जाने गुप्त नवरात्रि या आषाढ़ नवरात्रि का महत्व और सिद्धि मंत्र
वैसे तो मां शक्ति की कृपा पाने के लिए पूरी साल ही भक्ति भाव के साथ माता की पूजा आराधना की जाती है। माता के प्रति अपना विशेष आभार व्यक्ति करने के लिए साल में दो बार चैत्र और शारदीय नवरात्रि में विशेष रूप से माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है। लेकिन इसके अलावा माघ और आषाढ़ माह में भी नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। माघ और आषाढ़ माह में आने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। गुप्त नवरात्रि में माता शक्ति के नौ स्वरूपों के साथ 10 महाविद्याओं की पूजा का विशेष विधान है। इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई 2022 के दिन से शुरू होगी। गुप्त नवरात्रि 19 जुलाई आइए आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की पूजा विधि, आषाढ़ गुप्त नवरात्रि घटस्थापना, आषाढ़ नवरात्रि 10 महाविद्या साधना और गुप्त नवरात्रि से जुड़े ज्योतिषीय उपाय जानें।
गुप्त नवरात्रि 2022 कब है
इस साल आषाढ़ में गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई 2022 को शुरू होने वाली है। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में माता के नौ स्वरूपों की पूजा विधि और नियम नवरात्रि के प्रत्येक दिन के अनुसार जानें।
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि घटस्थापना तारीख – 11 जुलाई 2022, रविवार
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त या समय – 05ः31 ए एम से 07ः47 ए एम तक
गुप्त नवरात्रि प्रथम दिन (11 जुलाई 2022, रविवार)- मां शैलपुत्री
गुप्त नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इस दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन (12 जुलाई 2022, सोमवार)- मां ब्रह्मचारिणी
गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की जाती है। जब वे भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या कर रही थी, तो दुर्गा ने अपार पवित्रता और सतीत्व अर्जित किया और इसी वजह से वे ब्रह्मचारिणी कहलाई गई।
नवरात्रि का तीसरा दिन (13 जुलाई 2022, मंगलवार)- मां चंद्रघंटा
यह दुर्गा का उग्र रूप है जिसमे जिन्होंने अपने दस हाथों में आठ शस्त्र धारण कर रखे हैं। सिंह पर सवार होने के कारण ये ‘धर्मा’ कहलाती है और चंद्रघंटा के नाम से जाना जाती है।
नवरात्रि का चैथा दिन (14 जुलाई 2022, बुधवार)- मां कुष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन मां के जिस अवतार की पूजा होती है। उन्हें कुष्मांडा रूप से जाना जाता है। उनका नाम दर्शता है कि उन्होंने इस ब्रहमांड की उत्पत्ति की है और वे सूर्य के रूप में सभी के मध्य में विराजित है।
नवरात्रि का पांचवा दिन (15 जुलाई 2022, गुरुवार)- मां स्कंदमाता
मां स्कंदमाता कार्तिकेय की माता है, जो कि शेर पर विराजित हैं। उनकी गोद में कार्तिकेय बैठे है, इस स्वरूप को ध्यान में रखते हुए इनकी पूजा करें।
नवरात्रि का छठां दिन (16 जुलाई 2022, शुक्रवार)- मां कात्यायनी
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के छठे दिन देवी के जिस रूप की पूजा की जाती है वो मां कात्यायनी के नाम से जानी जाती है। मां दुर्गा के इस रूप की उत्पत्ति महिषाषुर दानव का वध करने के लिए हुई थी।
नवरात्रि का सातवां दिन (17 जुलाई 2022, शनिवार)- मां कालरात्रि
दुर्गा के इस भयंकर अवतार की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। जो गधे पर सवार हैं, उनकी चार भुजाएं हैं, तीन आंखे हैं और मुंह खुला हैं। श्याम रंग वाली ये देवी अपने भक्तों को अभय और सभी कष्टों से मुक्ति का आशीर्वाद देती हैं।
