कैसा हो स्कूल (School) का वास्तु
स्कूल के लिए वस्तु: सार
स्कूल या विद्यालय, ज्ञान का मंदिर कहा जाता है। ऐसी जगह, जहां बच्चों को बहुत छोटी उम्र में ही ज्ञान का पाठ पढ़ाया जाता है, सिखाया जाता है कि किस तरह जीवन में सीख कर आगे बढ़ा जाता है। घर के अलावा स्कूल ही ऐसी दूसरी जगह होती है जहां पर एक बच्चा सबसे ज्यादा रहता है। यही वह जगह होती है, जहां जाने के बाद एक बच्चा छात्र बनता है। वह सीखने के लिए हमेशा तैयार रहता है। कई सालों के बाद वह एक कुशल और जिम्मेदार नागरिक बन जाता है।
जो लोग समाज में कुछ अच्छा काम करना चाहते हैं, जो चाहते हैं कि समाज को सही दिशा में ले जाने के लिए कुछ किया जाना चाहिए, वे स्कूल शुरू करते हैं। दुनिया में कई तरह के स्कूल मौजूद हैं। कुछ स्कूल अध्ययन से संबंधित हैं तो कुछ व्यावहारिक ज्ञान से जुड़े हैं। कुछ स्कूल हमारी संस्कृति, धर्म और मानवता के बारे में पढ़ाते हैं। हमेशा यह माना जाता है कि स्कूल बच्चे के लिए नींव का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर स्कूल के निर्माण को गलत तरीके से किया गया है, यह गलत दिशा में बनाया गया तो यह नुकसानदायक साबित हो सकता है। इसलिए हम स्कूल निर्माण में किन वास्तु टिप्स का ध्यान रखा जाना चाहिए, यह आपको बताने जा रहे हैं।
स्कूलों के लिए वास्तु टिप्स
वास्तु शास्त्र में स्कूल बनाने और क्षेत्र को शुभ और सकारात्मक बनाए रखने के लिए कई दिशा-निर्देश मौजूद हैं। इन नियमों का पालन करना न केवल बच्चों की एकाग्रता को बढ़ाता है, पढ़ाई में उनके ध्यान के लिए बेहतर रखने के लिए बल्कि स्कूल के संचालकों के लिए समृद्धि लाने में मदद करता है।
शैक्षणिक संस्थानों के लिए वास्तु हर उस पहलू पर विचार करता है, जो उसके विद्यार्थियों के विकास में, उनकी प्रतिभा तलाशने में उनकी मदद कर सकते हैं। स्कूल से उनका जुड़ाव पैदा करने, उनमें उत्साह का संचार करने और स्कूलों के लिए वास्तु शास्त्र में दिए गए कुछ सुझाव दिए गए हैं।
विद्यालय का स्थान:
स्कूल की जगह एक अहम पहलू है। यदि जगह सही है, तो सफलता आपकी ओर दौड़ती है। वास्तु के अनुसार स्कूल का सही जोन शहर के बीच में होना चाहिए। विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए पहुंचना आसान, व्यावहारिक हो जाता है और कई छात्रों को आकर्षित करता है।
स्कूल का प्रवेश द्वार:
चाहे वह स्कूल हो या शिक्षण से जुड़ी कोई भी संस्था, प्रवेश उत्तर या पूर्व दिशा में रखना चाहिए। इन दिशाओं में प्रवेश करना शुभ माना जाता है। यदि स्कूल बहुत बड़ा है, तो भ्रम को दूर करने और बच्चों की आवाजाही को और आसान करने के लिए उत्तर या पूर्व दिशा में एक से अधिक प्रवेश द्वार बनाए जा सकते हैं।
प्रार्थना सभागार के लिए स्थान:
एक स्कूल में हमेशा एक प्रार्थना कक्ष होता है, जहां सभी छात्र एक साथ एकत्रित होते हं। अपने दिन की शुरुआत प्रार्थना के साथ करते हैं। सर्वोत्तम संभव परिणाम प्राप्त करने और बेहतर ध्यान केंद्रित करने के लिए उत्तर-पूर्व दिशा में प्रार्थना के लिए सभागार बनाया जा सकता है।
रिसेप्शन की जगह:
