बच्चों के लिए मंत्रोच्चार क्या मायने रखता है?

जैसा की हम सभी जानते हैं कि हमारे देश की मूल भाषा या जिसे हम शास्त्रीय भाषा भी कह सकते हैं, वो है संस्कृत। श्लोक संस्कृत भाषा का ही एक लयबद्ध स्वरूप है। श्लोक में चार पद या आठ-आठ अक्षरों के चौथाई छंद होते हैं। कभी-कभी, यह प्रत्येक 16 अक्षरों के दो आधे छंद हो सकते हैं।

तकनीक के बढ़ते प्रयोग के कारण अब श्लोक आसानी से हमारी पहुंच में आ गए हैं। ये सुलभ हैं और सभी के लिए उपलब्ध भी हैं। श्लोकों और मंत्रों की अवधारणा और महत्व को समझना हमारे लिए आवश्यक है। प्रत्येक श्लोक का एक महत्वपूर्ण अर्थ होता है। ऐसे में बच्चों को श्लोक या उसका अर्थ बताने से पहले हमें चाहिए कि हम बच्चों को सही तरीके से श्लोक पढऩा या उनका जाप करना सिखाएं।

श्लोकों की उत्पत्ति वैदिक काल से हुई मानी जाती है। नियमित रूप से श्लोक का जाप करने से एकाग्रता में वृद्धि होती है। हमारे पूर्वजों ने इन दिव्य ध्वनियों व जप की पवित्र विधि का उपयोग दिव्य आत्माओं के साथ संवाद स्थापित करने के लिए भी किया था।

विभिन्न सर्वे और अध्ययनों से पता चला है कि जो माता-पिता बच्चों के लिए मंत्रों और श्लोक का जाप करते है उनके मन पर इसका बड़ा असर होता है। मंत्रों का जाप मन की मदद करता है, मन को शांत करता है और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है। पवित्र मंत्रों और श्लोकों का जाप और ध्वनि आस पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।


बच्चों के लिए श्लोक सिखाने के लाभ

प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वज संस्कृत में मंत्रों और श्लोकों का जाप करते हुए पूजा-पाठ करते रहे हैं। वैसे तो श्लोक सीखने के लिए भाषा की जानकारी जरूरी नहीं है, फिर भी उसका आशय या अर्थ समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान होना जरूरी है। यह फायदेमंद रहता है। 3-5 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए श्लोकों का पाठ करने के अपने फायदे और लाभ हैं।

बच्चों के लिए श्लोक का जप

श्लोकों का जाप मन को सक्रिय करता है, एकाग्रता शक्ति को बढ़ाता है और याददाश्त को तेज करता है। मस्तिष्क को समुचित कार्य करने के लिए अधिक ऑक्सीजन की जरूरत होती है। श्लोकों का जाप करने के दौरान लयबद्ध या विशेष तरीके से श्वास ली जाती है। यह मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी को पूरा करती है। जो मस्तिष्क को तेज करने में मदद करता है और बच्चों में उत्साह का संचार भी होता है। बच्चों के लिए श्लोक जप का सबसे अच्छा समय सुबह और शाम का होता है।

चिकित्सा में मददगार

श्लोकों के जप के दौरान हमारे शरीर में एक अलग तरह का लयबद्ध कंपन होता है, इसका शरीर पर चिकित्सकीय प्रभाव होता है। बच्चों के लिए श्लोक के जप के दौरान होने वाला कंपन दर्द से राहत देता है। इसके साथ ही यह शरीर की मेटाबॉलिक प्रक्रिया को भी बढ़ाता है।

तनाव प्रबंधन में सहायक

प्रतिदिन श्लोकों का अभ्यास कई परेशानियों से निजात दिला सकता है। यह रक्तचाप को कम करने, दिल की धड़कन, एड्रेनालिन के स्तर को स्थिर करने और उच्च कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है। यहां तक कि कई विशेषज्ञ भी सुझाव देते हैं कि उनके मरीज रोजाना मंत्रों का जाप करें। जो मंत्रों का जाप करने में सक्षम नहीं वे ऑडियो सुन सकते हैं क्योंकि यह भी तनाव को दूर करने में मदद कर सकता है।

मस्तिष्क को मजबूत बनाएं

मंत्रों के जाप के दौरान उत्पन्न होने वाली सकारात्मक ऊर्जा मन की शक्ति को बढ़ाने में मदद कर सकती है। जप करने से शरीर की प्रत्येक नस या तंत्रिका सक्रिय होती है। यही वजह है कि हमारे पूर्वज दिन की शुरुआत मंत्रों या श्लोक के साथ किया करते थे।


श्लोक कैसे बच्चों के विकास में मदद करते हैं?

