वट पूर्णिमा 2025: जानें पूजा विधि, पूजा के लाभ, कथा और व्रत का महत्व
वट पूर्णिमा को हिंदू धर्म में एक बहुत ही शुभ दिन माना जाता है, जिसे वट सावित्री के नाम से भी जाना जाता है। मां सावित्री को उनके अनुकरणीय उदार कार्यों के लिए याद करने का यह एक शुभ दिन है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह दिन ज्येष्ठ मास की अमावस्या को पड़ता है। मुख्य रूप से, यह भारत के उत्तरी भागों में मनाया जाता है। वट पूर्णिमा पर महिलाएं मां सावित्री की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। उनमें से कुछ देवी को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखते हैं।
वट सावित्री का व्रत साल में दो बार किया जाता है । भारत के कुछ क्षेत्र जैसे की उत्तर भारत में यह ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। उसी तरह से दक्षिण भारत मे यह व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को रखा जाता है। ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को वट पूर्णिमा कहा जाता है । यह व्रत शादी-शुदा महिलााएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती है। इस दिन वट यानि बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है । पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इस दिन सावित्री के पति सत्यवान को वट वृक्ष के नीच जीवन मिला था । इसलिए इसे वट पुर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
वट सावित्री व्रत साल 2025 में कब है?
वट सावित्री व्रत 2025 | सोमवार, मई 26, 2025 |
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अमावस्या तिथि प्रारम्भ | मई 26, 2025 को 12:11 बजे |
अमावस्या तिथि समाप्त | मई 27, 2025 को 08:31 बजे |
वट पूर्णिमा साल 2025 में कब है?
वट सावित्री पूर्णिमा 2025 | मंगलवार, जून 10, 2025 |
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पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ | जून 10, 2025 को 11:35 बजे |
पूर्णिमा तिथि समाप्त | जून 11, 2025 को 13:13 बजे |
वट सावित्री व्रत महत्व
हमारे धर्म में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को बहुत ही खास माना जाता है। पुराणों की मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन सावित्री के पति सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे अपना जीवन दोबारा से प्राप्त हुआ था । इसी से पुत्र प्राप्ति एवं अपने सास-ससुर का राज-काज वापस मिलने का वरदान भी सावित्री ने किया प्राप्त था। यही कारण है कि इस दिन को वट पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। वट पूर्णिमा के व्रत को सुहागन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए करती हैं। सात विशेष पूर्णिमा में से वट पूर्णिमा का नाम भी आता है। इसलिए यह व्रत स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति की कामना के लिए करती हैं। इसके साथ ही मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुख-समृद्धि भी प्राप्त होती है।
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वट पूर्णिमा पूजा कैसे करें?
वट पूर्णिमा पूजा सामग्री
वट वृक्ष को बांधने के लिए पीला सूत, कुमकुम, चावल, रोली, बांस का पंखा या टोकरी , दीपक घी-बाती, भिगोए हुए चने, गुलगुले, पूरियां, फल-फूल, बरगद का फल, तांबे के जल से भरा हुआ कलश, सात तरह का अनाज ,पूजा के लिए सिंदूर ,अक्षत, हल्दी, अगरबत्ती या सुगंधित धूपबत्ती, सोलह श्रंगार, लाल रंग का वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए, पांच तरह के फल, बरगद पेड़ और पकवान यह सअब सामग्री वट पूर्णिमा कजा के लिये आवश्यक होती है।
वट पूर्णिमा पूजा विधि
वट सावित्री की पूजा के लिये सभी सुहागने सुबह जल्दी उठकर शुद्ध पानी से स्नान कर लें और लाल या पीले रंग की साडी पहनें , गहने पहनें ,पूरी तरह से खुद को भी सजाए, उसके पश्चात सबसे पहले पूजा के लिये एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखें। उसके बाद उसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढंक दीजिए । एक और दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा को रखा जाता है। अब वट वृक्ष पर महिलायें जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत पुष्प आदि सामग्री चढ़ाए । तथा सूत के धागे को वट वृक्ष पर बांधकर उसके सात चक्कर लगाएं और चने गुड़ का प्रसाद चढ़ाकर उसे वितरित करें। ये सब करने के बाद महिलाएं किसी ब्राह्मण पंडित से कथा सुने और आरती करें।
