गुरु पूर्णिमा या आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व, मुहूर्त व पूजा-विधि

गुरु पूर्णिमा या आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व, मुहूर्त व पूजा-विधि

हिंदू संस्कृति में गुरु या शिक्षक को हमेशा भगवान के समान माना गया है। गुरु पूर्णिमा (guru purnima in hindi) या व्यास पूर्णिमा हमारे गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने का दिन है। गुरु एक संस्कृत शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है वह जो हमें अज्ञान से मुक्त करता है। आषाढ़ के महीने की पूर्णिमा का दिन हिंदू धर्म में वर्ष के सबसे शुभ दिनों में से एक है। इसे गुरु पूर्णिमा उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस साल गुरु पूर्णिमा गुरुवार, 10 जुलाई 2025 के दिन मनाई जाएगी। गुरु पूर्णिमा के दिन को वेद व्यास के जन्मदिन रूप में मनाया जाता है, जिन्हें पुराणों, महाभारत और वेदों जैसे समय के कुछ सबसे महत्वपूर्ण हिंदू ग्रंथों को लिखने का श्रेय दिया जाता है।

अपने ग्रह की स्थिति के आधार पर हमारे विशेषज्ञों से निःशुल्क कुंडली चार्ट प्राप्त करें।


गुरु पूर्णिमा का इतिहास ( guru purnima ka itihas)

गुरु पूर्णिमा वेद व्यास को सम्मानित करती है, जिन्हें प्राचीन भारत के सबसे सम्मानित गुरुओं में से एक के रूप में जाना जाता है। आधुनिक शोधों में भी इस बात की जानकारी मिलती है कि वेद व्यास ने चार वेदों की संरचना की, महाभारत के महाकाव्य की रचना की, कई पुराणों और हिंदू पवित्र विद्या के विशाल विश्वकोशों की नींव रखी। गुरु पूर्णिमा (guru purnima) उस तिथि का प्रतिनिधित्व करती है, जिस दिन भगवान शिव ने आदि गुरु या मूल गुरु के रूप में सात ऋषियों को पढ़ाया था, जो वेदों के दृष्टा थे। योग सूत्र में प्रणव या ओम के रूप में ईश्वर को योग का आदि गुरु कहा गया है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने इसी दिन सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था, जो इस पवित्र दिन की शक्ति को दर्शाता है।


गुरु पूर्णिमा का महत्व (guru purnima ka mahatav)

गुरु पूर्णिमा हमारे मन से अंधकार को दूर करने वाले शिक्षकों के सम्मान में मनाई जाती है। प्राचीन काल से ही अनुयायियों के जीवन में गुरु का विशेष स्थान रहा है। हिंदू धर्म की सभी पवित्र पुस्तकें गुरुओं के महत्व और एक गुरु और उनके शिष्य (शिष्य) के बीच के असाधारण बंधन को निर्धारित करती हैं। एक सदियों पुराना संस्कृत वाक्यांश माता पिता गुरु दैवम कहता है कि पहला स्थान माता के लिए, दूसरा पिता के लिए, तीसरा गुरु के लिए और आगे भगवान के लिए आरक्षित है। इस प्रकार, हिंदू परंपरा में शिक्षकों को देवताओं से ऊंचा स्थान दिया गया है। गुरु पूर्णिमा (guru purnima) मुख्य रूप से दुनिया भर में हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध समुदायों द्वारा गुरुओं या शिक्षकों के सम्मान में मनाई जाती है। भारत में, गुरु दैनिक जीवन में एक सम्मानित स्थान रखते हैं, क्योंकि वे अपने शिष्यों को ज्ञान और शिक्षा प्रदान करते हैं। किसी व्यक्ति के जीवन में गुरु की उपस्थिति उन्हें सही दिशा की ओर लेकर जाने का काम करती है, ताकि वह एक सैद्धांतिक जीवन जी सके। बौद्ध धर्म के अनुयायी भी गुरु पूर्णिमा के दिन का सम्मान करते हैं, क्योंकि भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश इसी दिन सारनाथ में दिया था। गुरु पूर्णिमा के इस भक्ति दिवस पर, जहां लोग भारत में इस त्योहार को अत्यधिक धार्मिक महत्व देते हैं, हम यहां इस पूजनीय दिन को पूरे दिल से आध्यात्मिकता के साथ मनाने के सर्वोत्तम तरीकों का वर्णन कर रहे हैं।

क्या आप पार्टनर के साथ एक आदर्श मैच के इच्छुक हैं? राशि चक्र अनुकूलता विश्लेषण 


गुरु पूर्णिमा 2025 की तिथि और समय

दिनांक: गुरुवार, 10 जुलाई 2025

तिथि का समय:

पूर्णिमा तिथि आरंभ: 10 जुलाई 2025 को 01:36 AM बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 11 जुलाई 2025 को 02:06 AM बजे


गुरु पूर्णिमा कैसे मनाएं (guru purnima kaise manaye)

गुरु पूर्णिमा आमतौर पर हमारे गुरुओं जैसे देवताओं की पूजा और कृतज्ञता व्यक्त करके मनाई जाती है। मठों और आश्रमों में, शिष्य अपने शिक्षकों के सम्मान में प्रार्थना करते हैं। लेकिन अभी भी आप यह सोच रहे हैं कि गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करें? या गुरु पूर्णिमा पर क्या करना चाहिए, तो हम आपको बता दें कि इस दिन, व्यक्ति को गुरु के सिद्धांत और शिक्षाओं का पालन करने के लिए खुद को समर्पित करना चाहिए और उन्हें अभ्यास में लाना चाहिए। गुरु पूर्णिमा से जुड़ी विष्णु पूजा का महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु के हजार नामों के रूप में जाने जाने वाले विष्णु सहत्रनाम का पाठ करना चाहिए। इस शुभ दिन पर स्वयं के साथ तालमेल बिठाएं और अपनी ऊर्जा को दिशा दें।


