गणेश चतुर्थी पर कैसे करें गजानन गणपति की पूजा
गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी एक हिंदू त्योहार है जो गजमुख भगवान गणेश के जन्मदिन का प्रतीक है। गणेश चतुर्थी से दस दिवसीय गणेश उत्सव की शुरुआत होती है। गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना की स्थापना की जाती है और दस दिन बाद एक जल निकाय में विसर्जन के साथ समाप्त होता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार भाद्रपद की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाया जाता है। 2025 में गणेश चतुर्थी 27 अगस्त 2025, बुधवार को होगी। आइए गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त 2025, गणेश चतुर्थी पूजा विधि और गणेश चतुर्थी विर्सजन मुहूर्त के बारे में विस्तार से जानें…
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गणेश चतुर्थी मुहूर्त 2025 (ganesh chaturthi muhrat 2025)
वैसे बुद्धि और विवेक के दाता भगवान श्री गणेश स्वयं ही हर तरह की शुभता के प्रतीक हैं। फिर भी गणेश चतुर्थी के दिन भगवाव गणेश की मूर्ति स्थापना के लिए लोगों द्वारा गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है। आइए गणेश चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश स्थापना के मुहूर्त 2025 के बारे में अच्छे से जानें और साथ ही गणेश विसर्जन की विधि और गणेश विसर्जन मुहूर्त 2025 के बारे में बात करें।
गणेश चतुर्थी 2025 कब है (ganesh chaturthi kab hai)
इस साल गणेश चतुर्थी या गणेश स्थापना 27 अगस्त 2025, बुधवार के दिन की जाएगी।
गणेश चतुर्थी पर गणपति स्थापना के मुहूर्त 2025
गणेश चतुर्थी – 27 अगस्त 2025, बुधवार
मध्याह्न गणेश पूजा मुहूर्त – 11:25 ए एम से 01:57 पी एम
अवधि – 02 घण्टे 32 मिनट्स
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – 01:54 अपराह्न, 26 अगस्त, 2025
चतुर्थी तिथि समाप्त – 03:44 अपराह्न, 27 अगस्त, 2025
चंद्र दर्शन से बचने का समय – 09:42 ए एम से 09:22 पी एम
अवधि – 11 घण्टे 40 मिनट्स
गणेश चतुर्थी पूजा विधि (ganesh chaturthi pooja vidhi)
गणेश जी की मूर्ति को अपने घर ले आएं। मूर्ति लाने से पहले निम्नलिखित चीजों को तैयार करने की जरूरत है – मिट्टी के दीयों के साथ अगरबत्ती और धूप, प्लेट, गणेश मूर्ति को ढंकने के लिए एक कपड़ा, सुपारी, पान का पत्ता आदि। गणेश चतुर्थी की पूजा विधि कुछ इस तरह की जानी चाहिए।
गणेश चतुर्थी पूजा की रस्म मूर्ति लाने से पहले पूरे घर की सफाई से शुरू होती है। पूजा की शुरुआत अगरबत्ती और धूप से होती है जिसे आरती की थाली में रखा जाना चाहिए। अब सुपारी के साथ पान के पत्ते को संदली के सामने रखना चाहिए। पूजा करने वाले परिवार के सभी सदस्यों को आरती करते समय ओम गं गणपतये नमः का जाप करना चाहिए। यदि पुजारी पूजा कर रहा हो तो उसे दक्षिणा देनी चाहिए। जो लोग चतुर्थी से पहले गणेश की मूर्ति को घर लाते हैं, उन्हें मूर्ति का चेहरा ढंकना चाहिए। जिस दिन मूर्ति की स्थापना के दौरान गणेश चतुर्थी की पूजा की जाती है, उस दिन ही कपड़े को उतारना चाहिए। अब परिवार के किसी सदस्य से कहें कि वह मूर्ति को अंदर लाने से पहले एक कटोरी चावल लेकर उस पर बरसाए। गणेश की मूर्ति को रखने से पहले, उस पर कुछ कच्चा चावल एक सुपारी, हल्दी, कुमकुम चढाया जाता है। गणेश जी की मूर्ति को घर में रखने के बाद कुछ काम करने होते हैं। उदाहरण के लिए, मूर्ति की सेवा के लिए लाल फूल, दूर्वा, मोदक, नारियल, लाल चंदन, धूप और अगरबत्ती जैसी चीजों का बंदोबस्त कर लेना चाहिए। इसके बाद प्रभु के चरणों में रोज सुबह शाम परिवार के साथ आरती और भजन कीर्तन में समय बिताना चाहिए।
दस दिवसीय गणेश उत्सव
पुराणों की कथा के अनुसार चतुर्थी को गणेशजी का जन्म हुआ था। जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन जोरों पर था, तब लोगों में इसके प्रति जागरुकता पैदा करने के उद्देश्य से लोकमान्य तिलक ने महाराष्ट्र गणेशोत्सव की शुरुआत की। इसके बाद धीरे-धीरे यह त्यौहार देशभर में प्रचलित होने लगा। गणेश चतुर्थी से घर-घर गणेशजी की स्थापना होने लगी। अनंत चतुर्दशी पर गणेश उत्सव का समापन होता है। इंदौर, मुंबई, अहमदाबाद सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में चतुर्थी से शुरू हुआ गणेशोत्सव भगवान गणेश की प्रतिमा के विसर्जन के साथ समाप्त होता है।
दस दिन क्यों चलता है गणेशोत्सव?
गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ इसीलिए इस दिन उनकी पूजा की जाती है। लेकिन गणेश जन्म उत्सव दस दिनों तक क्यों चलता है? इसका जवाब कई पौराणिक ग्रंथों में अलग-अलग देखने को मिलता है। लेकिन इनमें सबसे प्रचलित और मान्य कथा का संबंध महाभारत से है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब वेदव्यास को महाभारत का ज्ञान हुआ तो उसे लिखित रूप देने के लिए उन्हे किसी महा विद्वान की जरूरत थी जो उनके शब्दों के उच्चारण को शब्दशः लिख सके। वे बोलते हुए विश्राम नहीं कर सकते थे, अन्यथा महाभारत का वह ज्ञान लुप्त हो जाता। इसके लिए तीनों लोक में सबसे उपयुक्त व्यक्ति थे भगवान गणेश। उन्होंने वेद व्यास का अनुरोध स्वीकारा और भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी से चतुर्दशी तक दस दिन लगातार महाभारत का लेखन किया। लेकिन निरंतर दस दिनों तक लेखन करने के कारण उनके शरीर का तापमान बेहद बढ़ गया, इसलिए वेद व्यास ने गणेश को पास ही में बने कुंड में स्नान करवाया! इससे उनका तापमान सामान्य हो गया। वेद व्यास और महाभारत से जुड़े इसे वाक्ये के कारण गणेश उत्सव दस दिनों तक जारी रहता है और दस दिनों के बाद गणेश जी की मूर्ति को जल में विसर्जित कर दिया जाता है।
गणेश चतुर्थी की कथा (ganesh chaturthi ka mahatva)
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी पार्वती ने मिट्टी से एक मूर्ति बनाई थी और बाद में उसमें प्राण फूंक दिए। इस तरह भगवान गणेश अस्तित्व में आए। लेकिन एक दिन जब गणेश गुफा की रक्षा कर रहे थे और माता पार्वती स्नान कर रही थीं। तब भगवान शिव वहां पहुंचे। गणेश को माता पार्वती ने निर्देश दिया था कि वे किसी को अंदर न जाने दें, तो गणेश ने भगवान शिव को अंदर नहीं जाने दिया, जिसके परिणामस्वरूप शिव नाराज हो गए। स्थिति ऐसी हो गई कि शिव ने गणेश का सिर त्रिशुल से अलग कर दिया। इसने पार्वती को क्रोधित कर दिया कि उन्होंने ब्रह्मांड को नष्ट कर डालने की धमकी दी। इसके बाद, भगवान शिव ने एक हाथी के सिर के साथ गणेश को पुनर्जीवित किया और देवताओं में प्रथम पूज्य का आशीर्वाद भी दिया। कहते हैं इस दिन भाद्रपद की चतुर्थी तिथि थी। इस कारण इस दिन गणेश चतुर्थी मनाई जाने लगी।
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गणेश जी के मंत्र (ganesh ji ke mantra)
गणेश चतुर्थी 2025 के उपलक्ष्य में हमने यहां गणेश जी के कुछ मंत्रों का उल्लेख किया है। आइए जानते हैं किस मंत्र के उपयोग से आपको क्या लाभ मिल सकता है।
- मनोकामना पूर्ति के लिए – ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरु गणेशग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति। मेरे दूर करो क्लेश।
- धन प्राप्त करने के लिए – ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा
- सुख समृद्धि प्राप्त करने के लिए – ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।
- कलह निवारण मंत्र – गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:गणेशजी
गणेश पूजा से ग्रह दोष दूर
भगवान गणेश की पूजा से नवग्रह संबंधी दोष दूर होते हैं। मान्यता है सूर्य ग्रह संबंधी कोई दोष हो तो भगवान गणेशजी को सफेद मंदार के पुष्प समर्पित करना चाहिए। गणेशजी को दूध का स्नान कराने से चंद्रमा की शांति होती है। वही बुध, गुरु और शुक्र जैसे ग्रह गणेश मंत्रों के जाप से अनुकूल परिणाम देते हैं। मंगल दोष के निवारण के लिए भी गणेश पूजा का विधान है। शनि दोष से पीड़ित व्यक्ति को गणेशजी की काली मूर्ति के दर्शन करना चाहिए। यदि ऐसा संभव ना हो, तो प्रत्येक शनिवार गणेशजी के किसी भी मंदिर जाकर कष्टों के निवारण की प्रार्थना करनी चाहिए। राहु और केतु के दोष निवारण के लिए ओम गं गणपतये नम: मंत्र का जाप उत्तम माना गया है। हालांकि गणेश पूजा विधि विधान से करनी चाहिए। गणेशपूजा में अथर्वशीर्ष का बड़ा महत्व है। इसके उच्चारण में गलतियां नहीं होनी चाहिए। आप नवग्रह संबंधी किसी भी दोष को दूर करने के लिए हमारे विशेषज्ञ आचार्यों के माध्यम से गणेश पूजा का लाभ ले सकते हैं।
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समापन
इस पर्व पर हम आपको गणेश चतुर्थी की अग्रिम शुभकामनाएं देते हैं। भगवान गणेश आपको और आपके परिवार को आशीर्वाद देते रहें।
और जाने संकष्टी चतुर्थी का महत्व