16 सोमवार की व्रत कथा : क्या है महत्व और लाभ
हिन्दू धर्मावलंबियों में 16 सोमवार व्रत का काफी बड़ा महत्व है। व्रत करने वाले भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूरे दिन कठिन उपवास करते है। भगवान शिव को देवों का देव माना गया है। हिन्दू धर्मावलंबियों में भगवान शिव को सबसे बड़े देवता के रूप में पूजा जाता है। इनकी आराधना भगवान ब्रह्मा तथा श्री विष्णु भी करते है। त्रिदेवों में भगवान शिव को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों के जीवन में चल रहे सारे कष्ट दूर हो जाते है। भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है। जैसे कि उनका नाम है वैसे ही भक्तों पर जल्दी प्रसन्न भी होते है। सभी देवी देवताओं में भगवान शिव को प्रसन्न करना भक्तों के लिए सबसे आसान होता है। जो व्रत करने वाले सोलह सोमवार का व्रत श्रद्धा भाव से करता है। उन्हें मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। सावन का महीना भगवान शिव सबसे प्रिय महीना है। इस महीनें में भगवान शिव पर जलाभिषेक करने पर शिवजी जल्द प्रसन्न होते है। साथ ही उनकी पहले से मन में चले आ रहे मनोकामना कम समय में ही पूरी हो जाती है।
सोलह सोमवार का महत्व और दंतकथाएं
एक समय की बात है जब भगवान शिव और माता पार्वती एक साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक पहुंचे। वहां दोनों एक शिव मंदिर में पहुंचे और वहां कुछ समय व्यतीत करने का निर्णय लिया।
मंदिर की भव्यता तथा वहां की मनोरम वातावरण में भगवान शिव व माता पार्वती शांति व सकून मिल रहा था। उस समय माता पार्वती भगवान शिव के प्रसन्न मुद्रा में देखकर उनसे चौसर-पांसे खेलने का अनुरोध करती है। इस पर शिवजी भी खेल पर सहमति जताते हुए खेल प्रारंभ कर देते है। उस दौरान शिवजी माता पार्वती से स्वयं को खेल में जीतने की बात कहते है। इसी प्रकार दोनों खेल में जीत को लेकर वार्तालाप होता रहता है। तभी मंदिर का पुजारी पूजा करने आता है। उस दौरान माता पार्वती पुजारी से पूछती है कि इस खेल में जीत किसकी होगी? इस प्रश्न पर पुजारी माता पार्वती के जीत के प्रति विश्वास नहीं जताता है। उसने बोला कि इस खेल में शिव के अलावे दूसरा कोई नहीं जीत सकता। इसलिए पुजारी भगवान शिव के जीत के प्रति निष्ठा व्यक्त करता है। हालांकि खेल में जीत माता पार्वती की होती है। ऐसे पुजारी के द्वारा जीत पर मिथ्या बोले जाने पर माता पार्वती ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे देती है। इसके बाद दोनों वहां से अंतर्ध्यान हो जाते है।
श्राप के पश्चात मंदिर का पुजारी कोढ़ होने का दंश झेलने लगता है। तभी कुछ दिन बीत जाने के पश्चात अप्सराएं मंदिर पूजा करने आती है। अप्सराएं जब पुजारी की यह हाल देखती है तो उस से उसके कोढ़ी होने का कारण पूछती है। तब पुजारी ने सारी अपनी व्यथा सुनाता गया। सारी बातें सुनकर अप्सराओं ने पुजारी से 16 सोमवार का व्रत कर भगवान शिव को प्रसन्न करने की बात बताती है। साथ ही व्रत की पूरी विधि- विधान भी बताती है। साथ ही बताती है कि व्रत करने के पश्चात शिवजी प्रसन्न होकर जल्द ही संकट दूर कर देंगे। पुजारी ने अप्सराओं द्वारा विधि विधान से 16 सोमवार व्रत प्रारंभ कर देता है। अंत में व्रत का उद्यापन भी करता है। व्रत के प्रभाव से पुजारी पूर्ण रूप से रोगमुक्त हो जाता है। कुछ दिनों बाद भगवान शिव माता पार्वती के पुन: उस मंदिर में पहुंचते है।वहां मंदिर के पुजारी को रोगमुक्त देखकर माता पार्वती उससे इस श्राप से मुक्ति का उपाय पूछती है। इस पर पुजारी बताया कि श्राप मिलने के बाद यहां अप्सराएं मंदिर में पूजा करने के लिए आई थी। जिसने मेरी यह हालत देखकर 16 सोमवार के व्रत करने का विधान बताया था। मैं उसी प्रकार से भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत किया। व्रत के पूर्ण होने के पश्चात पुनः पहले की तरह हो गया। साथ ही सभी प्रकार सुख समृद्धि भी प्राप्त हुआ। पुजारी की बातें सुनकर माता पार्वती ने भी मनोवांछित फलों की प्राप्ति के लिए16 सोमवार का व्रत किया।
यहां आपको बता दें कि बर्थ चार्ट में जिन लोगों की चंद्रमा कमजोर है, उन्हें चंद्रमा से सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने के लिए 16 सोमवार का व्रत करना चाहिए। इतना ही नहीं अपनी माता के बेहतर स्वास्थ्य के लिए भी आप 16 सोमवार का व्रत कर सकते हैं।
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सोलह सोमवार व्रत कौन करता है?