ऐसे कई देश हैं जो पारम्परिक जीवन शैली और सभ्यता को अपना रहे हैं। उनका पालन कर रे हैं। परंपराएं जीने का तरीका बताती हैं। हमारा पूरा दिन हमारे दिन की शुरुआत पर निर्भर करता है। अगर हम खुश होकर जागते हैं, तो हम पूरे दिन सकारात्मक और ऊर्जावान महसूस करेंगे। हमें सुबह प्रार्थना करनी चाहिए। हमें प्रकृति को प्रति आभार प्रकट करना चाहिए। कुछ ऐसी चीजें याद रखने योग्य हैं कि 3-5 साल के बच्चों के लिए श्लोक कैसे काम करते हैं।

  • श्लोक मन और तन, दोनों से जुड़े रोगों को सही करता है। यह शरीर और आत्मा को ठीक करता है।
  • यह तनाव, क्रोध, आक्रामकता और ऐसी अन्य भावनाओं को दूर करता है। श्लोक या मंत्र आपके बच्चे के दिमाग को शांत करते हैं। यह उनके विचारों को शांत और शुद्ध करता है।
  • श्लोक के जाप से शरीर के आंतरिक कार्यों को संशोधित करने में मदद मिलती है।

छोटे बच्चों सिखाने के लिए सहज और सरल श्लोक

श्लोकों का जाप मस्तिष्क की शक्ति को बढ़ाता है। बच्चों के लिए श्लोकों का जाप करके बौद्धिक कौशल में भी सुधार किया जा सकता है। नियमित रूप से श्लोक का अभ्यास करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। यहां बच्चों के लिए कुछ सरल श्लोक दिए गए हैं, जो माता-पिता अपने बच्चों को सिखा सकते हैं।

बच्चे कम उम्र में ही ये श्लोक और मंत्र सीख सकते हैं। उनकी याददाश्त अच्छी होती है, आसानी से सब कुछ समझ सकती है। कहते हैं ना कि एक सकारात्मक दिमाग और रवैया पूरे दिन को बदल सकता है।

उठने के समय आप अपने हथेलियों को खोलकर उनमें देखें और इस मंत्र का उच्चारण करें:

कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम्।

अर्थ: इसका अर्थ है कि मेरी हथेलियों के अग्र भाग में देवी लक्ष्मी का निवास है। मध्य भाग में विद्यादात्री सरस्वती का निवास है और निचले भाग में भगवान विष्णु का निवास है। मैं सुबह सवेरे इनके दर्शन करता हूं।

घर या मंदिर में जपने के लिए श्लोक:

अन्यथा शरणं नास्तिक, त्वमेव शरणं मम।
तस्मात करुण्य भवन, रक्षा रक्षा जनार्दन।

अर्थ: इस श्लोक का अर्थ है भगवान विष्णु उद्धार करने वाले और जगत के रक्षक हैं। जब भगवान आपके पास होते हैं, तो आपको अपनी रक्षा के लिए किसी की आवश्यकता नहीं होती है।

गुरू के समक्ष जपने वाला मंत्र

गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वर।
गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नम:।

अर्थ: इसका अर्थ है गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।

सत्य और ज्ञान का श्लोक

असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय।
ओम शांति शांति शांति:।
अर्थ: हे ईश्वर हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।

शाम को जपने वाले श्लोक

दीपम् ज्योति परब्रह्म, दीपं सर्व सनातनम्।
दीपेना साधते सर्वम्, संध्या दीपम नमोस्तुते।

अर्थ: इसका अर्थ है कि दीपक की ज्योति परब्रह्म के समान है, मैं इसकी ओर प्रवृत्त हो रहा हूं। इसका प्रकाश ज्ञान के समान है। यह मेरे मन और आत्मा के अंधकार को दूर करने में मदद करता है।