वट पूर्णिमा कथा
प्रचलित कथा के अनुसार सावित्री अपने पिता राजर्षि अश्वपति की एकमात्र ही संतान थी। सावित्री ने अपने पति के रूप में सत्यवान को चुना व उसके साथ विवाह करने का निर्णय लिया। लेकिन एक दिन नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान की आयु अल्प हैं, तब भी सावित्री ने अपना फैसला नहीं बदला। सावित्री अपने राजमहल के सारे सुख को त्याग कर अपने पति सत्यवान और उनके परिवार के साथ वन में रहने लगती है। सत्यवान वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे। जिस दिन सत्यवान के प्राणों के निकलने का दिन था। वे उसी दिन लकड़ियां काटने जंगल जाते है। वहां पहुचकर सत्यवान मुर्छित होकर जमीन पर गिर जाते है।
उसी वक्त यमराज सत्यवान के प्राण लेने पहुंच जाते है। सावित्री तीन दिन से व्रत कर रहीं थी और जिस समय उसके पति के प्राण जाने वाले थे। उस समय उस घड़ी को वह जानती थीं, इसलिए सावित्री यमराज को अपने पति के प्राण न लेने की प्रार्थना करती है। मगर यमराज उसकी बात नहीं सुनते है, तब सावित्री भी यमराज के पीछे जाने लगती है। यमराज सावित्री को बार-बार कहते है की वह उनके पीछे नहीं आए, लेकिन सावित्री जिद पर अड़ी रहती है। सावित्री के इस साहस और त्याग को देखकर यमराज प्रसन्न होते है और सावित्री से कोई भी तीन वरदान मांगने को कहते है ।
तभी सावित्री खुश होकर वरदान के रूप मे सबसे पहले सत्यवान के माता-पिता जो देख नहीं सकते है दृष्टिहीन है उनके आँखों की ज्योति मांगती है। उसके पश्चात जो राज्य उनका छिन लिया गया था, उस राज्य को मांगती है। तीसरे व अंतिम वरदान में वह खुद के लिए 100 बेटों की मां बनने का वरदान मांगती है। यमराज ने उसे तथास्तु कहते है और समझ जाते है कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब असंभव है। वह सावित्री को अखंड सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद देते है और सत्यवान को पुनः जीवनदान देते है। जब यह सब घटना घटित हुई। तब वह समय सावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी हुई थी। इसलिए इस दिन महिलाएं जीवन में सुख समृद्धि और अपने जीवनसाथी की लंबी आयु की कामना करते हुए वट वृक्ष की पूजा करती हैं और आशीर्वाद लेती है।
कुछ महत्वपूर्ण सवाल
क्या अविवाहित लड़की कर सकती है वट सावित्री व्रत?
हालांकि वट सावित्री व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, अविवाहित लोग भी इस त्योहार को मना सकते हैं। अविवाहित लड़कियां इस दिन एक आदर्श जीवन साथी की प्रार्थना के लिए बरगद के पेड़ और सर्वशक्तिमान की पूजा करती हैं।
वट सावित्री पूजा में किस भगवान की पूजा की जाती है?
पवित्र त्योहार देवी सावित्री को समर्पित है, जो एक बहादुर महिला थीं और यम राज (मृत्यु के देवता) को अपने मृत पति सत्यवान को एक नया जीवन देने के लिए मजबूर किया। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं, क्योंकि यह ‘त्रिमूर्ति’ – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करता है।
वट सावित्री पूजा के लाभ
वट सावित्री पूजा के बाद, भक्तों को निम्नलिखित लाभ मिल सकते हैं।
- विवाहित महिलाएं अपने पति के लिए लंबी उम्र और सौभाग्य ला सकती हैं।
- महिलाएं अपने जीवनसाथी के साथ एक लंबा रिश्ता पा सकती हैं।
- सात साल तक साथ रहने की आपकी ख्वाहिश मंजूर हो सकती है।
- युवा लड़कियों को एक प्यारा और देखभाल करने वाला साथी मिल सकता है।
- आपको मानसिक शांति और सद्भाव मिल सकता है।
- आप एक सुखी वैवाहिक जीवन जी सकते हैं।
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वट सावित्री पूर्णिमा आरती
अश्वपती पुसता झाला।।
नारद सागंताती तयाला।।
अल्पायुषी सत्यवंत।।
सावित्री ने कां प्रणीला।।
आणखी वर वरी बाळे।।
मनी निश्चय जो केला।।
आरती वडराजा।।1।।
दयावंत यमदूजा।
सत्यवंत ही सावित्री।
भावे करीन मी पूजा।
आरती वडराजा ।।1।।
ज्येष्ठमास त्रयोदशी।
करिती पूजन वडाशी ।।
त्रिरात व्रत करूनीया।
जिंकी तू सत्यवंताशी।
आरती वडराजा ।।2।।
स्वर्गावारी जाऊनिया।
अग्निखांब कचळीला।।
धर्मराजा उचकला।
हत्या घालिल जीवाला।
येश्र गे पतिव्रते।
पती नेई गे आपुला।।
आरती वडराजा ।।3।।
जाऊनिया यमापाशी।
मागतसे आपुला पती।
चारी वर देऊनिया।
दयावंता द्यावा पती।
आरती वडराजा ।।4।।
पतिव्रते तुझी कीर्ती।
ऐकुनि ज्या नारी।।
तुझे व्रत आचरती।
तुझी भुवने पावती।।
आरती वडराजा ।।5।।
पतिव्रते तुझी स्तुती।
त्रिभुवनी ज्या करिती।।
स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।
आणिलासी आपुला पती।।
अभय देऊनिया।
पतिव्रते तारी त्यासी।।
आरती वडराजा ।।6।।