शीतला अष्टमी 2025: जानिए तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और महत्व

भारतीय परंपराओं में शीतला अष्टमी का त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। इस त्योहार को मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इसके अलावा भी देश के कई हिस्सों में इस त्योहार को मनाया जाता है। शीतला अष्टमी को बसोड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं कि शीतला माता की पूजा करने से चिकन पॉक्स, स्माल पॉक्स, मीजिल्स सहित कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा शीतला माता की सच्चे मन से आराधना करने से मनुष्य को रोगों और कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। शीतला अष्टमी के दिन माता रानी की पूजा करने से क्या-क्या लाभ मिलता है, और इस पूजा को कैसे संपन्न कराया जाता है, आइए जानते हैं…

शीतला अष्टमी का महत्व

शीतला माता की पूजा को बसोड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह पूजा होली के बाद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। आमतौर पर यह होली के आठ दिनों के बाद पड़ती है, लेकिन कई लोग इसे होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को मनाते हैं। बासौदा रिवाज के अनुसार इस दिन खाना पकाने के लिए आग नहीं जलाते हैं। शीतला अष्टमी के दिन एक दिन पहले यानी सप्तमी के दिन ही खाना बनाते हैं और बासी भोजन का सेवन करते हैं। गुजरात में, कृष्ण जन्माष्टमी से ठीक एक दिन पहले बसोड़ा जैसा ही अनुष्ठान मनाया जाता है और इसे शीतला सतम के नाम से जाना जाता है। शीतला सातम भी देवी शीतला को समर्पित है और शीतला सतम के दिन कोई भी ताजा भोजन नहीं बनाया जाता है।

शीतला अष्टमी तिथि और मुहूर्त

शीतला अष्टमी 2025शनिवार, मार्च 22, 2025
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त07:10 ए एम से 07:24 पी एम
अवधि12 घण्टे 14 मिनट्स
शीतला सप्तमीमार्च 21, 2025
अष्टमी तिथि प्रारम्भमार्च 21, 2025 को 06:53 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्तमार्च 22, 2025 को 07:53 पी एम बजे

कैसे करें माता शीतला की पूजा

माता शीतला की आराधना करने वाले यानि शीतला अष्टमी के दिन उपासक को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए और नित्क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए। जहां तक हो सके पानी में गंगा जल मिलाकर ही स्नान करें। यदि गंगाजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, तो शुद्ध जल से स्नान करें। इसके बाद साफ सुथरे नारंगी रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद पूजा करने के लिए दो थालियां सजाएं। एक थाली में दही, रोटी, नमक पारे, पुआ, मठरी, बाजरा और सतमी के दिन बने मीठे चावल रखें। वहीं दूसरी थाली में आटे से बना दीपक रखें। रोली, वस्त्र अक्षत, सिक्का, मेहंदी रखें और ठंडे पानी से भरा लोटा रखें। घर के मंदिर में शीतला माता की पूजा करके बिना दीपक जलाकर रख दें और थाली में रखा भोग चढ़ाए। इसके अलावा नीम के पेड़ पर जल चढ़ाएं।

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माता शीतला को क्यों चढ़ता है बासी भोग?

शीतला माता की पूजा के दौरान बासी भोग लगाया जाता है। इसका कारण यह है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। इसीलिए एक दिन पहले ही भोजन बनाकर तैयार कर लिया जाता है और दूसरे दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर शीतला माता की पूजा करती है। इसके बाद मां को बासी भोजन यानी शीतला सप्तमी के दिन बनाए भोजन का भोग लगाया जाता है और घर के सभी सदस्य भी बासी भोजन ही खाते हैं। ऐसी मान्यताएं हैं कि शीतला माता की पूजा के दिन ताजे खाने का सेवन और गर्म पानी से स्नान नहीं करना चाहिए।

शीतला अष्टमी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार वृद्ध महिला ने अपनी दो बहुओं के साथ शीतला माता का व्रत किया। उन सभी को अष्टमी के दिन बासी खाना खाना था। इसके लिए उन्होंने सप्तमी को ही भोजन बनाकर रख लिया था। लेकिन, बहुओं को बासी भोजन नहीं करना था। क्योंकि उन्हें कुछ समय पहले ही संतान हुई थी। उन्हें बासी भोजन करने पर बीमार होने का डर था। उन्हें डर था कि अगर ऐसा हुआ तो उनकी संतान भी बीमार हो जाएगी। दोनों ने बासी भोजन ग्रहण किए बिना अपनी सास के साथ माता की पूजा की। उन्होंने पशुओं के लिये बनाए गए भोजन के साथ ही अपने लिये भी ताजा भोजन बना लिया और ताजा भोजन ग्रहण किया। जब सास ने उन दोनों से बासी भोजन करने को कहा तो वह टाल मटोल करने लगी। इसे देखकर माता रानी कुपित हो गई, और दोनों बहुओं के शिशुओं की मृत्यु हो गई। जब उनके ताजा भोजन करने की बात उनकी सास को पता चली, तो उसने दोनों को घर से बाहर निकाल दिया। दोनों अपने बच्चों के शवों को लिए रास्ते पर जा रही थी, तभी वे एक बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुकी।

इसके नीचे पहले से ही ओरी और शीतला नामक दो बहनें बैठी थी। दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जूं थी, जिससे वह बहुत परेशान थी। दोनों बहुएं ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई। उन दोनों ने शीतला-ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली। जूंओं का नाश होने से ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया, जिससे खुश होकर कहा, ‘तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल किया है, वैसे ही तुम्हारे पेट को शांति मिले। ‘दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटक रही हैं, लेकिन शीतला माता के दर्शन हुए ही नहीं। शीतला ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो, दुष्ट हो, दुराचारिनी हो, तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है।

शीतला अष्टमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था। यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माता को पहचान लिया। देवरानी-जेठानी ने दोनों ने माताओं का वंदन किया और गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं और अनजाने में हमने ताजा गरम खाना खा लिया था। हम आपके प्रभाव को नहीं जानती थी। आप हम दोनों को क्षमा करें। हम कभी भी ऐसी गलती नहीं दोहराएंगे। उनके पश्चाताप भरे वचनों को सुनकर माताएं प्रसन्न हुईं और मृतक बालकों को जीवित कर दिया। इसके बाद दोनों बहुएं खुशी-खुशी गांव लौट आई। गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए, तो दोनों का धूम-धाम से स्वागत करके गांव में प्रवेश करवाया। तभी से माता शीतला के व्रत का और अधिक महत्व बढ़ गया है।

निष्कर्ष

मां दुर्गा के अनेक रूपों में से एक है शीतला माता। उनकी आराधना के दिन शीतला अष्टमी को बसौड़ा भी कहा जाता है। माता शीतला को आरोग्य और शीतलता की प्रदाता माना जाता है। माता शीतला की पूजा करने से सुख-समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है। माता शीतला अपने अंदर छिपे रोग रूपी असुर का नाश करती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त माता शीतला की सच्चे मन से और पूरे विधि-विधान से उपासना करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और सारे रोगों का निवारण मिल जाता है।

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