षटतिला एकादशी व्रत 2025: मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और व्रत का महत्व

षटतिला एकादशी व्रत 2025: मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और व्रत का महत्व

माघ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाने वाला व्रत षटतिला एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को श्रीहरि विष्णु का शुभ आशीर्वाद पाने के लिए भक्तों द्वारा किया जाता है। इस व्रत को पापहारिणी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही जितना पुण्य कन्यादान, स्वर्ण दान और हजारों वर्षों की तपस्या से मिलता है, उतना पुण्य इस व्रत का पालन करने मात्र से मिल जाता है। इसके अलावा घर में सुख-शांति बनी रहती है। उपासक को मनुष्य लोक के सभी सुखों की प्राप्ति होती है और अंत में मोक्ष का भागीदारी होता है।

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षटतिला एकादशी व्रत का महत्व

माघ माह को भगवान श्रीहरि विष्णु का सबसे प्रिय महीना बताया गया है। इसी महीने में षटतिला एकादशी व्रत का पालन किया जाता है। इस दिन जो भी उपासक भगवान विष्णु की सच्चे मन से उपासना करता है, उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन दान पुण्य करने का भी विशेष महत्व है। इस शुभ दिन पर अगर आप तिल का दान करते हैं, तो इसे अत्यंत लाभाकारी बताया गया है। पद्म पुराण के अनुसार इस पवित्र दिन पर अगर आप तिलों से ही स्नान, तर्पण और विधि विधान से करते हैं, तो इसका आपको अच्छा लाभ मिलता है। इस दिन तिल को आप अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें। जहां तक हो सके, हर कार्य में तिल का इस्तेमाल करें। तिल के प्रयोग के कारण ही इसे षटतिला एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को पुण्य कार्य और ईश्वर के प्रति समर्पित होने का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।

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षटतिला एकादशीतिथि और समय
षटतिला एकादशी 2025शनिवार, जनवरी 25, 2025
26वाँ जनवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय07:20 ए एम से 09:21 ए एम
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय10:24 ए एम
एकादशी तिथि प्रारम्भजनवरी 24, 2025 को 08:55 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त जनवरी 25, 2025 को 10:01 ए एम बजे

षटतिला एकादशी पर तिल का महत्व

षटतिला एकादशी का नाम ही तिल का शब्द से जुड़ा हुआ है। षटतिला पर तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और हिन्दू धर्म में भी तिल को बहुत पवित्र माना गया है। कोई भी पूजा तिल के बिना अधूरी होती है। षटतिला पर तिल का 6 प्रकार से उपयोग किया जाता है।

  1. तिल के जल से स्नान करें
  2. पिसे हुए तिल का उबटन करें
  3. तिलों का हवन करें
  4. तिल मिला हुआ जल पीयें
  5. तिलों का दान करें
  6. तिलों की मिठाई और व्यंजन बनाएं

षटतिला एकादशी का पूजा विधि

एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि की रात से ही शुरू हो जाते हैं। दशमी को सूर्यास्‍त के बाद भोजन ग्रहण न करें और रात में सोने से पहले भगवान विष्‍णु का ध्‍यान जरूर करें। षटतिला एकादशी के व्रत को नारद पुराण में भी दर्शाया गया है। इसके अनुसार षटतिला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्क्रिया से निवृत होकर जल में तिल डालकर स्नान करें। इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर को चौकी पर स्थापित करें। तस्वीर की स्थापना करने के बाद गंगाजल में तिल मिलाकर मूर्ति और उसके चारों तरफ जल के छीटें दें और पंचमृत से स्नान कराएं। ध्यान रहें कि पंचामृत में भी तिल के बीज मिश्रित होने चाहिए, इसके बाद घटस्थापना करें। घटस्थापना के बाद देसी घी का दीपक जलाएं और फूल अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु की धूप और दीप से आरती उतारें और विष्णु सहस्नाम का जाप करें। षटतिला एकादशी के इस पवित्र दिन पर भगवान श्रीहरि विष्णु को तिल से जरूर भोग लगाएं। साथ ही तिल का दान करना भी अत्यंत लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन आप जितने तिल का दान करते हैं, आपको उतने ही दिन स्वर्ग में रहने का अवसर प्राप्त होता है।