नवरात्रि का आठवां दिन (18 जुलाई 2022, रविवार)- मां महागौरी
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है जो कि तब तक श्याम रंग की ही रही जब तक भगवान शिव उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न नहीं हुए और गंगा नदी के पवित्र जल से उनकी शुद्घि नहीं की।
नवरात्रि का नौवा दिन (19 जुलाई 2022, सोमवार)- मां सिद्घिदात्री
मां सिद्घिदात्री की पूजा नवरात्रि के नौवें और अंतिम दिन की जाती है। उनका नाम उनके महत्व को स्वयं दर्शाता है। ‘सिद्घि’ यानि अलौकिक शक्तियां’ और ‘दात्री’ यानि देना।
गुप्त नवरात्रि पूजा विधि और दस महाविद्याएं
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में भी माता की पूजा चैत्र और शारदीय नवरात्रि की तरह ही की जाती है। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के पहले दिन साधक घटस्थापना के साथ नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लेता है। इसके बाद प्रतिदिन प्रातः काल दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर माता दुर्गा की पूजा की जाती है। इसके बाद अष्टमी या नवमी के दिन व्रत का उद्यापन करके कन्याओं का पूजन और भोज करवाया जाता है। वहीं तंत्र साधना से जुड़े लोग गुप्त नवरात्रि के दिनों में माता के नवरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की साधना करते हैं। इन दस महाविद्याओं में मां काली, तारा देवी, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुरा भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी शामिल है। आइए आषाढ़ गुप्त नौवरात्रि के लपलक्ष्य में दस महाविद्याओं की साधना विधि, ज्योतिषीय संबंध और मंत्र उपाय जानें।
प्रथम महाविद्या - काली
सभी 10 महाविद्याओं में मां काली को प्रथम माना गया है, माता काली का स्वरूप रौद्र हैं लेकिन वे बेहद ही आसानी से प्रसन्न और क्रोधित होने वाली माता है। मां काली का पूजन बेहद निष्ठा, पवित्रा और नियमों के साथ की जाती है। माता काली की सच्चे मन से साधना करने पर साधक को अपने विरोधियों और शत्रुओं पर विजय मिलती है और बिना भय के अपना जीवन सुख और समृद्धि के साथ बिता सकते हैं।
मंत्र – ॐ हृीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा।।
दूसरी महाविद्या - तारा
सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने महाविद्या तारा की आराधना की थी। तारा देवी को तांत्रिकों की मुख्य देवी माना जाता हैं। देवी के इस रूप की आराधना करने पर आर्थिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। तिब्बत में माता तारा का विशेष स्थान है। इन्हें ग्रीन (हरी) तारा, सफेद तारा या नील तारा के नाम से पूजा जाता है।
मंत्र – ऊँ हृीं स्त्रीं हुम फट् ।।
तीसरी महाविद्या - त्रिपुरा सुंदरी
माता त्रिपुरा सुंदरी को ललिता या राज राजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। माता त्रिपुरा सुंदरी के स्वरूप की बात करें तो माता की चार भुजा और 3 नेत्र है।
मंत्र – ऐं हृीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः ।।
चौथी महाविद्या - भुवनेश्वरी
माता भुवनेश्वरी को शताक्षी और शाकम्भरी के नाम से भी जाना जाता है। संतान की चाह रखने वाले दंपत्तियों के लिए मां भुवनेश्वरी की साधना बेहद फलदायी होती है। चौथी महाविद्या भुवनेश्वरी के आशीर्वाद से सूर्य के समान तेज और जीवन में मान सम्मान मिलता है।
मंत्र – हृीं भुवनेश्वरीयै हृीं नमः ।।
