया था। जब दुर्वासा ऋषि ने देवताओं को श्राप दिया तो उसके प्रभाव से सभी देवता कमजोर हो गए थे। जिसका फायदा सबसे ज्यादा असुरों को हुआ। असुरों ने मौके का फायदा देखकर देवताओं पर आक्रमण कर दिया और उन्हें परास्त करने मे भी वे सफल रहे । उसके पश्चात सभी देवता गण भगवान श्री हरी विष्णु के पास गए। भगवान श्री विष्णु को महर्षि द्वारा दिए गये श्राप और देवताओं द्वारा किये गये हमले व पराजय के बारे में बताया। तभी भगवान श्री हरी विष्णु ने सभी देवाताओं को सलाह दी की वह सभी दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करें। समुद्र मंथन करने के लिए सभी देवताओ ने असुरों से बात की और उन्हें इसके लिए मनाया। जिससे असुर मान गए देवताओं के साथ संधि कर ली। 

अमृत को प्राप्त करने की लालच में समुद्र मंथन करने लगे। जब अमृत निकलता है तब इंद्र का पुत्र जिसका नाम जयंत था, वह अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ जाता है। जिसके बाद दैत्य जयंत का पीछा करते है और सारे दैत्य अमृत प्राप्त कर कर लेते है। इसके बाद अमृत पाने के को लेकर देवताओं और दानवों में बारह दिन तक घमासान युद्ध होता है। इस संघर्ष के दौरान प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में कलश से अमृत की कुछ बूंदे गिरती है। उस समय चंद्रमा, सूर्य, गुरु, शनि ने कलश की रक्षा की थी। इस कलह को ज्यादा  बढ़ते देख  भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी का रूप ले लिया और असुरों का ध्यान भटकाकर देवताओं को छल से अमृत पिला दिया। तभी से अमावस्या के दिन इन जगहों पर स्नान करना ही अत्यधिक शुभ माना जाता है।

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