अच्छे फल के लिए हनुमान पूजा कैसे करें?
कैसे करें हनुमान पूजा
पूजा सामग्री
लच्छा, लाल कपड़ा/लंगोट, शुद्ध जल का कलश, जनेऊ, पंचामृत, गंगाजल, सिन्दूर, आम के पत्ते, चांदी/सोने का वर्क, गेंहु, लाल फूल और माला, इत्र, भुने चने, गुड़, पान, नारियल, केले, सरसों का तेल, चमेली का तेल, घी, तुलसी पत्र, दीपक, धूप, अगरबत्ती, कपूर।
अगर कोई सामग्री आपके पास उपलब्ध ना हो तो भी आप सच्चे मन से प्रभु की आराधना कर सकते हैं। हालांकि सभी सामग्री के साथ पूजा मनचाहे फल दिलाती है।
हनुमान जी की पूजा विधि
हनुमान जी की पूजा करने के लिये सबसे पहले शुद्ध जल से स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें अब हनुमान जी की मूर्ति के सामने आसान लगाकर सही दिशा (दक्षिण दिशा की तरफ मुँह नहीं होना चाहिए) में बैठे। सबसे पहले हनुमान जी की प्रतिमा के सामने गेंहू के दाने रखकर कलश रखें। उसमें शुद्ध जल भरें, आम के पत्ते व नारियल रखें तथा एक दीपक घी का व एक दीपक सरसों के तेल का जलाएं। सिंदूर के अंदर चमेली का तेल मिलाएं और उनकी मूर्ति पर लगाएं। अब चांदी या सोने का वर्क मूर्ति पर चढ़ाएं, जिसे चोला कहते हैं। हनुमान जी को यह अत्यधिक प्रिय है। अब हनुमान जी को लाल वस्त्र पहनाएं और उनके ऊपर इत्र का छिड़काव करें। हनुमान जी के सर पर कंकु का तिलक लगाएं, माला पहनाएं और फूल चढ़ाएं और अगरबत्ती और धूप जलाएं। उसके बाद हनुमान जी को भुने हुए चने और गुड़ का भोग लगाएं, पंचामृत चढ़ाएं, उसमें तुलसी का पत्ता जरूर रखें। केले चढ़ाएं, पान चढ़ाएं और फिर हाथ में चावल लेकर हनुमान जी का स्मरण करें। हनुमान चालीसा का कम से कम सात बार पाठ करें और अंत मे आरती करें और आरती ठंडी करने के बाद सभी को आरती दें। फिर हनुमान जी का प्रसाद वितरित करें।
हनुमान श्लोक
ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय।
नारसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतप्रेतदमनाय स्वाहाः।। प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु हृदय आगार बसिंह राम सर चाप घर।।
हनुमान पूजा करने से लाभ
ऐसा कहा जाता है कि संकट मोचन हनुमान भगवान श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए पृथ्वी लोक में ही निवास करते है। इसलिए हनुमान जी को किसी भी बात के लिए मनाना आसान हो जाता है। हनुमान जी अपने भक्तों के संकट दूर भी करते हैं। उनकी पूजा करने से सबसे बड़ा लाभ यह है कि व्यक्ति धन, विजय, और आरोग्य की प्राप्ति करता है और संकट मुक्त होता है।
हनुमान चालीसा
हनुमान चालीसा का पाठ पूजा करने के बाद सात बार तो कम से कम करे
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥१॥
महाबीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल कुँचित केसा ॥२॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन ॥३॥
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मनबसिया ॥४॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँरे ॥५॥
लाय सजीवन लखन जियाए श्री रघुबीर हरषि उर लाए
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥६॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस कहि श्रीपति कंठ लगावै
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ॥७॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कवि कोविद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥८॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥९॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लाँघि गए अचरज नाही
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥१०॥
राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना ॥११॥
आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक ते काँपै
भूत पिशाच निकट नहि आवै महाबीर जब नाम सुनावै ॥१२॥
नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा
संकट ते हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥१३॥
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै सोइ अमित जीवन फल पावै ॥१४॥
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु संत के तुम रखवारे असुर निकंदन राम दुलारे ॥१५॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ॥१६॥
तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै
अंतकाल रघुवरपुर जाई जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥१७॥
और देवता चित्त ना धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई
संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥१८॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ कृपा करहु गुरु देव की नाई
जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदि महा सुख होई ॥१९॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥२०॥
दोहा :
पवन तनय संकट हरण मंगल मूरत रूप ।
राम लखन सीता सहित ह्रदय बसौ सुर भूप ॥
हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