पांचवी महाविद्या - छिन्नमस्ता
माता छिन्नमस्ता के दर्शन उनकी साधना के तरीके पर निर्भर करता है, माता छिन्नमस्ता की साधना यदि शांत मन से की जाए तो शांत स्वरूप और उग्र रूप से साधना करने पर माता के उग्र रूप के दर्शन होते हैं। छिन्नमस्ता का स्वरूप कटा हुआ सिर और बहती हुई रक्त की तीन धाराओं से सुशोभित रहता है।
मंत्र – श्रीं हृीं ऐं वज्र वैरोचानियै हृीं फट स्वाहा।।
छठी महाविद्या - त्रिपुरा भैरवी
छठी महाविद्या की साधना जीवन के सभी बंधनों से मुक्ति और धन धान्य व खुशहाली प्राप्त करने के लिए की जाती है। त्रिपुरा भैरवी या भैरवी महाविद्या की साधना से व्यक्ति व्यापर में लगातार बढ़ोतरी और धन सम्पदा की प्राप्ति होती है।
मंत्र: ।। ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:।।
सातवी महाविद्या - धूमावती
सातवी महाविद्या के रूप में मां धूमावती की साधना की जाती है, ऋग्वेद में माता धूमावती को सुतरा के नाम से भी जाना गया है। मां धूमावती को अभाव और संकट दूर करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। इस महाविद्या की साधना करने वाला व्यक्ति महाप्रतापी और सिद्ध पुरूष कहलाता है।
मंत्र – ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहाः
आठवीं महाविद्या - बगलामुखी
आठवीं महाविद्या को बगलामुखी के नाम से जाना जाता है, मां बगलामुखी की साधना दुश्मनों के भय से मुक्ति देन और वाक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए की जाती है। गुप्त नवरात्रि में मां बगलामुखी की आराधना करने से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
मंत्र – ऊँ हृीं बगुलामुखी देव्यै हृीं ओम नमः
नौवीं महाविद्या - मातंगी
नौवी महाविद्या के रूप में मां मातंगी साधक के गृहस्थ जीवन को सुखमय और सफल बनाने का कार्य करती है। मां मातंगी की कृपा से साधक खेल, कला और संगीत के क्षेत्र में सफलता प्रदान करती है। इन्हें देवी सरस्वती का भी एक रूप माना जाता है।
मंत्र – ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा ।।
दसवीं महाविद्या - कमला
दसवी महाविद्या के रूप में माता कमला की आराधना की जाती है, माता कमला की साधना से समृद्धि, धन, नारी और पुत्र की प्राप्ति होती है। मां कमला के आशीर्वाद से साधक को धन और विद्या की प्राप्ति होती है। इन्हें लक्ष्मी स्वरूप भी माना जाता है।
मंत्र – ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नमः।
गुप्त नवरात्रि के लिए ज्योतिषीय उपाय
गुप्त नवरात्रि को साधना महाविद्याओं की प्राप्ति के लिए बेहद ही उपयोगी समय माना गया है। इस दौरान व्यक्ति तंत्र – मंत्र की शक्तियों को बेहद ही सहजता के साथ प्राप्त कर सकता है। ठीक इसी तरह गुप्त नवरात्रि के दौरान ज्योतिषीय उपायों का भी महत्व बढ़ जाता है। इस दौरान राशियों के अनुसार माता के विभिन्न स्वरूप और महाविद्याओं की प्राप्ति के लिए यदि राशि के अनुसार उपाय किए जाएं तो उनका निश्चित फल मिलने की संभावना है। नीचे गुप्त नवरात्रि के लिए राशि के अनुसार मंत्र सुझाए गए हैं।
मेष – ॐ हृीं उमा देव्यै नमः।
वृषभ – ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिका देव्यै नमः।
मिथुन – ॐ दुं दुर्गायै नमः।
कर्क– ॐ ललिता देव्यै नमः।
सिंह– ॐ ऐं महासरस्वती देव्यै नमः।
कन्या- ॐ शूल धारिणी देव्यै नमः।
तुला- ॐ हृीं महालक्ष्म्यै नमः।
वृश्चिक– ॐ शक्तिरूपायै नम:
धनु- ॐ ऐं हृीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
मकर– ॐ पां पार्वती देव्यै नमः।
कुंभ– ॐ पां पार्वती देव्यै नमः।
मीन – ॐ श्रीं हृीं श्रीं दुर्गा देव्यै नमः