एक स्कूल रिसेप्शन होना बहुत ही जरूरी है। यह वह जगह है जहां स्कूल, प्रवेश प्रक्रिया, पाठ्यक्रम, शिक्षकों, कक्षा व सुविधाओं के बारे में सभी प्रश्नों के जवाब दिए जाते हैं। वास्तु के अनुसार रिसेप्शन मुख्य द्वार के बाद और भूतल पर बनाया जाना चाहिए ताकि माता-पिता या अभिभावकों के सवालों और शंकाओं का जल्द से जल्द जवाब दिया जा सके।
कक्षाओं का स्थान:
जिस स्कूल में कक्षाएं सही न हो वह कैसे स्कूल हो सकता है। कक्षाओं को विशेष रूप से छात्रों के आराम से बैठने और पूरी एकाग्रता के साथ अध्ययन करने के लिए बनाया जाता है। कक्षाओं की संख्या स्कूल की ग्रेड और डिविजन पर निर्भर करती है, उच्च ग्रेड वाले स्कूलों में अधिक कक्षा कक्ष होते हैं। कक्षाओं का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए कि उनका मुख पूर्व या उत्तर की ओर हो। इसी तरह, छात्रों की बैठने की स्थिति को कक्षा के पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठने पर सबसे अच्छा माना जाता है।
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हवादार हो परिसर:
क्या आप बिना वेंटिलेशन वाले कमरे में बैठ सकते हैं? क्या बिना खिड़की वाले कमरे में इतने सारे बच्चों के साथ पढ़ना संभव है? क्या इससे बच्चों को घुटन महसूस नहीं होगी। एक स्कूल की कक्षाओं के लिए जरूरी है कि कमरों में प्रॉपर वेंटिलेशन हो। इसके लिए आप खिड़कियां बना सकते हैं और वेंटिलेटर का इस्तेमाल कर सकते हैं। खिड़कियों को उत्तर या पूर्व दिशा में बनाया जाना चाहिए। इस दिशा में छत पर एक एग्जास्ट फेन भी लगाना चाहिए। खिड़कियों को खुला छोड़ देना चाहिए, हवा और धूप को कमरे में आने दें। सकारात्मकता और अच्छी ऊर्जा फैलाएं।
बिजली के उपकरण:
स्कूल में जनरेटर, इनवर्टर और म्यूजिक सिस्टम जैसे कई बिजली के उपकरण लगाए जाते हैं। दुर्घटनाओं से बचने के लिए जनरेटर और बिजली के मीटर लगाने के लिए दक्षिण-पूर्व दिशा सबसे अच्छी होती है।
शौचालयों का स्थान:
स्कूल के हर फ्लोर पर शौचालय बनाया जाना चाहिए। एक स्कूल में बहुत सारे छात्र होते हैं, जिन्हें विभिन्न मंजिलों पर शौचालयों के उपयोग की आवश्यकता पड़ती है। वास्तु के अनुसार शौचालय का निर्माण ईशान कोण में होना चाहिए।
रसोई और कैंटीन के लिए स्थान:
स्कूल में छात्रों और शिक्षकों के लिए रसोई, कैंटीन और रिफ्रेशमेंट एरिया होता है। जब भी छात्रों को भूख लगती है तो वे सीधे कैंटीन जाते हैं। वहां से अपनी मनपसंद खाने को लेते हैं और पेट भर कर खाना खाते हैं। कैंटीन और रसोई के लिए सबसे उपयुक्त स्थान दक्षिण-पूर्व दिशा में होता है। जहां तक बात सर्विस की है वह पूर्व दिशा में मुंह करके की जानी चाहिए। वास्तु के इन नियमों की पालना करने से कैंटीन फायदे में रहती है साथ ही मन की संतुष्टि और प्रसन्नता भी बरकरार रहती है।
प्रशासनिक ब्लॉक:
हर स्कूल में एक प्रशासनिक ब्लॉक बनाया जाता है। इस ब्लॉक में अकाउंट्स या लेखा से जुड़े विभाग बनाए जाते हैं। एक स्कूल में ऐसी बहुत सारी चीजें होती हैं, जिनके सही लेखांकन की आवश्यकता होती है। इससे स्कूल के बजट और खर्च का अनुमान लगाया जाता है। उत्तर या पूर्व दिशा में प्रशासनिक ब्लॉक का निर्माण किया जाना चाहिए। इस विभाग के साथ ही वित्त विभाग को भी बनाया जाना चाहिए। यह लाभदायक सिद्ध हो सकता है। यह वित्त को व्यवस्थित रखते हैं, खर्चों को नियंत्रित रखते हैं और आय को दोगुना करते हैं।
