कूर्म जयंती का महत्व क्या होता है


कूर्म जयंती का महत्व

कूर्म जयंती हिंदू धर्म का एक बहुत ही शुभ त्योहार है। यह दिन भगवान श्री हरि विष्णु के दूसरे अवतार – कूर्म के लिए मनाया जाता है। इस दिन पूरे भारत में भगवान विष्णु की मूर्तियों की पूजा की जाती है और आशीर्वाद प्राप्त करने और खुशहाल व समृद्ध जीवन जीने के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।


कूर्म जयंती हिंदुओं के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

कूर्म जयंती इसलिए मनाई जाती है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु ने खुद को एक कछुए के रूप में प्रकट किया था, जिसे संस्कृत भाषा में “कूर्म” के रूप में जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर या “पंचांग” के अनुसार, “वैशाख” के महीने के पूर्णिमा को कूर्म जयंती मनाई जाती है।

पवित्र ग्रंथ “भागवत पुराण” के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि मंदराचल पर्वत को सहारा देने के लिए भगवान विष्णु ने “क्षीर सागर मंथन” के दौरान यह अवतार लिया, और इस दिन की याद में लोगों ने कूर्म जयंती मनाना शुरू कर दिया। जैसा कि यह अवतार एक कछुए के रूप में है, ऐसे में माना जाता है कि इस दिन निर्माण कार्य शुरू करना या “वास्तु” के अनुसार एक नए घर में स्थानांतरित करना बहुत भाग्यशाली है। तो, यह है कूर्म जयंती की कहानी।


भगवान विष्णु को यह अवतार लेने की आवश्यकता क्यों पड़ी?

हिंदू पवित्र ग्रंथ “भागवत पुराण” के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब “क्षीर समुद्र मंथन” हो रहा था, तब मंदराचल पर्वत को मथनी के रूप में इस्तेमाल किया गया और वासुकी-नाग राज (भगवान विष्णु का वाहन) को समुद्र मंथन करने के लिए रस्सी के रूप में काम में लिया गया।

मंथन के दौरान, देवताओं और राक्षसों को इसे मथने के लिए कहा गया, ताकि वे इससे अमृत बाहर निकाल सके। हालांकि, गुरुत्वीय खिंचाव और भार के कारण पर्वत डूबने लगा और पर्वत को डूबने से रोकने के लिए भगवान विष्णु ने एक बड़े कछुए के रूप में अवतार लिया और पर्वत को अपनी पीठ पर ले लिया, ताकि प्रक्रिया जारी रह सके। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के बिना समुद्र मंथन और देवताओं के लिए इसमें से 14 रत्नों को निकालने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती थी।

मंथन के दौरान अमृत और जहर दोनों निकाला गया और अमृत पीने के लिए दो समूहों यानी देवों (देवताओं) और असुरों (दानव) के बीच भारी अराजकता थी। तब भी भगवान विष्णु के तीसरे अवतार ने इस लड़ाई का हल निकाला।
जब जहर बचा रह गया, तब ब्रह्मांड को विघटन से बचाने के लिए भगवान शिव ने उसे अपने गले में स्थान दिया,

जिसके कारण वह “नीलकंठ” के रूप में प्रसिद्ध हुए और पूजे जाने लगे।

यही कारण है कि कूर्म जयंती लोगों के दिलों में बहुत मायने रखती है।

किसी ज्योतिषी से सलाह लें


वर्षों से निभाए जा रहे रीति रिवाज

कूर्म जयंती के रीति रिवाजों की बात करें तो भक्त इस दिन सख्त उपवास का पालन करते हैं। व्रत इस विशेष दिन से पहले वाली रात से शुरू होता है और यह पूरे दिन चलता रहता है। इस दिन उपवास रखने वाले भक्त रातभर जागकर “विष्णु सहस्त्रनाम” और अन्य वैदिक मंत्रों का पाठ करते हैं।

आंध्र प्रदेश में एक मंदिर है, जिसके अंदर भगवान कूर्म की मूर्ति स्थापित है। हर साल भक्त अपने अपार दुख और प्रसन्नता के साथ इस मंदिर में यह दिन मनाते हैं। लोग शाम को मंदिर में भगवान की पूजा करने के लिए आते हैं और विभिन्न प्रसाद जैसे फल, मिठाई और नारियल अर्पित करते हैं और ब्राह्मणों व गरीबों को इच्छानुसार भोजन, वस्त्र और धन के रूप में दान देते हैं।


महत्वपूर्ण तारीखें और समय

उत्सव दिवस: 26 मई 2021

सूर्योदय: प्रातः 5:35

सूर्यास्त: शाम 7: 00 बजे

कूर्म जयंती मुहूर्त: अपराह्न 4:26 से अपराह्न 4:43 तक

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ : 25 मई 2021 को अपराह्न 8:29 से

पूर्णिमा तिथि समाप्त : 26 मई 2021 को अपराह्न 4:43 पर समाप्त


कूर्म जयंती के लाभ

इस दिन भगवान कूर्म की पूजा करने से व्यक्ति को आगे चलकर सफलता मिल सकती है। यह जीवन में सभी नकारात्मक ऊर्जाओं को समाप्त करने और जीवन में धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का स्वागत करने में मदद करता है। यह किसी के जीवन में प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता को दूर करने में भी मदद करता है।

हमें उम्मीद है कि आप वास्तव में कूर्म जयंती को समझ गए होंगे। और हो सकता है कि भगवान कूर्म आप पर कृपा बनाएं और इसे खूबसूरत बना दें।



Choose Your Package to Get 100% Cashback On First Consultation