कोजागरी पूजा 2025 के बारे में विस्तार से जानिए
आश्विन मास की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा के दिन ही कोजागरी पूजा का आयोजन किया जाता है। देश के कई हिस्सों में इस पूजा का विशेष महत्व है। कोजागरी पूजा 2025, सोमवार, 06 अक्टूबर 2025 को है। कोजागरी व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि कोजागरी पूजा की रात को चंद्रमा की किरणों से अमृत गिरता है। साथ ही इस रात को खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का भी रिवाज है। आश्विन मास की पूर्णिमा को किए जाने वाले इस व्रत में देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। कहा जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने से उनका आशीर्वाद उपासकों पर बरसता है। आइए इस व्रत के महत्व, पूजा विधि और कथा के बारे में जानते हैं।
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कोजागरी व्रत की तिथि, समय और मुहूर्त
कोजागरी व्रत के दिन माता लक्ष्मी की पूजा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। यदि माता लक्ष्मी आपके द्वारा की गई पूजा से प्रसन्न होती है, तो आपको धन धान्य का आशीर्वाद मिलता है। यदि आप माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा का आयोजन कराना चाहते हैं, तो इसमें MyPandit आपकी सहायता करेगा। पूजा करवाने के लिए यहां क्लिक करें…
कोजागरी पूजा | सोमवार, अक्टूबर 6, 2025 |
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कोजागरी पूजा निशिता काल (पूजा मुहूर्त) | 12:03 ए एम से 12:52 ए एम, अक्टूबर 07 |
अवधि | 00 घण्टे 49 मिनट्स |
कोजागरी पूजा के दिन चंद्रोदय | 05:47 पी एम |
पूर्णिमा तिथि | अक्टूबर 06, 2025 को 12:23 पी एम बजे |
पूर्णिमा तिथि समाप्त | अक्टूबर 07, 2025 को 09:16 ए एम बजे |
कोजागरी व्रत का महत्व
कोजागरी पूर्णिमा के दिन ही शरद पूर्णिमा भी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना गया है कि इस दिन देवी लक्ष्मी अपने भक्तों के घर जाती है। माता लक्ष्मी के आठ स्वरूप है, इनमें से किसी भी स्वरूप का ध्यान करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। देवी लक्ष्मी के आठ स्वरूप धनलक्ष्मी, धन्य लक्ष्मी, राजलक्ष्मी, वैभवलक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी है। इस दिन विशेष तौर पर खीर बनाई जाती है, इसका इस दिन काफी महत्व है। इसका कारण यह है कि खीर दूध से बनाई जाती है, और दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है। इसके अलावा इस व्रत का पालन करने वाले मृत्यु के बाद सिद्धत्व को प्राप्त होते हैं। इस दिन रात्रि जागरण का भी इस दिन विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि देवी इस रात्रि को भक्तों के घर घर जाती है, जो जाग रहा होता है, उस पर देवी लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
कोजागरी व्रत की खीर का महत्व
कोजागरी पूर्णिमा की रात को रात भर खीर बनाकर रखने की परंपरा है। इसका वैज्ञानिक महत्व भी बताया गया है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि आश्विन मास की पूर्णिमा अन्यथा आश्विन पूर्णिमा वर्षा ऋतु का आखिरी दिन माना जा सकता है। विज्ञान के अनुसार इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता है, जिससे चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती है, जिसे खाने से लोगों का मन शांत रहता है, और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। सांस की बिमारी वाले लोगों को इससे अच्छा फायदा होता है, इसके अलावा आंखों की रोशनी भी बेहतर होती है।
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कोजागरी व्रत की कथा
