पापांकुशा एकादशी के बारे में जानिए !
एकादशी तिथि का सनातन धर्म में विशेष महत्व है, इसलिए एकादशी को व्रतराज की उपाधि भी दी गई है, क्योंकि यह सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ है। आश्विन मास, शुक्ल पक्ष के दशहरे के ठीक अगले दिन पड़ने वाली एकादशी को पापांकुशा एकादाशी (Papankusha Ekadashi) कहा जाता है। साल 2024 में यह शुभ तिथि रविवार, 13 अक्टूबर 2024 को पड़ी है। इस एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
त्रेता युग में भगवान श्री राम जी से भ्राता भरत का मिलाप दशहरे के बाद इसी एकादशी के दिन हुआ था। मान्यता के अनुसार मनुष्य कठिन तपस्या करके जिस फल की कामना करता है वह पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) के दिन शेषनाग पर शयन करने वाले श्री विष्णु की आराधना मात्र से वह फल मिल जाता है।
पापांकुशा एकादशी तिथि व मुहूर्त
एकादशी व्रत तिथि | रविवार, 13 अक्टूबर 2024 |
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पारण का समय | दोपहर 01:20 बजे से दोपहर 03:43 बजे तक |
एकादशी तिथि प्रारंभ | 13 अक्टूबर 2024 को सुबह 09:08 बजे |
एकादशी तिथि समाप्त | 14 अक्टूबर 2024 को प्रातः 06:41 बजे |
पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) की व्रत कथा
प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक क्रूर बहेलिया निवास करता था। वह अपनी पूरी जिंदगी हिंसा, मद्यपान, झूठ, लूट-पाट, छल-कपट जैसे बुरे कर्म करते हुए व्यतीत कर रहा था। अंतिम समय निकट आते ही उसे यमदूत दिखाई देने लगे, जिससे वह समझ गया कि उसका अंत निकट है। बहेलिया जिंदगी भर निर्दोष पशु और पक्षियों की हत्या करता रहा, मगर वह अपनी मौत से हमेशा डरता था। क्रूर बहेलिया मृत्यु भय से भयभीत स्थिति में महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और उनसे दया याचना करने लगा।
महर्षि अंगिरा को बहेलिया पर दया आ गयी और उन्होंने उसे पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) का व्रत करने का आदेश दिया। बहेलिया ने पूरी श्रद्धा भाव से इस एकादशी का व्रत किया। जिससे बहेलिया के सभी पाप नष्ट हो गए और ईश्वर की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।
पापांकुशा एकादशी का महत्व
पुराणों के अनुसार, पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) का व्रत करने पर एक सूर्य यज्ञ करने बराबर फल मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। इस व्रत को नियम से करने पर तीन पीढ़ियों के पापों से मुक्ति मिल जाती है, मोक्ष की प्राप्ति होती है और चन्द्रमा के बुरे प्रभाव को रोका जा सकता है। इसका व्रत को करने के फलस्वरूप शुभ फलों की वर्षा होने लगती है, मनुष्य को यमलोक का दुःख नहीं भोगना पड़ता, बैकुंठधाम में श्री हरी के चरणों में स्थान मिलता है।
इस व्रत का पुण्य लाभ व्रत करने वाले उपवासक के मातृपक्ष और पितृपक्ष के दस-दस पितरों को यमलोक से बैकुंठ धाम की और ले जाती है। पापांकुशा एकादशी व्रत पाप कर्मों से रक्षा करती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए। इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा करना चाहिए और ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा देना चाहिए। इससे शरीर स्वस्थ व मन प्रफुल्लित रहता है।
पापांकुशा एकादशी की व्रत विधि
- पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) व्रत एक दिन पहले दशमी तिथि वाले दिन सूर्योदय से पहले भोजन ग्रहण कर लें।
- दशमी तिथि पर सात धान्य अर्थात गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खाएं।
- दशमी तिथि वाले दिन रात को भोजन न करें ताकि एकादशी वाले दिन आपके पेट में अन्न का एक भी अंश न रहे।
- दशमी तिथि और एकादशी तिथि को जितना कम हो सके उतना कम बोलें।
- मांसाहारी भोजन न करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) का व्रत निर्जला या फिर थोड़े फलाहार के साथ इस व्रत को कर सकते हैं।
- इस दिन अन्न का सेवन न करें।
- एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- तत्पश्चात साफ स्वच्छ कपडे पहनकर व्रत का संकल्प लें।
- फिर सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
- एक साफ आसन या पटरी लें और उस पर स्वच्छ पीला या लाल कपड़ा बिछाएं।
- भगवान की तस्वीर और कलश को स्थापित करें।
- विधि – विधान से पूजा करके विष्णु जी के सहस्रनाम का पाठ करें।
- शाम के समय पूजा करने के बाद व्रत कथा सुने।
- भगवान विष्णु का भजन करें।
- फिर द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा दें।
- अंत में आप भोजन करें।
पापांकुशा एकादशी की पारण विधि
पारण का अर्थ है व्रत तोड़ना। द्वादशी तिथि समाप्त होने के भीतर ही पारण करें। द्वादशी में पारण न करना अपराध के समान है। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासरा के खत्म होने का इंतजार करें, हरि वासरा के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचें। व्रत तोड़ने का समय प्रात:काल है। किसी कारणवश प्रात:काल के दौरान व्रत नहीं तोड़ पाते हैं तो मध्याह्न के बाद व्रत खत्म करें।