गुरु पूर्णिमा पूजा विधि (guru purnima pooja vidhi)

गुरु पूर्णिमा पूरी तरह अपने गुरु व शिक्षाकों को सम्मान देने का दिन है, चुंकि हिंदू धर्म में जीवन की कई सारी पद्धितियों का मिश्रण है इसलिए लोग अलग अलग तरह विधियों से गुरु पूर्णिमा की पूजा करने में अधिक विश्वास रखते हैं, यहां हमने गुरु पूर्णिमा से जुड़ी कुछ प्रमुख पूजा पद्धति या कहें गुरु पूर्णिमा का दिन बिताने की प्रक्रियाओं का उल्लेख किया है। आप अपने अनुसार इनमें से किसी एक, दो या सभी पूजा पद्धितियों से गुरु पूर्णिमा 2025 का दिन बिता सकते हैं।

मंगल आरती (guru purnima mangal arti)

गुरु पूर्णिमा एक ऐसी घटना है जो जीवन में गुरु के महत्व को बढ़ाती है, और वह किसी भी रूप में हो सकता है। चाहे वह प्रबुद्ध व्यक्ति हो या भगवान। सुबह अपने गुरु की पूजा एक विशेष प्रार्थना के साथ एक व्यवस्थित मंगल आरती के साथ करना गुरु पूर्णिमा के दिन की शुरुआत करने का एक शानदार तरीका हो सकता है। यह न केवल आसपास के वातावरण को शुद्ध करता है बल्कि यह आपके मन और आत्मा को भी तरोताजा कर देगा। मंगल आरती अपने गुरु के प्रति सम्मान दिखाने का सबसे अच्छा तरीका है।

गुरु पूर्णिमा पूजा (guru purnima guru pooja)

गु संस्कृत का मूल शब्द है जिसका अर्थ अज्ञान या अंधकार को दर्शाता है और रू उस व्यक्ति को दर्शाता है जो उस अंधकार को दूर करता है। ऐसे आप समझ सकते हैं कि गुरु वह व्यक्ति है, जो आपके जीवन से अंधकार को दूर करता है, इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु के प्रति अपना सारा सम्मान प्रकट करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। यह वह दिन है जो पूरी तरह से अकादमिक और आध्यात्मिक दोनों शिक्षकों को समर्पित है। इसके अलावा, यह शुभ दिन ध्यान के लिए सबसे अच्छा माना जाता है और साथ ही योग साधनाओं के लिए भी सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। आपको इस दिन से अपनी दिनचर्या को अधिक बेहतर और सिद्धांतों वाली बनाते हुए अधिक अनुशासित होने के लिए प्रयास करना चाहिए।

गुरु पूर्णिमा पर विष्णु पूजा ((guru purnima vishnu pooja)

गुरु पूर्णिमा के इस दिन से जुड़ी विष्णु पूजा का बड़ा महत्व है। तो इस दिन भगवान विष्णु की प्रार्थना करने का सबसे अच्छा तरीका विष्णु सहत्रनाम का पाठ करना है जो भगवान विष्णु के एक हजार नाम हैं।

चातुर्मास (chatur maas)

गुरु पूर्णिमा का यह दिन वर्ष के चातुर्मास (चार महीने) की अवधि की शुरुआत का प्रतीक है। पुराने समय में जाग्रत गुरु और आध्यात्मिक गुरु वर्ष के इस समय में ब्रह्मा पर व्यास द्वारा रचित प्रवचन का अध्ययन करने के लिए नीचे उतरते थे और वेदांतिक चर्चा में शामिल होते थे और अपने गुरुओं की पूजा करते थे।


गुरु पूर्णिमा पर पाएं बृहस्पति का आशीर्वाद (guru purnima ka guru grah se sambandh)

वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार, आप एक अभ्यस्त और ऊर्जावान गुरु यंत्र की पूजा भी कर सकते हैं, खासकर यदि बृहस्पति ग्रह एक या अधिक ग्रहों के साथ आपकी जन्म कुंडली में मौजूद हों। यह आपकी कुंडली में गुरु या भगवान बृहस्पति के अच्छे प्रभावों को मजबूत करने में आपकी मदद करेगा।
यदि आपकी जन्म कुंडली में गुरु अपनी नीच राशि यानी मकर राशि में है, तो आपको नियमित रूप से किसी गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए।

आपकी जन्म कुंडली में बृहस्पति – राहु, बृहस्पति – केतु या बृहस्पति – शनि की युति होने पर भी गुरु यंत्र की पूजा (guru yantra) करना आपके लिए अनुकूल है। यदि गुरु आपकी कुण्डली में नीच भाव में अर्थात छठे, आठवें या बारहवें भाव में है तो आपको किसी ऊर्जावान गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए। गुरु ग्रह के दुष्प्रभावों से बचने के लिए पुखराज भी पहना जा सकता है। हालांकि बिना किसी विशेषज्ञों की सलाह के बगैर किसी रत्न को धारण नहीं करना चाहिए। यदि आपको पुखराज सूट करता है, तो धन-दौलत, व्यापार, नौकरी, संतान या स्वास्थ्य संबंधी किसी भी तरह की समस्या आपको नहीं होगी। क्या आपके लिए है पुखराज सही।

हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषियों से बात करें