पंगुनी उथिराम 2025: जानिए इस दिन का महत्व


पंगुनी उथिराम या मीना उत्तरा फाल्गुनी के नाम से जाने जाना वाला यह त्योहार भारत के तमिल भाषी क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय है। यह स्कंद पुराण में वर्णित आठ महाव्रतों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस व्रत को ‘कल्याणम व्रत’ माना जाता है। पंगुनी महीने की पूर्णिमा के दिन इस उपवास को रखा जाता है। तमिल भाषी क्षेत्रों में यह त्योहार तीन दिनों तक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पंगुनी मास हिंदू कैलेंडर के फाल्गुन या चैत्र महीने के साथ ही आता है। आमतौर पर यह त्योहार मार्च के  आखिरी में आता है। इस दिन, चंद्रमा उत्तरा-फाल्गुन या उथिराम नक्षत्र में प्रवेश करता है। आपको बता दें कि पंगुनी तमिल कैलेंडर के हिसाब से आखिरी महीना होता है, इसके बाद तमिल नववर्ष शुरू हो जाता है।


पंगुनी उथिराम की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब उथिराम नक्षत्र पूर्णिमा के साथ आता है, तो तमिल भाषी हिंदूओं द्वारा यह त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार इन क्षेत्रों में काफी महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन भगवान मुरुगन (सुब्रमण्यम) के साथ भगवान इंद्र की बेटी देवसेना या देवनाई का विवाह हुआ था। इसीलिए इस दिन को काफी महत्ता दी गई है। पंगुनी उथिरम भगवान मुरुगन की शादी के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि देवनाई को भगवान इंद्र के सफेद हाथी इरावत ने पाला था। ऐसी ही और भी कहानियां इस त्योहार को लेकर प्रसिद्ध है। पंगुनी उथीराम के पर्व को महालक्ष्मी जयंती के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसी दिन देवी महालक्ष्मी ने महासागर के पौराणिक मंथन के दौरान पृथ्वी पर अवतार लिया था। जयंतिपुरा महात्मय में भी भगवान मुरुगन की पत्नी वल्ली और देवनाई के विवाह के बारे में बताया गया है।

इसे लेकर जो कथा प्रचलित है, उसके अनुसार दीवानई और वल्ली बहनें थीं, जो भगवान मुरुगन से विवाह करना चाहती थी। उनकी परवरिश अमृता वल्ली और सुंदरवल्ली नाम की बहनों के रूप में हुई। बाद में वह देवसेना और वल्ली के रूप में पहचानी गई। इसके बाद, उन्हें दो अलग-अलग लोगों ने गोद लिया और वह एक-दूसरे से अलग हो गई। एक बेटी को भगवान इंद्र ने गोद लिया था, और दूसरी को एक आदिवासी राजा ने पाला था। जब भगवान मुरुगन ने राक्षसों का वध किया, तो इससे खुश होकर भगवान इंद्र ने अपनी बेटी देवनाई की मुरुगन भगवान से शादी करा दी। बाद में भगवान गणपति की मदद से वल्ली से भी शादी कर ली और उसे थिरुथानी चले गए।

एक कथा के अनुसार इस दिन को भगवान शिव और पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। इसे तिरुपति तिरुमाला तीर्थ में भगवान अय्यप्पन की जयंती के रूप में मनाया जाता है।

पंगुनी उथिराम महोत्सव की तिथि और शुभ मुहूर्त

पंगुनी उथिरम तिथि: गुरुवार, 11 अप्रैल 2025

समय:

  • पंगुनी उथिरम नक्षत्रम आरंभ: 10 अप्रैल 2025 को 12:24 बजे
  • पंगुनी उथिरम नक्षत्रम समाप्त: 11 अप्रैल, 2025 को 15:10 बजे

अनुष्ठान और दिन के कार्यक्रम

भगवान मुरुगन के भक्त इस दिन मंदिरों में जाते हैं। जहां भगवान मुरुगन को आराधना करते हुए उनकी मूर्ति पर सुगंधित फूल चढ़ाते हैं।

कई लोग भगवान मुरुगन के मंदिर तक पैदल यात्रा करते हैं। कई धार्मिक स्थलों पर भक्त पैदल ही जाते हैं, जो तीन से चार दिनों में 100 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। तीर्थयात्रियों को महिलाएं छाछ जैसे शीतल पेय और भोजन का भोग लगाती हैं।

भगवान मुरुगन को कावड़ियां (बांस के खंभे) चढ़ाए जाते हैं। इस यात्रा में भक्त अपने भगवान के लिए दूध के बर्तन, पवित्र जल और फूल लेकर जाते हैं, और उसी से भगवान की पूजा करते हैं।

पंगुमी उत्सव की धूम चेन्नई शहर के मायलापुर में दस दिनों तक देखी जा सकती है। यहां दस पहले यह उत्सव शुरू हो जाता है, जो पूर्णिमा के दिन तक जारी रहता है। इस दौरान यहां एक दिव्य विवाह समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसे थिरुकल्याणम के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से तमिलनाडु और केरल में स्थित अयप्पा मंदिरों में मनाया जाता है।

इस दिन मुरुगन भगवान के भक्त कल्याण व्रत का पालन करते हैं और सुबह जल्दी स्नान करने के तुरंत बाद उपवास शुरू करते हैं। इसके बाद कुछ लोग दिन भर कुछ नहीं खाते हैं, या फिर कुछ लोग एक बार भोजन कर उपवास रखते हैं। यह सब अपनी अपनी मान्यताओं के आधार पर व्रत रखते हैं। उपवास के दौरान भक्त भगवान मुरुगन, भगवान शिव, भगवान विष्णु की पूजा करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में जाते हैं।

भगवान शिव को प्रसाद के रूप में मीठा व्यंजन तैयार किया जाता है। जिसका भगवान को भोग लगाया जाता है, उसके बाद व्रत के समापन पर भक्तों में प्रसाद वितरित किया जाता है।


निष्कर्ष

पंगुनी उथिराम का यह पर्व सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार न केवल तमिलनाडु या फिर तमिल भाषी क्षेत्रों में प्रसिद्ध है, बल्कि भारत के कई हिस्सों में इसे महत्वपूर्ण माना गया है। जो भी भक्त इस व्रत का पालन करते हैं, और सच्चे मन से भगवान की पूजा करते हैं, उन्हें भगवान का विशेष आशीर्वाद मिलता है।

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