दीपावली को लेकर प्रचलित 6 कथाएं


भारत 33 कोटी देवी-देवताओं वाला एकमात्र देश है। यहां हर देवी-देवता एक तरह के त्योहार से जुड़े हुए हैं। पूरे भारत में दिवाली सहित एक साल में 260 से अधिक त्योहार मनाए जाते हैं। दिवाली सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है, जो पूरे भारत में मनाया जाता है। यह सभी हिंदू त्योहारों में सबसे बड़ा और सबसे रोमांचक त्योहार है।

दिवाली को ‘रोशनी का त्योहार’ माना जाता है। इसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पद्धति के अनुसार, यह शरद ऋतु के समय फसल कटाई के दौरान पड़ता है, और यह विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित है। प्राचीन कैलेंडर के अनुसार, दिवाली हर साल कार्तिक महीने के 15 वें दिन अमावस्या को मनाया जाता है। यह अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर के महीने में आता है। सोमवार, 20 अक्टूबर 2025


दिवाली क्यों मनाई जाती है?

दिवाली मनाने के पीछे अलग-अलग कारण हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारण यह होता है कि इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। सबसे प्रसिद्ध किंवदंती के अनुसार, उत्तर भारत के लोग इस दिन को उस अवसर के रूप में मनाते हैं, जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता, भाई लक्ष्मण और हनुमान के साथ राक्षस रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे। भगवान राम अमावस्या के दिन अयोध्या लौटे थे। इस दिन लोग मिट्टी के दीए जलाकर खुशियां मनाते हैं।

दूसरी ओर, दक्षिण भारतीय इस अवसर को उस दिन के रूप में मनाते हैं जब भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर को हराया था।

इसके अलावा, यह माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी शादी के बंधन में बंधे थे। वैकल्पिक किंवदंतियों का यह भी दावा है कि देवी लक्ष्मी का जन्म कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन हुआ था।

आइए इस प्रकाशोत्सव के पीछे की सबसे प्रसिद्ध किंवदंतियों के बारे में जानते हैं।


देवी लक्ष्मी का अवतार

देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से अवतरित हुई थी। समुद्र मंथन कार्तिक माह की अमावस्या को किया गया था। इसी से देवी लक्ष्मी उतपन्न हुई थी। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या यानि दीपावली के दिन राक्षसों और देवताओं द्वारा समुद्र मंथन किया गया था, जिसमें से देवी लक्ष्मी निकली थी। राक्षसों और देवताओं द्वारा यह प्रयास अमृत प्राप्त करने के लिए किया गया था।

यही कारण है कि दीवाली, देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित है, क्योंकि इस दिन को उनके अवतरण दिवस के रूप में माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर आकर अपने भक्तों को अतुलनीय धन का आशीर्वाद देती हैं। इसलिए दीपावली के दिन हर घर में दीपक जलाए जाते हैं, ताकि देवी आसानी से अपना रास्ता खोज सकें। साथ ही बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए आतिशबाजी की जाती है।

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भगवान विष्णु ने लक्ष्मी की रक्षा की थी

कहा जाता है कि अपने पांचवें वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बाली से देवी लक्ष्मी की रक्षा की थी। बताया जाता है कि बाली एक प्रसिद्ध राजा था, लेकिन अति-महत्वाकांक्षी था। उसने एक बार देवी लक्ष्मी को बंदी बना लिया था। जिसके बाद भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर देवी लक्ष्मी को बचाया था। दीपावली और उसके आसपास के दिनों में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने के पीछे एक कारण यह भी है।


पांडवों की वापसी

दीपावली की एक और कथा महाभारत में मिलती है। पांच पांडव, अर्थात् – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव, ने कौरवों के साथ पासा (जुआ) खेला था, जिसमें वह अपना सबकुछ हार गए थे। जब उनके पास दाव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा, तो उनको 12 साल का अज्ञात वनवास दे दिया गया। इन 12 सालों में पांडवों ने कठिनाई भरा समय व्यतित किया। इसके बाद कहा जाता है कि कार्तिक की अमावस्या के दिन ही पांडव हस्तिनापुर लौट आए थे। पांडवों के लौटने की खुशी में लोगों ने पूरे राज्य में मिठाइयां बांटी और मिट्टी के दिए जलाए। प्रजा ने उनका धूमधाम से स्वागत किया। उस दिन के बाद से ही मिट्टी के दीए जलाकर इस दिन को दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा।

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भगवान राम की विजय

दीपावली से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण कथा भगवान राम की हैं। पवित्र ग्रंथ रामायण के अनुसार इस दिन भगवान राम अपनी पत्नी सीता, भाई लक्षमण और हनुमान जी के साथ अयोध्या लौटे थे। वह अपना 14 साल का वनवास पूरा कर चुके थे। राम को अपनी सौतेली मां को दिए गए अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए वनवास की सजा सुनाई गई थी। आज्ञाकारी पुत्र होने के नाते भगनाव राम ने अपनी पत्नी सीता और भाई लक्षमण के साथ अयोध्या का राज्य छोड़ दिया था। इन 14 सालों के दौरान, वे बहुत कठिनाई और संघर्ष के साथ जंगल में रहे। साथ ही रावण के अहंकार को चकनाचूर करते हुए, उसे परास्त किया।

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14 साल बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे, तो वह अमावस्या का दिन था। अयोध्या के लोगों ने अपने प्रिय राजकुमार राम के स्वागत के लिए पूरे राज्य को मिट्टी के दीयों की रोशनी से जगमगाया। उसी दिन से अब तक चली आ रही इस परंपरा को आज हम दीपावली के रूप में मनाते हैं।


राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक

बताया जाता है कि दीपावली का त्योहार पहले हर जगह नहीं मनाया जाता था। लेकिन, महान हिंदू राजा विक्रमादित्य के शासनकाल के दौरान मनाया जाने लगा। इस दिन राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक किया गया था। जिससे प्रजा में उत्साह का माहौल था। अपने नए राजा के स्वागत में लोगों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया। इस दिन के बाद से ही कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा जारी है।

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सामान्य प्रश्न

1.दिवाली में किस भगवान की पूजा की जाती है?

दीपावली के दिन धन की देवी लक्ष्मी और विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

2.दिवाली के महत्वपूर्ण प्रतीक क्या हैं?

मिट्टी के दीये, रंगोली, गणेश, कमल का फूल, बिंदी / पोट्टू, ओम् और गोपुर दिवाली के कुछ महत्वपूर्ण प्रतीक हैं।

3. क्या मुसलमान दिवाली मनाते हैं?

समकालीन भारत में, ये परंपराएं मुसलमानों द्वारा दीवाली के समन्वित उत्सव के रूप में जीवित हैं।



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