छात्रों के लिए खेल का मैदान:
खेल के मैदान के बिना स्कूल को पूरा नहीं माना जा सकता है। मैदान छात्रों के लिए एक ऐसा वातावरण तैयार करता है, जहां बच्चों का शारीरिक विकास सही तरीके से कर पाते हैँ। यह उनके लिए ऊर्जा और उत्साह दोनों का संचार करता है। पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में बगीचे का निर्माण बच्चों को सफलता की ओर ले जाता है और उनके कौशल को बढ़ाता है। आप सभी खेलों और उनके उपकरणों के लिए एक छोटा स्टोर भी बना सकते हैं। बच्चों में खेल भावना, टीम वर्क और नेतृत्व कौशल को बढ़ावा देने के लिए खेल के मैदान का भरपूर उपयोग किया जा सकता है।
सामान्य प्रश्न (FAQs)
छात्रों के अध्ययन के लिए कौन सी दिशा उपयुक्त है?
बच्चों के लिए यह सवाल काफी अहम है। आखिर रीडिंग सेक्शन किस तरह हो। अध्ययन के लिए, रीडिंग सेक्शन को पूर्व और उत्तर-पूर्व की ओर स्थापित किया जा सकता है। दूसरी ओर उच्च शिक्षा से जुड़े अध्ययन व उसकी जानकारी को उत्तर दिशा में रखना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि उगता हुआ सूर्य पूर्व दिशा से संबंधित है और उत्तर दिशा धन के देवता कुबेर से संबंधित है, ऐसे में इन दिशाओं में रहना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है।
क्या पश्चिम दिशा पढ़ाई के लिए उपयुक्त है?
किसी भी नए आविष्कार या शोध जैसे काम से जुड़ी पढ़ाई के लिए हमेशा पूर्व दिशा में जाकर अध्ययन करना चाहिए। वहीं ऐसे बच्चे जिनका मन पढ़ाई में नहीं लगता है, जो पुस्तकों से दूर रहते हैं, ध्यान नहीं लगा पाते। उन्हें पश्चिम दिशा में बैठाकर पढ़ाई करानी चाहिए, परीक्षा लेनी चाहिए।
आविष्कारशील या सख्त प्रकार के काम के लिए, पूर्व की ओर इशारा करने पर विचार करना चाहिए। यदि बच्चे अपनी पुस्तकों को पूरे ध्यान से पढऩे में असमर्थ हैं और लगातार अन्य अप्रासंगिक चीजों में व्यस्त रहते हैं, तो उन्हें पश्चिम की ओर इशारा करते हुए जांच करनी चाहिए।
समापन
अंत में बात करें तो कुल मिलाकर स्कूल ऐसे संस्थान होते हैं, जो एक बच्चे के जीवन में नींव के रूप में काम करते हैं। कोई भी बच्चा तब तक बुलंदियों तक या शिखर तक नहीं पहुंच सकता है, जब तक विभिन्न और महत्वपूर्ण विषय के बारे में नहीं सीख पाता। ऐसे में जरूरी है कि स्कूल निर्माण के समय वास्तु शास्त्र के नियमों की पालना की जाए। इस पालना के जरिए नकारात्मकता से बचते सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह लाया जा सके। बच्चों को ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित कराया जा सके। बच्चों की प्रतिभा को निखारा जा सके। उनके कौशल को विकसित किया जा सके। उनको अंत में समाज की सेवा करनी है। ऐसे में अगर बेहतर समाज चाहते हैं हम तो हमें अच्छे स्कूल विकसित करने होंगे और अच्छी शिक्षा देनी होगी।
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