जमात-उल-विदा मुस्लिम समुदाय के उत्सव का दिन


इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रमजान नवां महीना होता है। इसे रमदान के रूप में भी पहचानते हैं। यह इस्लामिक कैलेंडर का सबसे पवित्र माह माना जाता है। दुनिया भर में यह माह मुस्लिम धर्म में अपनी अलग अहमियत रखता है। मुस्लिम धर्म मानने वाले रमजान माह के अंतिम शुक्रवार को जमात-उल- विदा का पर्व मनाते हैं। मुस्लिम मानते हैं कि पवित्र कुरान पैगम्बर मोहम्मद साहब से साझा की गई थी।


जमात-उल-विदा का मतलब

जमात-उल-विदा एक अन्य मुस्लिम पर्व ईद-अल-फितर से ठीक पहले मनाई जाती है। जमात-उल-विदा को जुम्मात-अल-विदा के तौर पर भी जाना जाता है। इसका मतलब है विदाई का शुक्रवार। इसके अलावा पवित्र कुरान के मुताबिक इसका मतलब मुबारकबाद से भी जुड़ा है।


जमात-उल-विदा की अहमियत

जैसा कि हम बता चुके हैं कि जमात-उल-विदा, ईद-अल-फितर से ठीक पहले आती है, दो पर्व आने के साथ उत्साह व जोश दोगुना हो जाता है। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने बताया था कि हफ्ते के किसी और दिन की जगह शुक्रवार दोपहर को दुआ करना ज्यादा अच्छा होता है। जमात-उल-विदा पर्व भी शुक्रवार को आता है। इसलिए मुस्लिम समुदाय का विश्वास है कि शुक्रवार को किए गई दुआएं जल्द कुबूल की जाती हैं। जमात-उल-विदा के दिन लोग आपस में मिलते हैं, शांति व सुख की कामना करते हैं, दुआ मांगते हैं।

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जमात-उल-विदा का पर्व के दूसरे मायने भी हैं। इस दिन मुस्लिम धर्म से जुड़े लोग दान करते हैं। गरीबों को खाना बांटते हैं। खाने के अलावा भी जो जरूरी सामान होता है, वो गरीबों को मुहैया करवाते हैं। जमात-उल-विदा के दिन जुटने वाली भीड़, गहराई और एकता का प्रतीक होती है। यह समुदाय में भाईचारे का संदेश देती है।


जमात-उल-विदा 2025 की तिथि

जमात-उल-विदा – शुक्रवार, 28 मार्च 2025


जमात-उल-विदा का उत्सव

जमात-उल-विदा के पर्व पर मुस्लिम धर्म के अनुयायी सुबह जल्दी उठकर मस्जिद जाते हैं। यहां पुरुषों को आना और एकत्रित होना अनिवार्य होता है। वे सामूहिक नमाज को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इस दिन सामूहिक रूप से कुरान सुनाई जाती है। भारत में हैदराबाद में मुस्लिम चार मीनार स्थित मक्का मस्जिद जाते हैं। यह रिवाज प्राचीन समय से चला आ रहा है। वे जमात-उल-विदा के मौके पर यहां दुआ मांगते हैं। मक्का मस्जिद मुस्लिमों के लिए अहम जगह है, यह भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। यह दिन मजलिस-ए-इत्तेहादुल के तौर पर भी जाना जाता है। सालाना कुरान की मजलिस भी यहीं पर होती है।

इस दिन की जाने वाली नमाज आम नहीं होती हैं। जो प्रार्थना की जाती हैं, उसमें सभी गलतियों की माफी भी शामिल होती है। भविष्य में जीवन के लिए सही राह दिखाने की दुआ भी मांगी जाती है।

इस पर्व के बारे में एक और रोचक तथ्य है। लाखों मुस्लिम सफेद कपड़े पहनकर नमाज के लिए आते हैं। मस्जिद से लेकर सड़कों तक, हर जगह लोग नजर आते हैं। जमात-उल-विदा पर शेरवानी, रूमी टोपी पहने अल्लाह की इबादत करते लोग दिखते हैं। लोगों का विश्वास है कि अल्लाह उनकी सारी दुआएं कुबूल करता है। यह दिन अल्लाह और अकीदतमंदों के बीच एक मजबूत रिश्ते का प्रतीक है।

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