भीष्म अष्टमी क्या है, आइए जानते हैं…
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रखे जाने वाले व्रत को भीष्म अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह व्रत 5 फरवरी 2025, बुधवार को रखा जाएगा। इस व्रत को रखने से संतान सुंदर और गुणकारी होती है। शास्त्रों में बताया गया है कि इसी दिन पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण त्यागे थे। इसीलिए कई लोग इस दिन भीष्म पितामह के निमित्त कुश, तिल व जल लेकर तर्पण करते हैं। इस दिन गंगापुत्र भीष्म का तर्पण करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इस दिन को पितृदोष निवारण के लिए भी उत्तम माना जाता है।
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भीष्म अष्टमी का महत्व
भीष्म अष्टमी महाभारत के मुख्य पात्र गंगापुत्र भीष्म को समर्पित एक व्रत है। माघ महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन पितरों का तिल और जल से तर्पण किया जाना लाभदायक होता है। इसके अलावा इस दिन व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। माना जाता है कि इस दिन उपवास रखने से भीष्ण पितामह जैसी आज्ञाकारी संतान प्राप्त करने का आशीर्वाद मिलता है। इसके अलावा पितृदोष से भी मुक्ति मिलती है। इस बात का उल्लेख महाभारत में भी किया गया है। ‘शुक्लाष्टम्यां तु माघस्य दद्याद् भीष्माय यो जलम्, संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति..अर्थात – जो मनुष्य माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म के निमित्त तर्पण, जलदान आदि करता है, उसके वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं।
भीष्म अष्टमी 2025 की तिथि, समय और शुभ तिथि
आयोजन | तिथि, समय और मुहूर्त |
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भीष्म अष्टमी 2025 तिथि | बुधवार, फरवरी 5, 2025 |
मध्याह्न समय | 11:47 ए एम से 02:01 पी एम |
अवधि | 02 घण्टे 14 मिनट्स |
भीष्म अष्टमी तिथि आरंभ | फरवरी 05, 2025 को 02:30 ए एम बजे |
भीष्म अष्टमी तिथि समाप्त | फरवरी 06, 2025 को 12:35 ए एम बजे |
भीष्ण अष्टमी की कथा
पौराणिक कथाओं में भीष्ण अष्टमी का उल्लेख किया गया है। उसी कथा के अनुसार भरतवंश के राजा शांतनु और देवी गंगा के आठवें पुत्र भीष्ण थे। जन्म के समय उन्हें देवव्रत नाम दिया गया। उसके बाद महर्षि परशुराम से शास्त्र और शस्त्र की विद्या सीखी और एक अजेय योद्धा बन गए। इसके बाद उन्हें राजा शांतनु ने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया। इसी दौरान राजा शांतनु एक दिन शिकार खेलने गए थे। वहां उनकी मुलाकात यमुना में नाव चलाने वाली सत्यवती से हुई। राजा शांतनु उसकी सुंदरता पर मोहित हो गए, और उसके पिता से उसका हाथ मांगने के लिए चले गए। सत्यवती के पिता ने एक शर्त रखी कि आपके राज्य का होने वाला उत्तराधिकारी उसकी पुत्री के गर्भ से जन्मा बालक ही होगा, न की गंगापुत्र भीष्म। इस बात को राजा शांतनु ने नकार दिया, लेकिन जब भीष्ण के इस बात की खबर लगी, तो उन्होंने अपने पिता की इच्छा पूर्ती के लिए वचन लिया कि मैं कभी इस राज्य का उत्तराधिकारी नहीं रहूंगा और अजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा, ताकि मेरी संतान भी इस सिहांसन पर अपना अधिकार न जता सकें।
