मलयाली त्योहार ओणम

अनेकता में एकता भारत को परिभाषित करती है। यहां की संस्कृति विभिन्नताओं और अलग अलग रिती रिवाजों के लिए जानी जाती है। भारत के कई त्यौहार पूरे देश सहित दुनिया के अलग अलग हिस्सों में बड़े ही धूमधाम से मनाएं जाते हैं।  कुछ त्योहार है, जो किसी विशेष क्षेत्र में काफी ज्यादा महत्व रखते हैं। ऐसा  ही एक त्योहार है ओणम। यह त्योहार भारत के मलयालम भाषी क्षेत्र केरल में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान विष्णु के वामन अवतार और सम्राट महाबली के धरती पर पुन: आगमन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। बताया जाता है कि इस दिन दैत्य राज महाबली पाताल लोक से पृथ्वीलोक पर आकर अपनी मलयाली प्रजा से मिलते हैं।

मलयाली कैलेंडर के अनुसार ओणम का त्योहार चिंगम महीने में ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर मनाया जाता है। यह चिंगम माह में अथम से शुरु होकर थिरुवोणम तक जारी रहता है। यह त्योहार पूरे दस दिनों तक मनाया जाता है। थिरोवोणम के दिन ही ओणम त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। हिंदू कैलेंडर में अथम नक्षत्र को हस्त नक्षत्र के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी केलेंडर के अनुसार यह त्योहार अगस्त या सितंबर में तिथि के अनुसार पड़ता है। साल 2025 में शुक्रवार, 5 सितंबर 2025 के दिन इस त्योहार को मनाया जाएगा। श्रावण मास की शुक्ल त्रयोदशी को मनाए जाने वाले इस त्यौहार को थिरुओणम भी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस समय केरल में इन दिनों चाय, अदरक, इलायची, काली मिर्च और धान की फसल पककर तैयार हो जाती है और लोग फसल की अच्छी उपज की खुशी में ये त्योहार मानकर आपस में खुशियां बांटते हैं।

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ओणम तिथि और मुहूर्त

साल 2025 में शुक्रवार, 5 सितंबर 2025 के दिन ओणम त्योहार को मनाया जाएगा। ओणम के त्योहार का आखिरी दिन थिरुवोणम के नक्षत्र में शुरु होता है। इसे ही इस त्योहार का मुख्य दिन माना जाता है।

EventMuhurat
तिरुवोनम दिनांकशुक्रवार, 5 सितंबर 2025
थिरुवोणम नक्षत्र शुरू04 सितंबर, 2025 को रात्रि 11:44 बजे
थिरुवोणम नक्षत्र समाप्त05 सितंबर, 2025 को रात्रि 11:38 बजे

ओणम का महत्व

ओणम का त्योहार दक्षिण भारत के मलयाली भाषाई क्षेत्र के केरल में मुख्य रूप से मनाया जाता है। ऐसा माना जाता कि देत्य राज महाबली इस दिन पाताल लोक से पृथ्वी लोक पर अपनी मलयाली भाषाई प्रजा से मिलने के लिए आते हैं, और उन्हें सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। उनके स्वागत के लिए दस दिन पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती है। घरों को सजाया जाता है, और अच्छे पकवान बनाए जाते हैं। घर को विशिष्ट फूलों से सजाया जाता है। साथ ही घर के द्वार पर फूलों से रंगोली बनाई जाती है। इससे उनके आराध्य राजा महाबली खुश होते हैं। ओणम भारत के सबसे रंगारंग त्योहारों में से एक है। इस पर्व की लोकप्रियता इतनी है कि केरल सरकार इसे पर्यटक त्योहार के रूप में मनाती है। ओणम पर्व के दौरान नाव रेस, नृत्य, संगीत, महाभोज जैसे कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है.

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क्यों मनाया जाता है ओणम

ओणम पर्व को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है। इसी कथा को मलयाली भाषी लोग इस त्योहार का आधार मानते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में एक राजा हुआ करता था राजा महाबली, जो कि भगवान विष्णु के प्रिय भक्त प्रहलाद के पौत्र थे। राजा बली की ख्याति पृथ्वी लोग में बढ़ने लगी थी, उनके अच्छे कामों और अपनी प्रजा के प्रति अच्छे व्यवहार के कारण चारों ओर गुणगान होने लगा था। राजा महाबली दैत्यराज होने के बावजूद अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखते थे, जिससे उनकी प्रजा उनका बहुत सम्मान करती थी। राजा की एक खासियत यह था कि वह दान धर्म में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे। 

दैत्य राज महाबली की ख्याती से सारे देवता घबरा गए थे। तभी महाबली ने स्वर्ग पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया। स्वर्ग हाथ से निकल जाने के बाद सभी देवता परेशान हो गए। तभी भगवान विष्णु से राजा महाबली को रोकने के लिए अन्य देवताओं मिन्नत की, तभी भगवान विष्णु के साथ मिलकर देवताओं ने योजना तैयार की। जिसके तहत भगवान विष्णु ने वामन रूप में ॠषि कश्यप के घर जन्म लिया। इधर धीरे धीरे राजा महाबली की ख्याति बढ़ती जा रही थी। एक दिन जब राजा किसी बड़े यज्ञ की योजना बना रहे थे, तभी ब्राह्मण के रूप में भगवान विष्णु राजा महाबली के राज्य में पहुंचे, और राजा बलि से मिलने के लिए पहुंचे। भगवान विष्णु को देखते ही वहां के शुक्राचार्य उन्हें पहचान गए और उनकी योजना को समझ गए। 

