2025 में कब है गुरु रविदास जयंती, जानें इस से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें….
गुरु रविदास जयंती हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा को होती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर पर, यह आमतौर पर फरवरी में पड़ता है। रविदास एक प्रसिद्ध रहस्यवादी कवि और गीतकार थे, जो 1400 और 1500 ईस्वीं के बीच में प्रचलित थे। उनका “भक्ति आंदोलन” पर बहुत ज्यादा प्रभाव था, जो हिंदू धर्म के अनुसार एक “आध्यात्मिक भक्ति आंदोलन’ था। बाद में इस आंदोलन ने नया रूप ले लिया और सिख धर्म की शुरुआत हुई। रविदास के भक्ति छंदों को सिख धर्मग्रंथों में गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से शामिल किया गया था।
हालांकि, उनके अनुयायियों ने 21 वीं सदी में ‘रविदासिया’ धर्म की स्थापना की। रविदासिया के अनुयायी हर साल गुरु रविदास जयंती श्रद्धापूर्वक मनाते हैं। भक्त विभिन्न अनुष्ठान करते हैं और गुरु रविदास के गीतों और कविताओं का जाप करते हैं। सभी श्रद्धालु, गुरु रविदास की तस्वीर के साथ जुलूस निकालते हैं और गंगा नदी में स्नान करते हैं। कुछ लोग रविदास को समर्पित मंदिर की तीर्थ यात्रा पर भी जाते हैं और अपनी पूजा-अर्चना करते हैं।
2025 में कब है गुरु रविदास जयंती
गुरु रविदास की 648वीं जन्म वर्षगांठ साल बुधवार, फरवरी 12, 2025 को है।
रविदास जयन्ती बुधवार | बुधवार, फरवरी 12, 2025 |
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पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ | फरवरी 11, 2025 को 06:55 पी एम बजे |
पूर्णिमा तिथि समाप्त | फरवरी 12, 2025 को 07:22 पी एम बजे |
गुरु रविदास का जन्म और जीवन परिचय
यूं तो गुरु रविदास के जन्म को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी मौजूद नहीं है, लेकिन माना जाता है कि गुरू रविदास (रैदास) का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था। गुरु रविदास को रैदास के नाम से भी जाना जाता था। उनका जन्म वाराणसी के पास सीर गोवर्धनपुर गांव में हुआ था, जो अब उत्तर प्रदेश में स्थित है। उनका जन्मस्थान अब श्री गुरु रविदास जन्म स्थान के नाम से जाना जाता है।
उनके पिता का नाम रघू और माता का नाम घुरविनिया था। माना जाता कि उनकी पत्नी का नाम लोना था। जीवनयापन के लिए रविदास जूते बनाने का काम किया करते थे। रविदास ज्ञान अर्जित करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने संत रामानन्द को अपना गुरु बना लिया। संत कबीर के प्रेरणा से उन्होंने संत रविदास जी को अपना गुरु बनाया था, गुरु कबीर साहेब जी उनके पहले गुरु थे। उनके मधुर व्यवहार के कारण उनसे मिलने वाले लोग बहुत प्रसन्न रहते थे। रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे, दूसरों की सहायता करने में उन्हें परम सुख मिलता था। साधु-सन्तों की मदद करने में उन्हें विशेष आनन्द प्राप्त होता है। ज्यादातर वे बिना पैसे लिए जूते दे दिया करते थे। उनके इस स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे दुखी रहते थे। पैसों की बात से दुखी हो कर उनके माता पिता ने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से निकाल दिया। रविदास पड़ोस के एक इमारत में किराए का घर लेकर पत्नी के साथ रहने लगे। और अधिकतर समय प्रभु-भजन और साधु-सन्तों के सत्संग में बिताया करते थे।
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गुरु रविदास की कथा
एक कथा के अनुसार एक दिन संत रविदास अपनी कुटिया में बैठे प्रभु का स्मरण करते हुए अपने काम में व्यस्त थे। उसी समय एक ब्राह्मण रैदासजी की कुटिया पर आया और उनसे बोला कि मैं गंगाजी में स्नान के लिए जा रहा था, रास्ते में आपके दर्शन की इच्छा से यहां चला आया। रविदास जी ने एक मुद्रा देते हुए कहा कि आप गंगा स्नान करने जा रहे हैं तो यह एक मुद्रा मेरी तरफ से गंगा मैया को अर्पण कर दीजिएगा। ब्राह्मण जब स्नान करने गंगाजी पहुंचा और स्नान कर जब पानी में मुद्रा डालने लगा तो गंगा मैया ने जल में से अपना हाथ निकालकर वह मुद्रा ब्राह्मण से ले ली और उसके बदले में ब्राह्मण को