दत्तात्रेय जयंती 2024: इस दिन के महत्वपूर्ण तथ्य जानिए
भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव की दिव्य स्वरुप से दत्तात्रेय भगवान का जन्म हुआ था। दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) के दिन भगवान दत्तात्रेय और इन्हीं त्रिमूर्ति की पूजा की जाती है। दत्तात्रेय भगवान में आप तीनों भगवान के दर्शन कर सकते हैं। दत्त जयंती एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो अग्रहयण की पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है। भगवान दत्तात्रेय को भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने परिवेश और पर्यावरण को देखकर ज्ञान प्राप्त किया था।
दत्तात्रेय भगवान को आमतौर पर तीन सिर और छह हाथों के साथ दिखाया जाता है। इसमें उनके तीन सर ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के रूप को दर्शाते हैं। जबकि छह हाथों में ब्रह्मा के कमंडल और माला, विष्णु के शंख और चक्र, शिव के त्रिशूल और डमरू है। दत्त जयंती (Datta Jayanti) पूरे भारत में दत्तात्रेय को समर्पित मंदिरों में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। कुछ महत्वपूर्ण मंदिर कर्नाटक में गुलबर्गा के पास गणगपुर में, महाराष्ट्र के कोल्हापुर में नरसिम्हा वाड़ी, काकीनाड़ा के पास आंध्र प्रदेश में पीथापुरम, सांगली में औदुम्बर और सौराष्ट्र में गिरनार में स्थित हैं। आइये जानते हैं कि इस बार कब पड़ रही है दत्तात्रेय जयंती:
दत्तात्रेय जयंती 2024: तिथि और समय
दत्तात्रेय जयंती | शनिवार, 14 दिसंबर 2024 |
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तिथि प्रारंभ | 14 दिसंबर 2024 को शाम 04:58 बजे |
तिथि समाप्त | 15 दिसंबर 2024 को दोपहर 02:31 बजे |
भगवान दत्तात्रेय की कथा
भगवान दत्तात्रेय ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र थे। अनुसूया पतिव्रता, धर्म में समर्पित और बहुत ही गुणी महिला थीं। इन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और शिव की शक्तियों और गुणों के साथ एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी। जिसके फलस्वरूप दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। इन्हें भारत के प्राचीन देवताओं में से एक माना जाता है। दत्तात्रेय का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। दत्तात्रेय उपनिषद, जो अथर्ववेद का हिस्सा है, अपने अनुयायियों को ज्ञान प्राप्त करने में मदद करने के लिए उनके विभिन्न रूप लेने की बात को सिद्ध करता है।
एक बार स्वर्ग में देवी लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती जी, तीनो देवियां पतिव्रता और सतीत्व के बारे में चर्चा कर रही थी। तभी नारद जी वहां पहुँच गए और उन्होंने तीनों देवियों को अनुसूया के बारे में बताया। जिनके बारे में सुनकर तीनों देवियों ने उनके सतीत्व को तोड़ने के लिए अपने -अपने देवों से हठ कर बैठीं। भगवान ब्रम्हा, विष्णु और महेश जब उन्हें समझा नहीं पाएं तो वह अनुसूया की परीक्षा लेने भेष बदलकर उनके आश्रम उस वक्त गए जब आश्रम में केवल अनुसूया थीं।
वह ऋषियों के रूप में वहां पहुंचे थे। उन्हें देखते ही माता अनुसूया ने उनका सत्कार किया और भोजन ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन ऋषियों ने कहा जब आप निर्वस्त्र होकर हमें भोजन कराएंगी तभी हम भोजन करेंगे। यह सुनते ही अनुसूया ने अपने दिव्य दृष्टि से देखा और उन्हें पहचान लिया कि वह कौन हैं। इसके बाद उन्हें समझते देर नहीं लगी की त्रिदेव उनकी परीक्षा लेने आये हैं। फिर उन्होंने कमंडल से जल लेते हुए मंत्रों की शक्ति से उन्हें सक्रिय किया। जल को ऋषियों पर डालते ही वह तीनों ऋषि बच्चे बन गए।