कोजागरी व्रत को लेकर भी विभिन्न क्षेत्रों में कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से जो सबसे प्रचलित कथा हैं, हम आपको उसके बारे में बताते हैं। प्राचीन काल में एक साहूकार था। जिसकी दो बेटियां थी, उनकी माता लक्ष्मी बड़ी आस्था थी और दोनों ही पूर्णिमा का उपवास रखती थी। साहूकार की बड़ी बेटी इस व्रत को पूरा करती थी, और पूरे विधि विधान से संपन्न करती थी। लेकिन, उसकी छोटी बेटी अज्ञानतावश व्रत को अधूरा छोड़ देती थी। व्रत को अधूरा छोड़ने के कारण देवी लक्ष्मी उससे रुष्ट हो गई। जिससे साहूकार की छोटी बेटी के पुत्रों की मृत्यु होने लगी। जब भी वह किसी बच्चे को जन्म देती, उसके कुछ ही देर बाद उसके बेटे की मृत्यु हो जाती थी। साहूकार की छोटी बेटी इससे काफी परेशान हो गई, और उसने एक ऋषि को अपनी इस परेशानी के बारे में बताया। ऋषि साहूकार की छोटी बेटी को देखकर सारा माजरा समझ गए थे। उन्हें साहूकार की छोटी बेटी को उसकी गलती के बारे में बताया कि वह पूर्णिमा के व्रत को अधूरा छोड़ देती है, और पूर्ण विधिविधान से उस व्रत को नहीं करती है। उन्होंने साहूकार की बेटी को कहा कि अगर तुम पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक पूर्ण करती हो, तो तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।
ऋषि की सलाह के बारे उसने पूर्णिना का व्रत विधिविधान से पूरा किया। जिसके फलस्वरूप उसे संतान की प्राप्ति हुई, लेकिन कुछ दिनों बाद उसकी भी मौत हो गई। वह परेशान हो गई, तब उसे अपनी बड़ी बहन की याद आई। उसने लड़के को एक छोटी चौकी के आकार का लकड़ी पर लेटा दिया, और उस पर कपड़ा ढंग दिया। उसके बाद वह अपनी बड़ी बहन को बुलाकर लाई, और बहन को उसी पर बैठने का इशारा किया। बड़ी बहन इस बात से अंजान थी कि वहां पर उस बच्चे की लाश पड़ी हुई है। वह जैसे ही उसे पीढ़ा पर बैठने लगी, उसके लहंगा बच्चे को छू गया और बच्चा अचानक से जीवित हो उठा और रोने लगा। यह माजरा देख बड़ी बहन ने फटकार लगाते हुए कहा कि तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी, मेरे बैठने से यह मर जाता। बड़ी बहन की बात सुनकर छोटी बहन ने विनम्र भाव से कहा कि यह पहले ही मर चुका था। तेरे तप और पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। तुझ पर माता लक्ष्मी की आसीम कृपा है। इस घटना के बाद साहूकार ने नगर में पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। तभी से इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता है, देवी लक्ष्मी की पूजा की जाने लगी।
कोजागरी व्रत की पूजाविधि
कोजागरी पूजा का उल्लेख नारद पुराण में है। इसमें इस व्रत की पूजा विधि को भी बताया गया है। इसके अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन की जाने वाली इस पूजा में पीतल, चांदी, तांबे या सोने से बनी देवी लक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा की जाती है। सबसे पहले इस मूर्ति को कपड़े से ढंक दिया जाया है। कोजागरी व्रत के लिए देवी की पूजा समान्य तरीके करनी चाहिए। इसके बाद रात को चंद्रोदय के बाद विशेष रूप से पूजा की जाती है। रात को आपको मुख्य रूप से खीर बनाना चाहिए, और अगर घर में चांदी का पात्र है, तो उसमें खीर चांद निकालते ही खुले आसमान के नीचे रखना चाहिए। अगर चांदी का पात्र न हो, तो सामान्य बर्तन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके बाद रात में देवी लक्ष्मी के सामने घी के 100 दीपक जला दें। साथ ही मां लक्ष्मी के मंत्र, आरती के साथ विधिवत पूजन करना चाहिए। कुछ समय बाद चांद की रोशनी में रखी हुई खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगाना चाहिए। अगले दिन देवी लक्ष्मी की पूजा कर खोलना चाहिए।
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निष्कर्ष
कोजागरी उपवास रखने के माता लक्ष्मी अपने भक्तों को सुख समृद्धि का वरदान देती है। साथ ही संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत शरद पूर्णिमा के दिन ही मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा पर रात को निकलने वाली चांद की किरणें हमारे लिए बहुत ही लाभकारी होती है। दोस्तों उम्मीद करते हैं, आपको कोजागरी व्रत के बारे में समझ आ गया है। हम आशा करते हैं कि इस बार आप कोजागरी व्रत को पूरे विधिविधान से ही करेंगे।
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