एक सोने का कंगन दे दिया। ब्राह्मण गंगा मैया के द्वारा दिया कंगन लेकर लौटते हुए, नगर के राजा से मिलने जा पहुंचा। राजा को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण ने वह कंगन राजा को देने का विचार किया। उसने वह कंगन राजा को भेंट में दे दिया। राजा ने उस ब्राह्मण को बहुत-सी मुद्राएं देकर विदा किया। ब्राह्मण के घर जाने के बाद, राजा ने वह कंगन अपनी महारानी को प्रेम से तोहफे में दे दिया। महारानी बहुत खुश हुई और राजा से बोली कि कंगन तो बहुत सुंदर है, लेकिन क्या बिल्कुल ऐसा ही एक और कंगन नहीं मंगा सकते हैं। एक कंगन अच्छा नहीं लगता है। राजा ने अपनी पत्नी से दूसरा वैसा ही कंगन मंगवा कर देने का वादा किया। राजा से ब्राह्मण को बुला कर वैसे ही दूसरा कंगन लेकर देने को कहा। ऐसा ना होने की परिस्थिति में उसे दंड का पात्र बनना पड़ेगा। खबर सुनते ही ब्राह्मण के होश उड़ गए और वह पछताने लगा कि राजा को कंगन दे कर बहुत बड़ी गलती कर दी।
परेशान ब्राह्मण रविदास जी के घर पहुंचा और पूरी कथा उन्हें कह सुनाई। और ये भी कहा कि गंगा जी से मिले कंगन जैसा कंगन अगर मैंने राजा को तीन दिन में नहीं दिया तो वे मुझे कठोर दंड देंगे। ब्राह्मण ने क्षमा मांगी कि आपको उस कंगन के बारे में बिना बताए मैंने उसे राजा को दे दिया। रविदास जी ने ब्राह्मण को शांत करते हुए कहा कि मैं तुमसे नाराज नहीं हुं। मैं वैसे भी इस कंगन का क्या करता। लेकिन अभी मैं गंगा मैया से प्रार्थना जरूर कर सकता हुं कि वे वैसे ही दूसरा कंगन दें जिससे तुम्हारा मान-सम्मान बच जाए। ऐसा कह कर रैदासजी (रविदास जी) ने अपनी वह कठौती उठाई जिसमें वे चमड़ा गलाते थे और उसे जल से भर दिया। उन्होंने गंगा मैया का आह्वान कर अपनी कठौती से जल छिड़का। उसके बुलाने पर गंगा मैया प्रकट हो गई और रैदास जी की बात सुनकर उन्होंने एक और कंगन ब्राह्मण को दे दिया। वह कंगन राजा को भेंट करने के लिए ब्राह्मण प्रसन्न होकर चला गया ।
गुरु नानक देव का प्रभाव
अधिकांश विद्वानों का मानना है कि रविदास सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक से मिले थे और उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित थे। वह सिख धर्मग्रंथों में पूजनीय हैं, इसलिए रविदास की 41 कविताओं को सिख धर्मग्रंथ में शामिल किया गया है। ये कविताएं उनके विचारों और साहित्यिक कृतियों के सबसे पुराने प्रमाणित स्रोतों में से एक हैं। 1693 में रविदास की मृत्यु के 170 साल बाद रचित इस पाठ को भारतीय धार्मिक परंपरा के सत्रह संतों में से एक के रूप में शामिल किया गया है। 17वीं सदी के नाभादास के भक्तमाल और अनंतदास के पारसी दोनों में रविदास पर अध्याय हैं। इसके अलावा, सिख परंपरा के ग्रंथ और हिंदू दादुपंथी परंपराएं, रविदास के जीवन के बारे में अधिकांश अन्य लिखित स्रोत, जिनमें रविदासी (रविदास के अनुयायी) शामिल हैं, की रचना 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में, या लगभग उनके मौत के 400 साल बाद की गई थी।
रविदास साहित्य
पीटर फ्रीडलैंडर कहते हैं कि रविदास की जीवनी, हालांकि उनकी मृत्यु के लंबे समय बाद लिखी गई। इनका साहित्य, भारतीय समाज के भीतर के संघर्ष को दर्शाता है, जहां रविदास का जीवन विभिन्न प्रकार के सामाजिक और आध्यात्मिक विषयों को व्यक्त करने का साधन देता है। एक स्तर पर, यह तत्कालीन प्रचलित विधर्मी समुदायों और रूढ़िवादी ब्राह्मणवादी परंपरा के बीच संघर्ष को दर्शाता है।
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रविदास जी की रचना
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग-अंग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी भक्ति करै रैदासा।
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पूजा कहां चढ़ाऊं…
राम मैं पूजा कहां चढ़ाऊं ।
फल अरु फूल अनूप न पाऊं ॥टेक॥
थन तर दूध जो बछरू जुठारी ।
पुहुप भंवर जल मीन बिगारी ॥1॥
मलयागिर बेधियो भुअंगा ।
विष अमृत दोउ एक संगा ॥2॥
मन ही पूजा मन ही धूप ।
मन ही सेऊं सहज सरूप ॥3॥
पूजा अरचा न जानूं तेरी ।
कह रैदास कवन गति मोरी ॥4॥
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