जब ऋषि बालक बन गए तो उनके अंदर का मातृत्व जाग उठा। उसके बाद उन्होंने उनको स्तनपान करवाकर उनकी भूख को शांत किया। इस तरह उन्होंने उनके वचनों की लाज भी रखी और अपना सतीत्व को भी बचाया। सभी बच्चों की जब भूख मिट गयी तो वह खेलते हुए सो गए। जब ऋषि अत्रि वहां पहुंचे तो उन्होंने पूरा वृतांत सुनाया। दोनों मिलकर बच्चों को खिलाने लगें।
भगवान जब वापस नहीं आएं तो तीनो देवियां परेशान हो गयी। उसके बाद महर्षि नारद उन्हें माता अनुसूया के आश्रम लेके आये। नारद मुनि ने माता अनुसूया से आग्रह किया कि सभी देवियां परेशान हैं, कृपया करके उनके पतियों को लौटा दें। माता अनुसूया ने सोते हुए बच्चों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वह अपने पतियों को ले जाएँ। पर देवियां इसमें असमर्थ थीं क्योंकि वह अपने पति को बालक रूप में नहीं पहचान पा रही थीं। फिर भी उन्होंने बालकों को उठा लिया, लेकिन वह उनके पति नहीं थे। इससे तीनों देवियां बहुत शर्मिंदा हुईं।
देवी सरस्वती ने विष्णु जी को, देवी पार्वती ने ब्रम्हा जी को और देवी लक्ष्मी ने शिव जी को उठा लिया था, इसको देखते हुए माता अनुसूया ने कहा कि क्या आप लोग अपने पतियों को नहीं पहचानती हैं। तब तीनो देवियों ने याचना की कि उन्हें उनके पतियों को उसी स्वरुप में लौटा दें। इसके बाद माता ने उन्हें उनके स्वरुप में कर दिया। तीनों देवता माता अनुसूया से खुश हुए और उन्होंने उनसे आशीर्वाद मांगने के लिए कहा। तब उन्होंने तीनों देवों को अपने पुत्र के रूप में प्राप्त करने का वरदान माँगा। त्रिदेव तथास्तु कह के अपने देवियों के साथ अंतर्ध्यान हो गए। इस प्रकार त्रिदेवों के आशीर्वाद से दत्तात्रेय का जन्म हुआ और ऋषि अत्रि एवं अनुसूया माता -पिता बनें।
दत्ता जयंती पूजा विधि
- दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएँ।
- नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें।
- इस दिन नदियों और जलाशयों में स्नान करना पवित्र माना गया है।
- यदि सामर्थ्य हो तो आप नदी में जाकर स्नान करें।
- स्नान करने के बाद हाथ में जल लेते हुए व्रत करने का संकल्प लें।
- साफ़-सुथरे कपडे पहनें।
- भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति सामने रखते हुए फूल, दीपक, धूप और कपूर से पूजा करें।
- अवधूत् गीता और जीवनमुक्त गीता की पवित्र पुस्तकों का पाठ करें।
- इनमें भगवान दत्तात्रेय के प्रवचन हैं।
- ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा और “ॐ महानाथाय नमः” मंत्रों द्वारा प्रार्थना करें।
- भजन कीर्तन करें और सभी को प्रसाद बाटें।
- अगले दिन स्नान करके पूजा करें, जरुरत मंदों को खाना खिलाकर सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा दें।
- अब स्वयं भोजन करके व्रत का पारण करें।
दत्तात्रेय जयंती का महत्व और अनुष्ठान
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दत्तात्रेय के 24 गुरु थे। जिनसे उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान दत्तात्रेय के नाम पर ही दत्त समुदाय का उदय हुआ था। इस दिन जो भी भक्त व्रत रखकर भगवान दत्त की पूजा अर्चना करता है, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। भगवान दत्त तीनों देवताओं का स्वरुप होने के कारण, इनकी पूजा करने पर दत्तात्रेय के साथ -साथ त्रिदेव भी प्रसन्न होते हैं।
धार्मिकता के मार्ग पर चलने वाले लोग घरों और मंदिरों में भगवान दत्तात्रेय की मूर्तियों की पूजा करते है। मंदिरों को सजाते है, और भगवान दत्तात्रेय को समर्पित भजन और भक्ति गीतों में डूब जाते हैं।
दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।