वरुथिनी एकादशी क्यों है महत्वपूर्ण, जानें पूजा और व्रत विधि…

वरुथिनी एकादशी क्यों है महत्वपूर्ण, जानें पूजा और व्रत विधि…

साल भर में जितनी भी एकादशी होती है, हिन्दू धर्म शास्त्र में उन सभी को करने का अलग-अलग स्थान और महत्व प्राप्त है। वरुथिनी एकादशी वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की तिथि को पड़ती है। वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान वराह की पूजा की जाती है। जो भगवान श्री विष्णु का ही अवतार है। इस दिन पूजा-आराधना करने से बहुत लाभ होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन के सभी बुरे बदलाव का समापन हो जाता है। और व्यक्ति का जीवन सुखमय हो पाता है।

वरुथिनी एकादशी को बरुथानी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। वरुथिनी एकादशी के दिन, भक्त भगवान वामन की पूजा करते हैं जो भगवान विष्णु के अवतार हैं। शाब्दिक अर्थ में, वरुथिनी का अर्थ है ‘संरक्षित’ और इस प्रकार एक मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी का पालन करने से भक्त विभिन्न नकारात्मकताओं और बुराइयों से सुरक्षित हो जाते हैं।

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2025 में वरुथिनी एकादशी कब है?

वरूथिनी एकादशी गुरुवार, 24 अप्रैल 2025 को पड़ेगा।

EventDate
वरूथिनी एकादशी 202524 अप्रैल 2025, गुरुवार
एकादशी तिथि प्रारम्भ 23 अप्रैल, 2025 को 16:43 बजे
एकादशी तिथि समाप्त24 अप्रैल, 2025 को 14:32 बजे
25 अप्रैल को पारण का समय06:09 से 08:37 तक

वरुथिनी एकादशी के दिन क्या करना चाहिए?

  • वरुथिनी एकादशी पर, भक्त सुबह जल्दी उठते हैं और पवित्र स्नान करते हैं।
  • भगवान विष्णु की पूजा और अर्चना करने की तैयारी की जाती है।
  • देवता को जगाने के लिए भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा धूप, चंदन के पेस्ट, फल, अगरबत्ती और फूलों से की जाती है।
  • भक्त भोजन करने से परहेज करते हैं। वे एक दिन में केवल हल्के व सात्विक भोजन का सेवन कर सकते हैं।
  • वरुथिनी एकादशी व्रत दशमी से शुरू होता है जहां भक्तों को भोर से पहले भोजन करना होता है।
  • व्रत 24 घंटे की अवधि तक रहता है यानी एकादशी के दिन के सूर्योदय तक।
  • एक ब्राह्मण को भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक चीजें दान करने के बाद उपवास समाप्त होता है।
  • भक्त पवित्र मंत्रों का जाप करते हैं और देवता के सम्मान में गीत गाते हैं।
  • लोग भगवान विष्णु की दिव्य कृपा प्राप्त करने के लिए ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ भी पढ़ते हैं।
  • भक्तों को अपना व्रत पूरा करने के लिए वरुथिनी एकादशी व्रत कथा को सुनना आवश्यक है। 
  • इस दिन चावल से परहेज रखें।

वरुथिनी एकादशी व्रत के नियम

सभी एकादशी के दिनों की तरह, इस व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उपवास है। एकादशी का पालन करना मन और शरीर के लिए एक शुद्धिकरण प्रक्रिया मानी जाती है और भक्त वरुथिनी एकादशी का सख्त उपवास रखते हैं। जो लोग व्रत रखते हैं वे एक दिन पहले यानी दशमी के दिन केवल एक बार भोजन करते हैं। एकादशी व्रत द्वादशी या 12वें दिन सूर्योदय तक चलता है।

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वरुथिनी एकादशी महत्व

युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण के बीच बातचीत के रूप में वरुथिनी एकादशी का उल्लेख भविष्य पुराण में किया गया है। भविष्य पुराण पुराणों या धार्मिक ग्रंथों में से एक है, जिसमें देवी-देवताओं के बारे में कहानियां हैं। एकादशी का पालन करने वाले भगवान विष्णु के भक्त मानते हैं कि उपवास और विशेष दिन की प्रार्थना करने से शांति, सद्भाव और समृद्धि आती है। मान्यता के अनुसार एकादशी का व्रत करना तीर्थ यात्रा पर जाने के समान है।

वरुथिनी एकादशी का व्रत और पूजा करने से व्यक्ति का जीवन और भाग्य पूरी तरह से बदल जाता है। व्यक्ति को समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है । यह एकादशी दुख और कष्टों का निवारण करती है। विशेष रूप से इसका यही महत्व है। तथा इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ करने से व्यक्ति के सारे पापों का अंत भी हो जाता है। जितना पुण्य किसी व्यक्ति को कन्यादान या हजारों वर्ष का तप करने से मिलता है। उतना ही पुण्य सच्ची श्रद्धा के साथ वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है

वरुथिनी एकादशी कथा

धर्मरा‍ज युधिष्ठिर बोलते है की हे भगवन्! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है तथा उसके करने से क्या फल प्राप्त होता है? आप विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजेश्वर! इस एकादशी का नाम वरुथिनी है। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है। इसकी कथा मैं तुम्हें सुनाता हुं।

प्राचीन काल समय की बात है। नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नाम का एक राजा हुआ करता था। जो वहां राज करता था। वह बहुत दानी और बहुत बड़ा तपस्वी भी था। एक दिन की बात है, राजा जंगल मे जाकर तपस्या कर रहे थे। और उनकी तपस्या के समय एक भालू वहां आया और राजा का पैर चबाने लगा। लेकिन राजा को उससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वे भालू से डरे नहीं बल्कि अपनी तपस्या मे लीन रहें। तपस्या करते समय उन्होंने कोई क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से प्रार्थना करते रहें।

उनकी प्रार्थना भगवान ने श्री विष्णु सुनी और तुरंत ही राजा के सामने प्रकट हुए और उस भालू से राजा को बचा लिया। भालू राजा का पैर भालू ने खा चुका था। जिसके कारण राजा बहुत ही दुखी और पीड़ित थे। उनके चेहरे पर उदासी देखकर श्री हरि विष्णुजी उनसे कहते हैं कि वत्स… दुखी ना हो, तुम मथुरा जाकर वरुथिनी एकादशी का व्रत करो और व्रत रखकर विधि-विधान से भगवान वराह अवतार की पूजा -अर्चना करो।

इस व्रत के करने से तुम अंग सम्पूर्ण हो जाएंगे। भालू ने जो तुम्हारा पैर खाया है, वह तुम्हारे पिछले जन्म के बुरे दुष्कर्म का नतीजा है। जिसका भुगतान तुम्हें इस जन्म मे मिला है। भगवान की आज्ञा के अनुसार राजा मांधाता मथुरा जाते हैं और श्रद्धापूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत करते हैं। जिसके प्रभाव से राजा फिर से सम्पूर्ण अंग के हो जाते हैं और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

इस व्रत को यदि कोई अभागिनी स्त्री करती है, तो उसको सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसी वरुथिनी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है। कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। वरूथिनी‍ एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

इन मंत्रों का करें जाप

भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए आप ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप कर सकते हैं, इस मंत्र का जाप काफी फलदायी माना गया है।

विष्णु धन प्राप्ति मंत्रः

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।

ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन् आ नो भजस्व राधसि।।

भगवान विष्णु जी का यह मंत्र ऋग्वेद से लिया गया है। 

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