परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi)

भाद्रपद, शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) या पद्म एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस साल 2025 में यह शुभ तिथि बुधवार, 3 सितंबर, 2025 को पड़ी है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु चातुर्मास में शयन के दौरान करवट लेते हैं। इस एकादशी को धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। वहीं कुछ जगहों पर परिवर्तिनी एकादशी को भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है।

परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) का व्रत और पूजन करने पर सुख-शांति मिलती है, सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और जीवन में नया उजाला आता है। इस व्रत को करने से लंबे समय तक जीवन में शुभ योग बना रहता है और आत्मा को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। जो इस दिन कमलनयन भगवान के वामन रूप का कमल से पूजन करते हैं, वो ईश्वर के समीप जाते हैं और तीनो लोकों के देवताओं का पूजन स्वतः ही हो जाता है।

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परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) तिथि व मुहूर्त

तिथि व मुहूर्त

तिथि और समय
एकादशी व्रत तिथिबुधवार, 3 सितंबर, 2025
पारण का समय 4 सितंबर को 01:54 पी एम से 04:24 पी एम
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त10:18 ए एम
एकादशी तिथि प्रारंभसितम्बर 03, 2025 को 03:53 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्तसितम्बर 04, 2025 को 04:21 ए एम बजे

परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) व्रत की कथा

त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह विभिन्न प्रकार के वेद श्लोकों से पूजा करके, ब्राह्मणों का पूजन किया करता था। वह ऋषि मुनियों को यथोचित सम्मान देता और नित्य यज्ञ का आयोजन करता था। परन्तु, इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक और इंद्रलोक के देवताओं को भी जीत लिया था।

इस कारण सभी देवता एकत्र होकर गुरु बृहस्पति सहित श्री हरी के पास पहुंचे। वहां पर उन्होंने भगवान विष्णु को नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा उनकी पूजा और स्तुति की। भगवान विष्णु ने करवट ली और आंखें खोली। सभी देवताओं को आशीर्वाद देते हुए उनके आने का कारण पुछा। देवताओं की अर्जी सुन कर विष्णु जी ने देवताओं का उद्धार करने के लिए, वामन रूप लेकर राजा बलि के पास पहुंच गए।

राजा बलि ऋषियों के साथ यज्ञ कर रहे थे, वामन ऋषि को आते देख बलि ने उनका नाम और उनसे आने का कारण पूछा। तब रूपधारी ब्रह्मचारी वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा कि हे राजन आपको यह 3 पग भूमि अवश्य देनी होगी। राजा बलि ने कहा की यह तो बहुत कम है, ब्रह्मचारी आप कुछ और मांग लें या इससे ज्यादा मांगे। लेकिन श्री हरी अपने याचना पर अडिग रहे, जिसके फलस्वरूप राजा बलि उन्हें 3 पग भूमि देने के लिए तैयार हो गए।

उसके बाद वामन जी ने अपना अकार बड़ा कर लिया और एक पग में पृथ्वीलोक और दूसरे पग में स्वर्गलोक को नाप लिया। तत्पश्चात बलि से उन्होंने कहा कि तीसरा पग कहा रखूं? इसके बाद राजा बलि समझ गए कि यह वामन कोई और नहीं विष्णु हैं जो मेरी परीक्षा ले रहे हैं। तब बलि ने अपना शीष झुकाकर कहा प्रभु मेरे सर पर अपना तीसरा पग रखिये साथ ही वचन लिया की वह जहाँ भी रहेगा प्रभु को उनके चलना होगा। भगवान ने जैसे ही तीसरा पग सर पर रखा राजा बलि और साथ में वचन से बंधे वामन रुपी विष्णु भी उनके साथ पाताल लोक में चले गए।

भगवान वामन ने पग नापते हुए अपने पद में भूलोक, जंघा में भुवर्लोक, कमर में स्वर्गलोक, पेट में मह:लोक, ह्रदय में जनलोक, कंठ में यमलोक और मुख में सत्यलोक स्थापित करके सबसे ऊपर मस्तक स्थापित किया है। विरोचन पुत्र बलि के कहने पर बलि के आश्रम में शेषनाग के पष्ठ पर विष्णु जी की मूर्ति स्थापित हुई। इस दिन भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं।

परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) का महत्व

परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) के दिन तांबा, चांदी, चावल, दही का दान और रात्रि जागरण अवश्य करना चाहिए। जो मनुष्य इस दिन विधि पूर्वक व्रत करके श्री हरि विष्णु के वामन अवतार की पूजा करते हैं। वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और तीनो लोकों में यश पाते हैं। जो इस कथा को पढ़ते हैं या फिर इस कथा का श्रवण करते हैं उन्हें हजार अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है।

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परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) की व्रत विधि

  • परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) व्रत करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
  • नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें।
  • तत्पश्चात साफ़ सुथरे कपडे पहनकर व्रत का संकल्प लें।
  • मंदिर की सफाई करके विष्णु जी की प्रतिमा को गंगाजल से नहलाएं।
  • गाय के घी का दीपक जलाकर विष्णु भगवान की पूजा और अर्चना करें।
  • पूजा करते समय तुलसी के पत्तों का उपयोग अवश्य करें।
  • पूजा – अर्चना के बाद भगवान की आरती करें।
  • शाम को भी दीपक जलाकर विष्णु जी का आरती करें।
  • विष्णु जी के सहस्त्र नामों का पाठ करें।
  • द्वादशी तिथि पर व्रत का पारण करें।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराएं और लोगों में प्रसाद बांटें।
  • अपने सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।

परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) की पारण विधि

पारण का अर्थ है व्रत तोड़ना। द्वादशी तिथि समाप्त होने के भीतर ही पारण करें। द्वादशी में पारण न करना अपराध के समान है। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासरा के खत्म होने का इंतजार करें, हरि वासरा के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचें। व्रत तोड़ने का समय प्रात:काल है। किसी कारणवश प्रात:काल के दौरान व्रत नहीं तोड़ पाते हैं तो मध्याह्न के बाद व्रत खत्म करें।

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