सोने से पहले का श्लोक

रामस्कंदम हनुमंथम, वैनेत्य वृकोदरामी।
शायनेया स्मारे नित्यम, दुस्वप्नम तस्य नश्यति।

अर्थ: इसका अर्थ है कि भगवान हनुमान श्री राम के भक्त हैं, भीम और गरुड को भी मानते हैं। सोने से पहले हनुमंत को याद करने से चैन की नींद आएगी और बुरे स्वप्न नहीं सताएंगे।


बच्चों के लिए भगवद गीता के प्रमुख श्लोक

भारतीय सभ्यता दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस संस्कृति की वेद, उपनिषद, योग, पुराण, आयुर्वेद सबसे बड़ी देन हैं। ऐसी तरह भगवद गीता को सबसे महान नैतिक और आध्यात्मिक पुस्तकों में से एक माना जाता है। गीता सबसे पवित्र पुस्तकों में से एक है। कई विशेषज्ञों और पौराणिक शोधकर्ताओं का कहना है कि भगवद गीता एक गाइडबुक की तरह है। इसमें हमारे जीवन की गतिविधियों पर आधारित सभी प्रश्न और उनके उत्तर हमें मिल सकते हैं। इसमें कई जादुई श्लोक हैं, जो जीवन की राह पर हमें आगे बढ़ाते हैं.

हम ऐसे सात श्लोक के बारे में बता रहे हैं, जो बच्चों के लिए सही साबित हो सकते हैं। बच्चों के लिए भगवद गीता के श्लोक एकाग्रता को बेहतर करने के साथ ही चीजों को समझने में भी उनकी मदद कर सकते हैं। उनकी क्षमता को सुधार सकते हैं।

भगवद गीता: अध्याय 2: श्लोक 4

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।

यह श्लोक कर्म की महत्ता बताता है। कहता है कि परिणाम या फल की इच्छा किए बिना सतत रूप से अपने कर्म को करते रहना चाहिए।

भगवद गीता: अध्याय 2: श्लोक 20

न जायते म्रियते वा कदाचि, नायं भूत्वा भविता वा न भूय।
अजो नित्य: शाश्वतोयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे।

इसका अर्थ है कि आत्मा न मर सकती है न उसे मारा जा सकता है। न ही उसका जन्म होता है। आत्म अजर अमर होती है।

भगवद गीता: अध्याय 16: श्लोक 21

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन:।
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।

इसका अर्थ है कि काम, क्रोध और लोभ, ये आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन दरवाजे हैं। अत: इन तीनों को त्याग देना चाहिए। इन्हें अपने जीवन से दूर कर देना चाहिए।

भगवद गीता: अध्याय 2: श्लोक 14

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु: खदा:।
आगमापायिनोनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।

इसका अर्थ है कि इस दुनिया में जीवन में कुछ भी स्थिर नहीं रहता है। सुख हो या दुख, वे अस्थाई होती हैं। हमें यह सीखना है कि किस तरह अपनी आलोचना से विचलित हुए बिना लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें।

भगवद गीता: अध्याय 2: श्लोक 63

क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।

इसका अर्थ है कि क्रोध व्यक्ति के विवेक को खत्म कर देता है। क्रोध में व्यक्ति अपनी शक्ति और नियंत्रण दोनों ही खो देता है। वह सही और गलत के बीच अंतर भी नहीं कर पाता है। जो अपनी एकाग्रता खो देता है, वह जीवन में कुछ नहीं पा सकता है।

भगवद गीता: अध्याय 6: श्लोक 5

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:।

इसका अर्थ है कि हम यानी मनुष्य अपने हालात या अपने कर्मों का जिम्मेदार खुद ही होता है। हमें अपने विचारों को सही करना होगा। हम खुद ही अपने बंधु या मित्र हैं, खुद ही अपने दुश्मन भी हैं।

भगवद गीता: अध्याय 2: श्लोक

सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।

इसका अर्थ है कि एक मानव होने के नाते हमें अपनी पूरी जिम्मेदारी उठानी होगी। भावनाओं से ग्रसित होकर हम इससे दूर नहीं जा सकते हैं। खुशी, दुख, जीत, हार, सत्ता और खोना सब आते जाते रहते हैं।