जानें शाकंभरी पूर्णिमा 2025 की सही पूजन विधि, जिसे करने से मिलेगा आपको सबसे ज्यादा लाभ!
शाकंभरी पूर्णिमा 2025 (shakambhari purnima 2025) जिसे पौष पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, यह पौष माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इसलिये यह पौष पूर्णिमा भी कहलाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इसकी शुरुआत पौष माह की नवरात्रि के अष्टमी तिथि से होती है तथा पूर्णिमा तिथि के दिन समाप्त होती है। शाकंभरी (shakambhari) देवी पार्वती माता का ही एक अवतार मानी जाती है। शाकंभरी शब्द का अर्थ है ‘ जो सब्जियां उगाती है’। ऐसा कहा जाता है कि सौ साल तक चलने वाले अकाल को नष्ट करने के लिये परमशक्ति ने शताक्षी-शाकंभरी के रूप में अवतार लिया और भूखों को भोजन दिया।
साल 2025 में कब है शाकंभरी पूर्णिमा (shakambhari purnima 2025 date)
शाकम्भरी पूर्णिमा 2025 | तिथि और समय |
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शाकम्भरी पूर्णिमा | सोमवार, जनवरी 13, 2025 |
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ | जनवरी 12, 2025 को 06:33 पी एम बजे |
पूर्णिमा तिथि समाप्त | जनवरी 13, 2025 को 05:26 पी एम बजे |
मां शाकंभरी (shakambhari) के शक्तिपीठ
भगवती शाकंभरी का सबसे प्राचीन मंदिर शिवालिक पर्वतमाला के जंगलों के बीच मौसमी नदी के तट पर है। जिसके बारे में पुराणों जैसे स्कंद पुराण, मार्कंडेय पुराण, भागवतम आदि में पढ़ा जा सकता है। कहा जाता है कि यहां मां स्वघोषित रूप में प्रकट हुई थी। दक्षिण भारत के कर्नाटक में शाकंभरी देवी को वनशंकरी देवी भी कहते है। यह तिलकारण्य में स्थित हैं। ये मंदिर कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले में बादामी के पास स्थित है।
राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुरवाटी के पास माता सकराय का मंदिर स्थित है, जो कि पांडव युग का माना गया है। माना जाता है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांडव ने अपने भाइयों और परिजनों के हत्या के दोष मुक्ति के लिए अरावली पहाड़ियों में रुक कर पूजा अर्चना की थी। तब से इस स्थान को शाकंभरी तीर्थ के रूप में संज्ञा प्राप्त है। इस मंदिर की स्थापना 7वीं शताब्दी में की गई थी।
राजस्थान के ही सांभर जिले में शाकंभर नाम से देवी शाकंभरी का मंदिर स्थित है। मां के नाम पर ही इस जिले का है। इसी स्थान पर शुक्राचार्य ने अपनी पुत्री देवयानी का विवाह नरेश ययाति के साथ सम्पन्न करवाया था। नाम रखा गया है। इसके अलावा सांभर झील भी मां के नाम से ही प्रसिद्ध है। माता का मंदिर सांभर से लगभग 15 किमी दूरी पर
उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किमी दूरी पर शाकंभरी माता का मंदिर है। इस सिद्धपीठ में माता शाकंभरी देवी, भीमा देवी, भ्रामरी देवी व शताक्षी देवी भी प्रतिष्ठित हैं। माना जाता है कि यहां पर माता शाकंभरी बहती हुई नदी की जल धारा, ऊंचे पहाड़ और जंगलों के बीच विचरण करती हैं।
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शाकंभरी (shakambhari) माता कथा
पुराने समय में दुर्गमासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। जो बहुत क्रूर व निर्दयी था। वह हिरण्याक्ष के परिवार में पैदा हुआ था। एक बार उसने सोचा कि उसे सभी देवताओं और ऋषियों से वेद – सांसारिक ज्ञान की चार पुस्तकें प्राप्त करनी चाहिए और उसे अग्नि यज्ञों से अपना योग्य हिस्सा प्राप्त करना चाहिए। यह सोचकर वह तपस्या करने के लिए हिमालय चला गया। उसने ब्रह्मा जी का ध्यान किया, और केवल हवा में रहकर अपना जीवनयापन किया। फिर एक हजार वर्ष तक कठोर तपस्या की जिससे उसकी तेजस शक्ति से देवता और राक्षसों का सारा संसार उत्तेजित हो गया। तब ब्रह्माजी उससे प्रसन्न हुए और अपने वाहन पर सवार होकर, दुर्गमासुर को वरदान देने आए। ब्रह्मा जी ने कहा कि वह दुर्गमासुर की तपस्या से प्रसन्न हैं और उसे मनचाहा वरदान देंगे। यह सुनकर उस दानव ने ब्रह्म जी की विधिवत पूजा करके उनसे वेदों की चारों पुस्तकें देने के लिए कहा। चारों वेदों के रचयिता ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दिया और चले गए।
