राहु : आपके जीवन के रहस्य और भ्रम का के पीछे का असली कारण

राहु को सौरमंडल का आठवां और इसका अदृश्य ग्रह माना गया है। यह वास्तव में एक भ्रम की तरह है और सभी इंसानों के जीवन पर इसका जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। हालांकि, राहु के बारे में जानकारी ब्रह्म पुराण, मत्स्य पुराण और विष्णु पुराण में भी मौजूद है।


राहु के जन्म की कथा

राहु का मूल नाम दरअसल स्वरभानु हुआ करता था। राहु की माता का नाम सिंहिका और पिता का नाम विप्रचट्टी था। राहु की मां सिंहिका हिरण्यकश्यप की बेटी थी। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के महान भक्त प्रहलाद के पिता थे। हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कहानी से हम सभी अवगत हैं। राहु के कई भाई भी थे, जिन्हें हम सल्य, नाभ, वातापी, आइवल और नमुचि के नाम से जानते हैं। राहु के जो 100 भाई थे, राहु उन सब में सबसे बडा था। उसकी एक बहन भी थी, जिसका नाम माहिष्मती था। राहु का जन्म पैठिनसी गोत्र में हुआ था। उनका जन्म पार्थिव वर्ष में भाद्रपद मास में एक रविवार को नवरात्रि से 2 दिन पहले हुआ था। विशाखा उनकी जन्म राशि है।

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शुक्राचार्य असुरों के गुरु थे। सार्वभौमिक लाभ के लिए उन्होंने एक महान तपस्या शुरू की थी। बड़ी कठिन तपस्या करने के बाद आखिरकार वे जिस संजीवनी मंत्र के लिए यह तप कर रहे थे, उसका ज्ञान उन्हें प्राप्त हो गया। संजीवनी मंत्र को महामृत्युंजय मंत्र के तौर पर भी जाना जाता है। अपनी शक्ति से मृत लोगों को पुनर्जीवित करना इस मंत्र को पाने वालों के लिए संभव हो जाता है। शुक्राचार्य ने इसके उद्देश्यों की अवहेलना करनी शुरू कर दी। इस मंत्र के वास्तविक उद्देश्यों के विपरीत उन्होंने असुरों को इससे लाभ पहुंचाने का फैसला कर लिया।
शुक्राचार्य ने इसका प्रयोग असुरों के हित में करना शुरू कर दिया। इस तरह से असुरों को ताकत मिलने लगी। उन्होंने देवताओं पर हमला बोल दिया। जो भी असुर मृत थे, उन सभी को शुक्राचार्य संजीवनी मंत्र से फिर से जीवित करते जा रहे थे। असुरों के हमले में बड़ी संख्या में देवता मारे जा रहे थे। इतना ही नहीं, अंत में इंद्र से भी उनका राज्य छिन गया था। पराजित देवता अब बुरी तरीके से भयभीत हो चुके थे और त्राहिमाम करने लगे थे। वे अपनी सुरक्षा के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु से मदद मांगी। इसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें अमृत पान का अवसर प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने की सलाह दी। भगवान विष्णु ने कहा कि इससे वे अमर हो जाएंगे और कोई उन्हें मार नहीं पाएगा।

समुद्र मंथन की प्रक्रिया इतनी भी आसान नहीं थी। वास्तव में यह एक बड़ी ही जटिल प्रक्रिया थी। मेरू पर्वत को इस दौरान मथनी के रूप में इस्तेमाल में लाया गया। नागों के राजा वासुकी मंथन की रस्सी बन गए थे। देवताओं ने जहां नाग की पूंछ पकड़ रखी थी, वहीं दानव ने नाग का सिर पकड़ रखा था। इस तरह से इसे घुमाया जा रहा था। पर्वत आखिरकार इससे घूम गया। इस प्रकार समुद्र मंथन हो गया। एक बार जब इस पर्वत को समुद्र पर रखा गया था, तो वह डूबने लगा था। ऐसे में भगवान विष्णु ने कछुए यानी कूर्म के रूप में अवतार लिया था। उन्होंने इस पर्वत को बचाया था। अपनी पीठ पर उन्होंने इसे सहारा दे दिया था।

भगवान विष्णु ने इसके बाद मोहिनी नर्तकी का रूप धारण कर लिया। अमृत का वितरण करने का जिम्मा उन्होंने अपने ऊपर ले लिया। मोहिनी ने असुरों को जहां एक पंक्ति में बैठाया, वहीं देवताओं को उसने दूसरी पंक्ति में बैठा दिया था। असुरों को जहां मोहिनी मदिरा पिलाती जा रही थी, वहीं देवताओं को वह अमृत पिला रही थी। इस दौरान स्वरभानु को यह शक हो गया कि यह मोहिनी नहीं है। उसने यह मालूम कर लिया कि भगवान विष्णु मोहिनी के रूप में हैं। ऐसे में स्वरभानु ने देवताओं में से एक का रूप धारण कर लिया। अमृत पीने के लिए वे सूर्य और चंद्र के बीच में बैठ गए थे।

