महाशिवरात्रि 2025 (Mahashivratri 2025) : सरल व सही पूजा विधि से करें शिव को प्रसन्न…
महाशिवरात्रि (mahashivratri) का उत्सव भारतीय परंपराओं में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ हर साल भगवान शिव के सम्मान में मनाया जाता है। शिवरात्रि का त्योहार यूं तो हर महीने आता है, जिसे मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। मासिक शिवरात्रि हर चंद्र मास में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी या चतुर्दशी को आती है। लेकिन महाशिवरात्रि साल में केवल एक ही बार आती है, जो अंग्रेजी कैलेंडर के फरवरी या मार्च में पड़ती है। इसे आमतौर पर “भगवान शिव को समर्पित सबसे महत्वपूर्ण रात” के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म का यह प्रमुख त्योहार महाशिवरात्रि दुनिया में “अज्ञानता और अंधकार पर काबू पाने” के स्मरण का प्रतीक है।
महाशिवरात्रि 2025 में कब है - mahashivratri 2025 mein kab hai?
महाशिवरात्रि 2025: मंगलवार, फरवरी 25, 2025
पूजा समय : 12:38 ए एम से 12:48 ए एम, फरवरी 26
अवधि: 00 घण्टे 10 मिनट्स
महाशिवरात्रि 2025 पारण समय : 26वाँ फरवरी को 06:46 ए एम से 03:11 पी एम
महाशिवरात्रि (mahashivratri) का यह पर्व उपवास, प्रार्थना, ध्यान और अहिंसा, क्षमा, दान, और हमारे आंतरिक स्व में भगवान शिव की खोज जैसे नैतिक गुणों पर ज्ञान के शब्दों का आदान-प्रदान करके मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के अनन्य भक्त पूरी रात जागते हैं और मंदिर में जाकर भगवान की आराधना करते हैं। वहीं कई लोग ज्योतिर्लिंग की तीर्थ यात्रा पर भी जाते हैं। दक्षिण भारतीय कैलेंडर के अनुसार, माघ महीने में कृष्ण पक्ष के दौरान चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। जबकि, उत्तर भारतीय कैलेंडर के अनुसार, यह फाल्गुन में चंद्रमा के घटने की 13वीं/14वीं रात को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि भारतीय परंपराओं में सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। यह आपके जीवन में सुख समृद्धि लाता है, और भगवान शिव को प्रसन्न कर आप उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) | मंगलवार, फरवरी 25, 2025 |
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रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय | 05:59 पी एम से 09:11 पी एम |
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय | 09:11 पी एम से 12:22 ए एम, फरवरी 26 |
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय | 12:22 ए एम से 03:34 ए एम, फरवरी 26 |
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय | 03:34 ए एम से 06:46 ए एम, फरवरी 26 |
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ | फरवरी 26, 2025 को 12:38 ए एम बजे |
चतुर्दशी तिथि समाप्त | फरवरी 26, 2025 को 10:24 पी एम बजे |
क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि
आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि महाशिवरात्रि (mahashivratri) का पर्व क्यों मनाया जाता है? तो हम आपको बताते हैं कि महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। हिंदू धर्म के अनुसार, यह त्योहार भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह के संदर्भ में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पूजा करने और पूरे दिन उपवास करने से पूरे साल भगवान की कठोर प्रार्थना का लाभ मिल सकता है। महाशिवरात्रि (mahashivratri) पर महिलाएं भगवान शिव से अपने पति के लिए प्रार्थना करती है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकले अमृत को पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच होड़ लगी। लेकिन, उसी मंथन से निकले हलाहल जहर को लेने के लिए कोई तैयार नहीं था। उस विष की एक भी बूंद अगर पृथ्वी पर गिर जाती तो विध्वंस मच जाता। तभी भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और इस प्रकार सारे संसार को विनाश से बचा लिया। इससे उनका कंठ नीला पड़ गया। यही कारण है कि उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए, महाशिवरात्रि (mahashivratri) को सृष्टि को इस घातक विष से बचाने के लिए भगवान शिव के प्रति कृतज्ञता के दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
वहीं तीसरी कथा के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु के बीच इस बात की बहस छिड़ गई है, उन दोनें में कौन सर्वोच्च और अधिक शक्तिशाली है। तभी एक विशाल लिंग उभरा जिसने दोनों को चकित और अभिभूत कर दिया। वे इसकी ऊंचाई का पता लगाना चाहते थे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि यह अनंत तक फैला हुआ है। तभी भगवान शिव उस लिंग से निकले और घोषणा की कि ‘वह तीनों (त्रिदेव) में सर्वोच्च हैं’ और तभी से उनकी लिंग के रूप में पूजा की जाने लगी। साथ ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर रुद्राभिषेक किया जाने लगा।
महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) पर उपवास का महत्व
महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) पर उपवास एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसे लेकर एक प्राचीन कथा है, जिसके अनुसार एक बार एक शिकारी शिकार करने के लिए जंगल में गया। वहां एक बिल्व पत्र के पेड़ के नीचे बैठ गया, वहां पर शिवलिंग था, लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था। शिकारी वहां पर शिकार की प्रतिक्षा कर रहा था। इसी दौरान वह शिकारी पेड़ से पत्ते तोड़ता रहा और शिवलिंग पर गिराता रहा। इसी दौरान एक हिरण पास ही के तालाब में पानी पीने के लिए आया, जैसे ही शिकारी ने उसका शिकार करने की कोशिश की, हिरण ने दया की याचना की, कि उसके बच्चे उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। यह सुनकर शिकारी ने उसे जाने दिया। दूसरे पहर में, हिरण के बच्चे वहां आ गए, और करुणावश शिकारी ने उन्हें भी नहीं मारा। इसी तरह चारों पहर शिकारी ने बिना कुछ खाए, बिल्व पत्र को लिंग पर गिराते हुए गुजार दिए। इसके बाद भगवान शिव स्वयं उसके सामने प्रकट हुए, और शिकारी को मोक्ष प्रदान किया।
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महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) पर किए जाने वाले अनुष्ठान
- महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) के दिन उपासकों को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए।
- नितक्रिया के बाद स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
- इसके बाद पास के किसी मंदिर में या फिर घर पर भी शिवलिंग को शहद, दूध, पानी, आदि के साथ स्नान कराना चाहिए और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए।
- भगवान शिव के कई भक्त महाशिवरात्रि (mahashivratri) के पूरे दिन और रात भगवान शिव की पूजा करते हैं। अगली सुबह भगवान शिव को चढ़ाए गए प्रसाद में से अपना उपवास तोड़ते हैं। साथ ही भगवान शिव की उपासना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ‘ओम नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करते हैं।
महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) का ज्योतिषीय महत्व
महाशिवरात्रि (mahashivratri) ‘अमावस्या’ से ठीक पहले आती है। इस रात को चांद दिखाई नहीं देता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस अवधि के दौरान चंद्रमा दो पाप ग्रहों के बीच होता है, इसलिए चंद्रमा कमजोर रहता है। वहीं आध्यात्मिक गुरु बृहस्पति 5वीं दृष्टि से चंद्रमा को देखता है, और विशेष समय के दौरान ऊर्जा प्रदान करता है। बृहस्पति महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) के दौरान बारहवें घर में है, जिससे भौतिकवादी जीवन से अलगाव और मानव जीवन के माध्यम से आध्यात्मिक यात्रा के बारे में जागरूकता और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाएगा। महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) पर भगवान शिव की पूजा करने से आपका चंद्रमा मजबूत हो सकता है, जो आपको मोक्ष के मार्ग की ओर प्रेषित करता है।
महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) के आने तक सूर्य देव उत्तरायण तक पहुंच चुके होंगे। समय ऋतु परिवर्तन की मांग करेगा। यह समय शुभ होगा और वसंत ऋतु का आगमन भी होगा। वसंत का मौसम मन को आनंद, जोश और खुशी से भर देता है। साथ ही, इस अवधि के दौरान भगवान शिव द्वारा कामदेव को जीवंत किया जाता है। इस काल में उत्पन्न कामदेव की भावनाओं को भगवान शिव की आराधना से ही नियंत्रित किया जा सकता है।
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12 चंद्र राशियों के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंग
भगवान शिव के बारे में प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में कई पौराणिक गाथाएं मिलती हैं। कहानियों में बताया गया है कि भगवान शिव उनके त्रिशूल और डमरू का 9 ग्रहों से गहरा संबंध है। इसी तरह, वैदिक ज्योतिषियों के अनुसार, 12 ज्योतिर्लिंग का 12 चंद्र राशियों के साथ गहरा संबंध है। जानें कैसे…
ज्योतिर्लिंग के अनुसार चंद्र राशि
सोमनाथ : मेष
श्रीशैलम : वृषभ
महाकालेश्वर : मिथुन
ओंकारेश्वर : कर्क
वैद्यनाथ : सिंह
भीमाशंकर : कन्या
रामेश्वरम : तुला
नागेश्वर : वृश्चिक
विश्वनाथ : धनु
त्र्यंबकेश्वर : मकर
केदारनाथ : कुंभ
घृष्णेश्वर : मीन
शिव पूजा के क्या हैं लाभ
- भगवान शिव की तपस्या से आत्मा की शुद्धि होती है।
- महाशिवरात्रि (mahashivratri) पर प्रसाद (नैवैद्य) एक लंबा और संतोषजनक जीवन प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
- महाशिवरात्रि 2025 (mahashivratri 2025) पर दीप प्रज्वलित करने से आपको ज्ञान की प्राप्ति होगी।
- महाशिवरात्रि (mahashivratri) के दिन भगवान शिव को ताम्बूल चढ़ाने से अनुकूल परिणाम मिलता है।
- शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से संतान की प्राप्ति होती है।
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