उस समय से ऋषियों ने वेदों के ज्ञान से संबंधित सब कुछ भुला दिया। जिससे स्नान, गोधूलि, दैनिक अनुष्ठान, विश्वास, यज्ञ, और जप व अन्य संस्कार और प्रदर्शन सभी विलुप्त हो गए। पृथ्वी की सतह पर सारे विश्वव्यापी संकट उत्पन्न होने लगें। ऋषियों को आश्चर्य होने लगा कि वह वेदों को कैसे भूल गए। इस प्रकार जब पृथ्वी पर बड़ी विपत्तियां आई, तो देवता धीरे-धीरे कमजोर हो गए। इस समय, उस राक्षस ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। देवता, दानव से लड़ने में सक्षम नहीं होने के कारण विभिन्न दिशाओं में भाग गए।
तब सभी देवताओं ने सुमेरु पर्वत की गुफाओं और पर्वतों में जाकर शरण ली और सबसे शक्तिशाली महान देवी का ध्यान करने लगे। धरती काफी शुष्क होकर सुख गई और पानी की एक बूंद भी कहीं नहीं मिली। कुएं, तालाब, ताल, नदियां सब सूख गए। बारिश नहीं हुई और यह अवस्था सौ साल तक चली। अनगिनत लोग, सैकड़ों और हजारों गाय, भैंस और अन्य जानवर मौत के मुंह में चले गए। जब ऐसी विपदाएं देखी गई, तो संत सर्वोच्च देवी की पूजा करने के लिए, हिमालय की ओर चला गया। वे पूरे मन से और बिना कुछ खाए ही अपनी तपस्या, ध्यान और प्रतिदिन देवी की पूजा करने लगे। इस प्रकार संतों ने महेश्वरी की स्तुति और जप किया। वहां, देवी पार्वती शिवालिक पहाड़ियों में (वर्तमान में शाकंभरी) गई, जहां भगवान उनसे प्रार्थना कर रहे थे। देवताओं ने उन्हें पृथ्वी पर सूखे की स्थिति के बारे में बताया। पृथ्वी की भयानक स्थिति को देखकर उन्होंने अपने शरीर के भीतर असंख्य नेत्रों का निर्माण किया और चारों ओर देखने लगी। उनका रंग गहरा-नीला था, नीले कमल की तरह वह सौंदर्य का सार थी, सुंदर, हजार सूर्यों की तरह चमकदार, और दया का सागर।
ब्रह्मांड के पालनहार ने अपना रूप दिखाया और उनकी आँखों से पानी बहाने लगा। लगातार नौ रातों तक, उनकी आंखों से बहते पानी से भारी बारिश होती रही। इतना ही नहीं उन आँसुओं से नदियां बहने लगीं। शिवालिक पर्वत की गुफाओं में छिपे देवता अब बाहर आ गए। तब ऋषियों ने देवताओं के साथ मिलकर देवी की स्तुति की। फिर, देवी ने स्वयं को एक अद्भुत रूप में बदल दिया। उनके आठ हाथों में अनाज, सब्जियां, साग, फल और अन्य जड़ी-बूटियां थीं। उन्होंने एक सुंदर वस्त्र पहना, देवी के इस नए रूप को शाकंभरी के रूप में जाना जाता है। देवताओं और संतों के विलाप को सुनकर, शाकंभरी देवी ने उन्हें खाने के लिए सब्जियां, स्वादिष्ट फल दिए। उनकी प्रार्थना के बाद, उन्होंने जानवरों को घास आदि पर्याप्त मात्रा में दिया, जब तक कि नई फसलें नहीं निकलीं। उस दिन से वह शाकंभरी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
शाकंभरी (shakambhari) माता की पूजा किस प्रकार करें?
हर साल विजयवाड़ा दुर्गा मंदिर में तीन दिनों तक शाकंभरी (shakambhari) उत्सव मनाया जाता हैं। इन दिनों देवी को सब्जियों और फलों से सजाया जाता है।
पूजा विधि
- इस दिन प्रात:काल में जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करें।
- मां शाकम्भरी (shakambhari) का ध्यान करें।
- इसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ देवी की पूजा करें।
- मां शाकम्भरी (shakambhari) की चौकी लगाएं।
- उनकी प्रतिमा की आरती उतारें।
- ताजे फल और सब्जियों से भोग लगाएं और गंगा जल का छिड़काव करें।
- इसके बाद मंदिर में जाकर प्रसाद प्रसाद चढ़ाएं और जरूरतमंदों को दान करें.
- इस दिन मां शाकाम्भरी (shakambhari) की कथा भी सुनें।
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शाकंभरी (shakambhari) माता की आरती
हरि ॐ श्री शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो
ऐसी अद्भुत रूप हृदय धर लीजो
शताक्षी दयालु की आरती कीजो
तुम परिपूर्ण आदि भवानी मां,
सब घट तुम आप बखानी मां
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो…
तुम्हीं हो शाकुम्भर, तुम ही हो सताक्षी मां
शिवमूर्ति माया प्रकाशी मां,
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो…
नित जो नर-नारी अम्बे आरती गावे मां
इच्छा पूर्ण कीजो, शाकुम्भर दर्शन पावे मां
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो…
जो नर आरती पढ़े पढ़ावे मां,
जो नर आरती सुनावे मां
बस बैकुंठ शाकुम्भर दर्शन पावे
शाकुम्भरी अंबाजी की आरती कीजो…
शाकंभरी (shakambhari) माता का मंत्र
शाकंभरी पूर्णिमा 2025 (shakambhari purnima 2025) पर देवी के शुभ मंत्र का जाप करना भी बेहद शुभ माना जाता है। व्रत रखने वालों इस दिन शाकंभरी माता के मंत्र का जाप कर सकते हैं।
नीलवर्णा नीलोत्पल विलोचना।
मुष्टिं शिलीमुखा पूर्णकमलं कमलालया।।’
इस मंत्र का जाप करने से घर में कभी भी अनाज और धन की कमी नहीं होती है।
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