पारण के समय किन बातों का रखें ध्यान

षटतिला एकादशी व्रत को समाप्त करने के बाद भोजन करने की विधि को पारण कहा जाता है। ध्यान रहें कि द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले पारण करना अति आवश्यक है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है। व्रती को व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि को कहा जाता है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल यानि सुबह का होता है। व्रत करने वाले उपासकों को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे मध्याह्न के बाद पारण ही करना चाहिए। कभी-कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों का हो जाता है। ऐसी स्थिति में स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। इस दिन सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है, तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं। भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।

षटतिला एकादशी की व्रत कथा

षटतिला एकादशी को लेकर वैसे तो कई सारी कथाएं प्रचलित है, लेकिन जो सबसे ज्यादा प्रचलित कथा है उसके अनुसार प्राचन काल में एक ब्राह्मणी भगवान श्रीहरि विष्णु की परण भक्त थी। वह भगवान श्रीहरि विष्णु से जुड़े हर व्रत का पालन करती थी। एक बार ऐसी परिस्थिति आ गई, कि उसे लगातार एक महीने तक व्रत रखना पड़ा। इसकी वजह से वह बहुत दुर्बल हो गई, लेकिन तन शुद्ध हो गया। जब भगवान विष्णु ने उसे इस परिस्थिति में देखा, तो भगवान विष्णु ने सोचा कि तन शुद्धि से इसे बैकुंठ तो प्राप्त हो जाएगा, लेकिन उसके मन को शांति नहीं मिलेगी। इसका कारण यह था कि उसने कभी भी व्रत के दौरान दान नहीं किया था। इसी वजह से उसे विष्णुलोक में तृप्ति नहीं मिलेगी। तब भगवान स्वयं उसके घर दान लेने के लिए पहुंच गए। 

भगवान जब उस ब्राह्मणी के घर भिक्षा लेने गए, तो उसने भगवान विष्णु को दान में मिट्टा का एक पिंड दे दिया। वह लेकर भगवान विष्णु अपने धाम चले गए। कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी की मौत हो गई और वह विष्णुलोक पहुंच गई। जहां उसे रहने के लिए कुटिया मिली, जिसमें सिवाय एक आम के पेड़ के कुछ भी नहीं था। यह देखकर ब्राह्मणी ने भगवान से पूछा कि इतना व्रत करने का क्या लाभ, जब यहां भी कुटिया में ही रहना था। तभ भगवान विष्णु ने कहा कि मनुष्य जीवन में कभी भी अन्न या धन का दान नहीं दिया, य​ह उसी का परिणाम है। इसके बाद उसे काफी पछतावा हुआ और उसने स्वयं भगवान विष्णु से इसका उपाय पूछ लिया। इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु ने कहा कि देव कन्याएं तुमसे भेंट करने आएं, तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत करने की विधि पूछ लेना। जब तक देव कन्याएं इसके बारे में तुमको न बता दें, तुम अपनी कुटिया का दरवाजा मत खोलना। इसके बाद श्रीहरि विष्णु के कहे अनुसार ही ब्राह्मणी ने किया और षटतिला व्रत के बारे में जान लिया। देव कन्याओं से व्रत की विधि जानने के बाद उसने षटतिला एकादशी व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उसकी कुटिया सभी आवश्यक वस्तुओं, धन-धान्य आदि से भर गई। साथ ही वह काफी रूपवती भी हो गई। इसीलिए मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से सौभाग्य बढ़ता है और दरिद्रता दूर होती है।

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षटतिला एकादशी के दिन भगवान श्रहरि विष्णु की पूजा का विशेष विधान हैं। अगर भगवान विष्णु की पूजा कराना चाहते हैं, तो यहां क्लिक करें