सोलह सोमवार व्रत को शक संवत में वर्णित सोमवार के अनुसार मनाया जाता है। इस दौरान, व्यक्ति लगातार 16 सोमवारों तक भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए उपवास रखता है। हिंदू मिथकों के अनुसार, सोमवार भगवान शिव का है और यदि आप सोमवार (विशेष रूप से विक्रम संवत कैलेंडर के श्रावण मास) का उपवास रखते हैं, तो आपकी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।
यह व्रत व्यक्ति की जीवन में अच्छी चीजों को प्राप्त करने की इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए, वह ईमानदारी से प्रार्थना कर भगवान शिव की पूजा करता है। मुख्य रूप से, व्रत अविवाहित लड़कियों द्वारा बेहतरीन और प्रेमपूर्ण जीवनसाथी पाने के लिए रखा जाता है। यदि आप भगवान शिव को प्रसन्न करने में सफल रहते हैं, तो आप अपनी मनोकामना पूरी कर सकते हैं। सोलह सोमवार व्रत श्रावण मास में मनाया जाता है और इसे सबसे शुभ व्रत माना जाता है।
कैसे करें सोलह सोमवार व्रत का पालन?
श्रावण मास के पहले सोमवार से लगातार 16 दिनों तक व्रत रखना शुरू करें।
सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
भगवान शिव के नजदीकी मंदिर में जाएं और दर्शन करें।
भगवान शिव, भगवान गणेश और मां पार्वती की प्रार्थना करें।
भगवान शिव के शिवलिंग पर जलाभिषेक करें। अनुष्ठान करते समय देवताओं को पंचामृत, अखंडित चावल, फल, चंदन और इत्र अर्पित करें।
मंत्र का जाप करने से पहले भगवान शिव को बेलपत्र, बेल फल और भांग के पत्ते भी चढ़ा सकते हैं।
अपने घर के मंदिर के पास सोलह सोमवार की कथा का पाठ करें।
बार-बार खाने से बचना चाहिए या फिर नमकीन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
16 सोमवार तक व्रत रखना जारी रखें।
16 सोमवार को अपनी प्रार्थना में भगवान शिव का स्मरण कर पूरी पूजा संपन्न करें
भगवान शिव को प्रसन्न करने के अन्य तरीके
सोलह सोमवार व्रत के अलावा, कुछ चीजें हैं जो आपको भगवान शिव की पूजा करने के लिए करनी चाहिए। जैसा कि हम जानते हैं कि श्रावण मास भगवान शिव का है। इसलिए, यदि हम इस महीने के प्रत्येक सोमवार को व्रत रखते हैं, तो भगवान शिव हम पर अपना आशीर्वाद प्रदान कर सकते हैं।
मासिक शिवरात्रि
मासिक शिवरात्रि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन फाल्गुन के महीने में भगवान शिव के लिंग रूप में प्रकट होता है। इस दिन, भक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान करते हैं। उनमें से कई मानते हैं कि यह भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे आसान तरीका है।
महा मृत्युंजय जाप
यह सभी मंत्रों का राजा है और इसलिए आमतौर पर भक्तों द्वारा इसका जाप किया जाता है। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति जीवन की परेशानियों से छुटकारा पा सकता है। यह मंत्र एक ऐसे व्यक्ति के लिए भी प्रभावी है जो खराब स्वास्थ्य से पीड़ित है या वह मृत्यु शय्या पर पड़ा है। इससे उन्हें तुरंत राहत मिलती है। इसलिए, भगवान शिव का हर भक्त महामृत्युंजय जाप की शक्ति में विश्वास करता है।
निष्कर्ष
सोलह सोमवार व्रत हमारे लिए कई तरह से फायदेमंद हैं। लगातार 16 सोमवारों का व्रत रखने से व्यक्ति न केवल अपने जीवन की बाधाओं के खिलाफ जीत सकता है, बल्कि भगवान शिव से विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त कर सकता है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग भगवान शिव की सच्ची प्रार्थना करते हैं, उनकी मनोकामना पूरी हो सकती है। यहां तक कि, भगवान शिव से की गई आपकी छोटी प्रार्थना व्यर्थ नहीं जा सकती है। यदि आप अपने घर के मंदिर के सामने या भगवान शिव के मंदिर में जाकर उन्हें याद करते हैं तो भगवान प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद बरसाते हैं।