देवव्रत यानी भीष्म ने अपने पिता की खातिर राज्य त्याग दिया और जीवन भर विवाह न करने का प्रण लिया। इसी के कारण उनका नाम देवव्रत से भीष्म नाम से जाना जाने लगा, साथ ही उनकी प्रतीज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा का नाम मिला। भीष्ण की पितृभक्ति देखकर राजा शांतनु बहुत खुश हुए और उन्होंने पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान दे दिया। इसके बाद पूरे जीवन में भीष्ण को बहुत सम्मान प्राप्त हुआ। महाभारत के युद्ध में हस्तिनापुर के संरक्षक होने के नाते उन्होंने पूरी निष्ठा से कौरवों की तरफ से युद्ध में भाग लिया। भीष्म पितामह ने शिखंडी के साथ युद्ध न करने और उसके ऊपर प्रहार न करने का संकल्प लिया था। इसके कारण अर्जुन ने शिखंडी के पीछे खड़े होकर भीष्म पितामह पर प्रहार किया, जिससे वे घायल होकर गिर पड़े। भीष्म के कहने पर ही पांडव पुत्र अर्जुन नें बाणों की शय्या बनाई। महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को उन्होंने प्राण त्यागे थे। इसीलिए धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति उत्तरायण के दिन शरीर छोड़ता है, उसे मोक्ष प्राप्ति होती है। और इस व्रत को करने से पितामह भीष्म की तरह संतान प्राप्त होती है।
भीष्म अष्टमी के अनुष्ठान
- भीष्म अष्टमी की पूर्व संध्या पर, भक्त एकोद्देश श्राद्ध करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिनके पिता नहीं है, केवल वो ही इस श्राद्ध को कर सकते हैं। हालांकि, कई जगहों पर इसे भीष्ण के तर्पण को ध्यान में रखते हुए सभी लोग करते हैं।
- इस दिन भक्त पवित्र नदियों के तट पर तर्पण करते हैं, जिसे भीष्म अष्टमी तर्पणम के नाम से जाना जाता है। यह तर्पण भीष्म पितामह और प्रेक्षकों के पूर्वजों के नाम पर उनकी आत्मा की शांति के लिए किया जाता है।
- इस विशेष दिन पर पवित्र नदियों में स्नान करना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान। इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाना अत्यधिक शुभ माना जाता है। श्रद्धालु पवित्र नदी में तिल और उबले हुए चावल चढ़ाते हैं।
- भक्त इस दिन भीष्म पितामह को श्रद्धांजलि देने के लिए भीष्म अष्टमी का व्रत रखते हैं, जहां वे संकल्प (व्रत) लेते हैं, अर्घ्यम् (पवित्र समारोह) करते हैं और भीष्म अष्टमी मंत्र ‘एवसूनामवताराय शन्तरोरात्मजाय च। अर्घ्य दें दामि भीष्माय आबाल ब्रह्मचारी णे।’ का पाठ करते हैं।
भीष्म अष्टमी पूजा के लाभ
- ऐसा माना जाता है कि भीष्म अष्टमी पर पूजा करने और व्रत रखने से भक्तों को ईमानदार और आज्ञाकारी संतान प्राप्त होने का आशीर्वाद मिलता है।
- भीष्म अष्टमी की पूर्व संध्या पर व्रत, तर्पण और पूजा सहित विभिन्न अनुष्ठान कर भक्त अपने अतीत और वर्तमान के पापों से छुटकारा पाते हैं। इसके साथ ही सौभाग्य का आशीर्वाद भी मिलता है।
- यह व्रत लोगों को पितृ दोष से राहत दिलाने में भी मदद करता है।
निष्कर्ष
माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन भीष्म अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इसी दिन गंगा पुत्र भीष्म ने अपने प्राण त्यागे थे। इस दिन जहां एक ओर व्रत रखने का महत्व है, वहीं दूसरी ओर इस दिन भीष्म पितामह की आत्मा की शांति के लिए तिल के जल से तर्पण भी किया जाता है। उम्मीद करते हैं कि आप भीष्म अष्टमी के बारे में जान गए होंगे। इस साल आप विधिवत रूप से ही तर्पण करें।
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