देवताओं को अमृत पिलाते-पिलाते मोहिनी ने जब स्वरभानु को भी अमृत देना शुरू किया, तो सूर्य और चंद्र ने मोहिनी को सावधान कर दिया कि यह जो व्यक्ति बैठा है, यह देवता नहीं है। यह असुर जैसा दिख रहा है। मोहिनी अपने रूप से बाहर निकल गई और भगवान विष्णु के रूप में प्रकट हो गई। भगवान विष्णु को अत्यधिक क्रोध आ गया। उन्होंने अपना सुदर्शन चक्र स्वरभानु की तरफ फेंक दिया। इससे स्वरभानु का सिर कट गया। हालांकि, स्वरभानु ने अमृत पी लिया था। इस वजह से उन्हें मारा जाना मुमकिन नहीं था।

हालांकि, इस घटना से बहुत पहले ही भगवान ब्रह्मा ने स्वरभानु को एक ग्रह का दर्जा प्रदान कर दिया था। फिर भी उन्होंने स्वरभानु से यह वादा किया था कि भविष्य में उन्हें यह दर्जा जरूर मिल जाएगा। इसके बाद सिर के हिस्से को राहु और पूंछ को केतु के रूप में जाना जाने लगा।


राहु का स्वभाव

राहु की दरअसल अपनी कोई आभा नहीं होती है, क्योंकि यह छाया ग्रह के नाम से जाना जाता है। चंद्रमा और सूर्य की परिधि के सरकम्फ्रेंस बिंदुओं पर दो छोर मौजूद होते हैं। इनमें से एक उत्तरी छोर को राहु या ड्रैगन हेड कहा जाता है, जबकि दक्षिणी छोर को केतु ड्रैगन की पूंछ कहा जाता है। किसी विशेष राशि पर राहु का नियंत्रण नहीं रहता है। राहु का स्थान शनि और बुध की राशियों में सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए।

हालांकि राहु आर्द्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्र का स्वामी है। तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाग में स्थित होने की वजह से राहु अनुकूल परिणाम देता है। राहु की शनि, शुक्र और बुध के साथ मित्रता है, जबकि सूर्य, चंद्रमा और मंगल इसके प्रबल शत्रु हैं।

राहुल हमेशा ही हिंसक, गुप्त रहने वाला और शरारती होता है। उसका रूप बहुत ही भयानक और खतरनाक है, क्योंकि उसका सिर नाग के शरीर से जुड़ा हुआ है। इतना ही नहीं, क्रोध और आक्रामकता उसमें भरी हुई है।

राहु सबसे बुरे और भयानक रहस्यों का प्रतिनिधित्व करता है। तस्करों, आतंकवादियों, ड्रग्स बेचने वालों और सरीसृपों आदि का यह प्रतिनिधित्व करता है। ये लोग हमेशा अनोखी जगहों पर छिपते हैं। इनके रहने की जगह एकदम अलग होती है। राहु सभी बुराइयों, दुष्टों, असामान्य एवं अप्रत्याशित चीजों का भी प्रतिनिधित्व करता है।

राहु के अशुभ प्रभाव

मानसिक तनाव, सामाजिक रूप से पिछड़ जाना, ताकत का दुरुपयोग, बिजली का झटका, रुचि में कमी आना, बुरे विचार आना, बुरे सपने आना, स्वास्थ्य खराब होना, विदेशों में कठिनाई, चोरों का भय, बुरी आत्माओं का साया, धन की हानि।

राहु के सकारात्मक प्रभाव

विदेशी भाषाओं पर अच्छी पकड़ होना, साहस से भरपूर होना, अनुसंधान में शामिल होना, समाज सेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना, मनोगत विज्ञान में रुचि लेना, फोटोग्राफी में रुचि होना, ज्योतिष के साथ आगे बढ़ना, मंत्री बनना, अध्यक्ष बनना, जुआ, लॉटरी लगना, शेयर बाजार, सरकारी कार्यालय में ऊंचा स्थान पाना।

राहु प्रतिनिधित्व करता है
चर्म रोग, कुष्ठ रोग, पागलपन, उदास रहना, अकेलापन, अल्कोहल की लत, हिचकी आदि।

राहु को पसंद है

काला चना, रात रानी का फूल, काली लिली, काले सूखे अंगूर, बादाम, काले कपड़े,नीले कपड़े, भांग, कमल के पत्ते।


राहु के बारे में विशेष जानकारी

रंग: इलेक्ट्रिक ब्लू और काला।
अंकित संख्या : 4
दिशा: दक्षिण (दक्षिण पश्चिम)।
रत्न: गोमेध (हेसोनाइट)।
धातु: सीसा और ग्रेफाइट।
पूज्य देवता: देवी दुर्गा और भगवान शिव।
प्रकृति: तामसिक।
जाति: शूद्र।
तत्व: वायु।
मंत्र: ॐ रा रहवे नमः और ॐ भ्रं भृं भ्रुं सः रहवे नमः।

राहु के संयोजन से पूरी तरह से अलग परिदृश्य और अलग ऊर्जा ही पैदा होती है। इस मामले में आपको सतर्क रहना पड़ेगा।
विशेषज्ञ ज्योतिषियों की यह सलाह होती है कि राहु के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए आपको अपने पास तांबे का राहु यंत्र रखना चाहिए, जो शुद्ध और ऊर्जा से भरा हुआ होता है।
तो राहु और उसके प्रभावों के बारे में यही सारी चीजें हैं।

सटीक उपाय और समाधान के लिए आपको हमेशा किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से सलाह लेनी चाहिए।