शुक्राचार्य ने राजा महाबली को आगाह करते हुए कहा कि राजन यह भगवान विष्णु है, निश्चित ही यह आपसे कुछ मांगने आए है। आप मुझसे बिना पूछे दान देने के लिए वचनबद्ध न हो। शुक्राचार्य की इस बात को राजा महाबली ने अनसुना कर दिया। जब ब्राह्मण के भेष में आए भगवान विष्णु से राजा ने कहा कि आप जो चाहे मांग सकते हैं। इस पर भगवान विष्णु से राजा से तीन पग जमीन मांग ली। राजा ने मुस्कुराते हुए कहा कि आप जहां चाहें तीन पग जमीन ले सकते हैं। राजा महाबली के मुख से इतना सुनते ही, भगवान विष्णु ने अपना विराट रूप धारण किया और एक पग में पूरी पृथ्वी, दूसरे पग में स्वर्ग को नाप दिया। इसके बाद उन्होंने राजा बलि से कहा कि राजन अब तीसरा पैर कहां रखूं। इस पर दैत्य राज महाबली ने मुस्कराकर कहा- इसमें तो कमी आपके ही संसार बनाने की हुई, मैं क्या करूं भगवान? अब तो मेरा सिर ही बचा है।

राजा महाबली के मुख से जब भगवान विष्णु ने यह सुना तो उन्होंने तुरंत ही महाबली के सिर पर पैर रखते हुए उन्हें पाताल लोक में कलयुग के अंत तक राज करने का आदेश दे दिया। भगवान विष्णु राजा महाबली की भक्ति और दान धर्म से काफी प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने पाताल लोक जाने से पहले महाबली को एक वरदान मांगने के लिए कहा। जिस पर महाबली ने अनुरोध किया कि वह साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने धरती पर आना चाहते हैं। जिसके बाद भगवान विष्णु ने इच्छापूर्ति का वरदान दिया। कहा जाता है कि इसी दिन राजा महाबली अपनी प्रजा से मिलने के लिए साल में एक बार पृथ्वीलोक पर आते हैं। उनके स्वागत के उपलक्ष्य में ही इस त्योहार को मनाया जाता

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ओणम के दिन खान-पान

ओणम राष्ट्रीय त्योहार होने के साथ साथ एक केरल का महत्वपूर्ण त्योहार है। इस त्योहार में खान पान का भी विशेष महत्व है। इस दिन लोगों को दावत दी जाती है। इस दावत में कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। इसमें पचड़ी काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर, केले और पापड़ के चिप्स  मुख्य रूप से बनाए जाते हैं। इन व्यंजनों को केले के पत्तों पर परोसा जाता है। इस त्योहार की एक मुख्य विशेषता यह है कि इस त्योहार पर लोग मंदिर में नहीं जाते हैं, बल्कि अपने घर पर ही राजा महाबली के स्वागत करते हैं। साथ ही आपको यह भी बताते चलें कि इस त्योहार के दिन लोग बोट रेसिंग के साथ थप्पतिकलि नृत्य किया जाता है

ओणम त्यौहार के 10 दिन

  • पहला दिन अथं होता है, जब राजा महाबली पाताल लोक से पृथ्वी लोक पर अपने राज्य में जाने की तैयारी करते हैं। इस दिन राज्य की प्रजा अपने राजा के स्वागत की तैयारियों में जुट जाती है।
  • दूसरा दिन चिथिरा होता है। इस दिन फूलों की कालीन को बनाना शुरु किया जाता है, जिसे पूक्क्लम कहा जाता है।
  • तीसरे दिन को चोधी पूक्क्लम कहा जाता है, इसे चार-पांच तरह के फूलों से अगली लेयर बनाते हैं।
  • विशाकम इस त्योहार का चौथा दिन होता है, इस दिन तरह तरह की प्रतियोगिताएं शुरु हो जाती है।
  • पांचवें दिन को अनिज्हम कहा जाता है। इस दिन नाव की रेस की तैयारी होती है।
  • छठवें दिन को थ्रिकेता के रूप में जाना जाता है, इसी दिन से त्योहर की छुट्टियां शुरू हो जाती है।
  • सातवें दिन मूलम मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
  • आठवें दिन को पूरादम कहा जाता है। इस दिन राजा महाबली और वामन की प्रतिमा को घर पर स्थापित किया जाता है।
  •  नौवे दिन को उठ्रादोम कहा जाता है। इस दिन महाबली केरल में प्रवेश करते है।
  • दसवां दिन थिरुवोनम होता है। यह सबसे मुख्य दिन होता है, जब राजा महाबली का केरल की प्रजा पूरे हर्षोउल्लास के साथ स्वागत करती है, और उनकी पूजा करती है।

दस दिनों तक चलने वाले इस त्योहार का किसानों और खेती से भी गहरा संबंध है। केरल में इस समय कई तरह की फसलें पककर तैयार हो जाती है। अपनी फसलों की अच्छी उपज और उसकी सुरक्षा के लिए केरल के लोग श्रावण देवता और पुष्पादेवी की भी आराधना करते हैं। फसल पकनें की खुशी यहां के लोगों के मन में एक नई उम्मीद और विश्वास जगाती है।

निष्कर्ष

भारत में त्योहार खुशियों मनाने का एक महत्वपूर्ण जरिया है। यहां साल में कितने ही त्योहार अलग अलग रिजी रिवाज के साथ मनाए जाते हैं। ओणम प्रमुख रूप से केरल में ही मनाया जाता है। राजा महाबली इस दिन अपनी प्रजा के घर जाकर उनको आशीर्वाद प्रदान करते हैं। राजा महाबली के पाताल लोक जाने के बाद वह हर साल अपनी प्रजा से मिलने के लिए ओणम पर आते हैं। इस दिन अपने राजा को अपनी खुशहाल प्रजा को दिखाने और उनके स्वागत में यह त्योहार मनाया जाता है।

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