रमा एकादशी का महत्व

रमा एकादशी का महत्व

कार्तिक माह, कृष्ण पक्ष में मनाई जाने वाली एकादशी रमा एकादशी (Rama Ekadashi) है। हिन्दू धर्म में रमा एकादशी का बहुत ज्यादा महत्व है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, इस माह में पड़ने वाली रमा एकादशी के दिन महालक्ष्मी के रमा स्वरुप के साथ – साथ भगवान विष्णु के पूर्णावतार केशव स्वरुप की पूजा की जाती है। यह चातुर्मास की अंतिम एकादशी होती है। प्राचीन वेदों में इसका उल्लेख सबसे शुभ और महत्वपूर्ण एकादशी के रूप में किया गया है। इस साल रमा एकादशी शुक्रवार, अक्टूबर 17, 2025 को मनाया जाएगा।

इसे कार्तिक कृष्ण एकादशी या रम्भा एकादशी जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। यह भारत के सबसे लोकप्रिय त्यौहार दिवाली से ठीक चार दिन पहले आता है। इस बार यह एकादशी सोमवार को पड़ रही है। इस एकादशी का व्रत करने वाले भक्त के जीवन में सुख-समृद्धि आती है, और वह अपने सभी पापों से वंचित हो जाता है।

रमा एकादशी तिथि व मुहूर्त

एकादशी व्रत तिथिशुक्रवार, अक्टूबर 17, 2025
पारण का समय18वाँ अक्टूबर को, पारण समय - 06:38 ए एम से 08:56 ए एम
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त12:18 पी एम
एकादशी तिथि प्रारंभअक्टूबर 16, 2025 को 10:35 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्तअक्टूबर 17, 2025 को 11:12 ए एम बजे

रमा एकादशी व्रत की कथा

एक नगर में मुचुकुंडा नाम के एक राजा राज्य करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम चंद्रभागा था। राजा ने बहुत धूम धाम से अपनी बेटी चंद्रभागा का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया। राजा मुचुकुंडा भगवान विष्णु के परम भक्त थे। वह हर साल रमा एकादशी (Rama Ekadashi) का व्रत रखते थे और इस व्रत का उपवास करने के लिए पूरे राज्य में निर्देश दिए गए थे। इस नियम का पालन सभी को करना होता था। इस नियम को कोई भी तोड़ नहीं सकता था। उनकी पुत्री भी इस रमा एकादशी का व्रत पूरे विधि – विधान से करती थी।

लेकिन राजकुमार शोभन इन सभी बात से अनजान थे और उनकी एक कमजोरी भी थी कि वह ज्यादा देर तक भूखे नहीं रह सकते थे। शादी के कुछ समय बाद राजकुमार शोभन कृष्ण पक्ष के समय राजा मुचुकुंडा के राज्य में आये। इसी बीच रमा एकादशी (Rama Ekadashi) का पर्व आ गया। उसके ससुराल में सभी लोग इस व्रत का पालन निष्ठा से करते थे। इसलिए उन्हें भी कहा गया कि आप भी यह व्रत करें। शोभन इस बात से चिंतित हो गए कि इस व्रत का पालन कैसे होगा। क्योंकि वह भूखे नहीं रह सकते थे।

उन्होंने इसके बारे में जब अपनी पत्नी से बात की तो, उन्होंने कहा कि वह इसके लिए कुछ नहीं कर सकतीं। क्योंकि इस दिन मनुष्यों के साथ साथ पशु भी अन्न ग्रहण नहीं करते हैं। इसलिए आप व्रत रखिये अन्यथा राज्य के बाहर जाइये। इस पर शोभन उनकी बात मान गए और कहा कि वह यहीं रहेंगे और साथ ही व्रत भी करेंगे।

वह अपने बीमार और कमजोर शरीर के साथ उपवास करने लगे। लेकिन शोभन पहले से ही दुर्बल थे ऊपर से उन्हें भूख भी बर्दास्त नहीं हो रही थी। जिसकी वजह से आधी रात को उनकी मृत्यु हो गयी। लेकिन रमा एकादशी (Rama Ekadashi) उपवास करने के कारण उन्होंने स्वर्ग और अद्वितीय महान साम्राज्य प्राप्त किया। चूँकि उनसे यह उपवास जबरदस्ती करवाया जा रहा था इसलिए प्राप्त साम्राज्य अदृश्य हो गया था।

एक समय एक ब्राह्मण मुचुकुंडा साम्राज्य से बाहर निकले और उन्होंने शोभन और उसके राज्य को देखा। इन सब चीजों को देखकर वह आश्चर्य चकित हो गए। राजकुमार शोभन ने उनको पूरा वृतांत सुनाया और कहा कि वह उनकी पत्नी को भी यह सब बता दें। ब्राह्मण वापस लौटकर राजकुमार की पत्नी चंद्रभागा को सब कुछ बता दिया। चंद्रभागा जो बचपन से ही इस रमा एकादशी (Rama Ekadashi) का व्रत कर रही थी। उस व्रत से प्राप्त लाभ से चंद्रभागा ने अदृश्य साम्राज्य को वास्तविकता में बदल दिया। इस तरह दोनों साथ में आ गए और आनंदमय जीवन यापन शुरू कर दिया।

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रमा एकादशी का महत्व

हिन्दू ग्रन्थ पद्म पुराण के अनुसार, रमा एकादशी (Rama Ekadashi) का व्रत कामधेनु और चिंतामणि के समान फल देता है। यह सभी पापों का नाश कर मनुष्य को पुण्य लाभ देता है। इस दिन व्रत करने से माँ लक्ष्मी और भगवान् विष्णु की विशेष कृपा होती है। आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है और सुख समृद्धि घर में निवास करती है। जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु की महिमा सुनते हैं, वो मोक्ष प्राप्त करते हैं।

रमा एकादशी की व्रत विधि

  • रमा एकादशी (Rama Ekadashi) व्रत का पालन दशमी के दिन से ही करें।
  • दशमी के दिन दोपहर के बाद कुछ भी नहीं खाएं।
  • प्रातः काल में उठकर नित्यकर्मों से मुक्त हो जाएँ।
  • उसके बाद स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
  • भगवान् विष्णु की पूजा करें।
  • भगवान को तुलसी के पत्ते, धूप, दीप, फूल और फल अर्पित करें।
  • भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि में जागरण करें।
  • द्वादशी के दिन सुबह विधि पूर्वक पूजा करने के बाद ब्राह्मण और गरीबों को भोजन कराएं और सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा दें।
  • उसके बाद भोजन करके व्रत का पारण करें।

रमा एकादशी की पारण विधि

पारण का अर्थ है व्रत तोड़ना। द्वादशी तिथि समाप्त होने के भीतर ही पारण करें। द्वादशी में पारण न करना अपराध के समान है। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासरा के खत्म होने का इंतजार करें, हरि वासरा के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचें। व्रत तोड़ने का समय प्रात:काल है। किसी कारणवश प्रात:काल के दौरान व्रत नहीं तोड़ पाते हैं तो मध्याह्न के बाद व्रत ख़तम करें।

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