ऐसे मनाया जाता है रक्षाबंधन का पर्व

ऐसे मनाया जाता है रक्षाबंधन का पर्व

भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन प्रत्येक वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर हाथ में रक्षा सूत्र बांध कर ईश्वर से उसकी कुशलता की प्रार्थना करती हैं। श्रावण (अथवा सावन) माह में मनाए जाने के कारण इसे श्रावणी भी कहा जाता है। यूं तो रक्षाबंधन (अथवा राखी) का पर्व पूरे देश में मनाया जाता है परन्तु देश के अलग-अलग स्थानों पर इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। कई स्थानों पर परंपरा में भी स्थानीय प्रभाव के चलते कुछ अलग रीतियों का पालन किया जाता है। उत्तर भारत में रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध कर उसकी कुशलता की कामना करती है। बदले में भाई भी उसे कुछ उपहार देकर संकट के समय उसकी सहायता का वचन देता है।

रक्षाबंधन पर राखी बांधने का शुभ मुहूर्त (Raksha Bandhan Muhurat 2025)

रक्षा बंधन श्रावण मास में पूर्णिमा के दिन या पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

हिंदू दिवस विभाग के अनुसार, रक्षाबंधन पर राखी बांधने का आदर्श समय अपराहना के दौरान होता है, जो दोपहर बाद होता है। यदि अपराह्न समय उपलब्ध न हो तो रक्षा बंधन संस्कार करने के लिए प्रदोष काल भी स्वीकार्य है।

रक्षा बंधन के अनुष्ठान भद्रा के दौरान नहीं किए जाने चाहिए। प्रत्येक शुभ कार्य के लिए भद्रा से बचना चाहिए क्योंकि यह अशुभ काल होता है। व्रतराज सहित अधिकांश हिंदू पवित्र ग्रंथ, भाद्र काल के दौरान रक्षा बंधन के त्योहार पर राखी बांधने के खिलाफ चेतावनी देते हैं।

शुभ मुहूर्त

रक्षाबंधनतिथि और समय
रक्षाबंधन 20259 अगस्त 2025, शनिवार
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 08 अगस्त 2025 को दोपहर 02:12 PM
पूर्णिमा तिथि समापन 09 अगस्त 2025 को दोपहर 01:24 PM

ऐसे मनाया जाता है रक्षाबंधन का पर्व (How to celebrate Raksha Bandhan Festival)

श्रावणी पूर्णिमा अर्थात् रक्षाबंधन पर भगवान को राम राखी और स्त्रियों को चूड़ा राखी बांधने की प्रथा प्रचलित है। सामान्य राखी के विपरीत रामराखी में लाल डोरे पर पीले छींटों वाला फुंदना लगाया जाता है। जबकि चूड़ा राखी बहन अपनी भाभी (भाई की पत्नी) की चूड़ियों में बांधती है। यहां कई स्थानों पर इस दिन देवताओं की पूजा कर पितरों का तर्पण भी किया जाता है। विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान यथा पूजा-पाठ, यज्ञ आदि किए जाते हैं। उत्तरांचल में रक्षाबंधन पर्व को श्रावणी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन ऋषियों का तर्पण कर नवीन यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण की जाती है। पूजा-पाठ करने वाले ब्राह्मण अपने यजमानों के राखी बांधकर उनकी कुशलता की कामना करते हैं, यजमान उन्हें दक्षिणा देते हैं। इसी प्रकार महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन लोग नदी अथवा समुद्र तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं। समुद्र तथा जल के देवता वरुण देव को प्रसन्न करने के लिए समुद्र को नारियल भेंट किए जाते हैं। केरल, उड़ीसा तथा तमिलनाडु में इस पर्व को अवनि अवित्तम कहा जाता है। यहां भी महाराष्ट्र की ही भांति समुद्र तट पर जाकर स्नान आदि से निवृत्त होकर ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। पुराने पापों को त्याग कर आने वाले समय में शुद्धता व पवित्रता के साथ रहने की प्रतिज्ञा की जाती है।

कब शुरू हुआ रक्षाबंधन का त्यौहार (When Raksha Bandhan celebration started)

भारतीय संस्कृति में राखी के पर्व का प्रथम वर्णन पौराणिक शास्त्रों में मिलता है। भविष्यपुराण की एक कथा के अनुसार देव और दानवों में युद्ध हो रहा था। दानव देवताओं पर भारी पड़ रहे थे और इन्द्र चिंतित होकर अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे। तब इन्द्राणी ने एक रेशम के धागे को मंत्रित कर इन्द्र की कलाई पर बांध दिया। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। इस अभिमंत्रित धागे के प्रभाव से इन्द्र ने दानवों का परास्त कर पुन: स्वर्ग का राज्य प्राप्त कर लिया। तभी से सावन मास की पूर्णिमा को रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा चल पड़ी जिसे बाद में रक्षाबंधन का नाम दे दिया गया। इसी प्रकार की एक पौराणिक कथा प्रहलाद के पौत्र तथा असुरराज बालि से भी जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार बालि ने भक्ति तथा तप के द्वारा शक्ति प्राप्त कर समस्त लोकों को जीत लिया था। इस पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर उसका मानमर्दन किया और उसे पाताल लोक में भेज दिया। पाताल लोक जाकर बालि ने अपनी भक्ति से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर उनसे पाताल लोक में रहने का वचन मांग लिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु पाताल लोक में ही निवास करने लगे। इस पर लक्ष्मी जी चिंतित हो गई। अंत में देवर्षि नारद की सलाह पर उन्होंने बालि को रक्षा सूत्र बांध कर उसे अपना भाई बनाया और पुन: भगवान विष्णु को बैकुंठ में साथ ले आईं। महाभारत में भी इसी प्रकार की एक कथा कही गई है। शिशुपाल वध के समय भगवान कृष्ण की अंगुली कट गई तथा उससे रक्त बहने लगा। इस पर वहां उपस्थित द्रौपदी ने तुरंत ही अपनी वस्त्र में एक टुकड़ा फाड़ा और उसे कृष्ण की अंगुली पर बांध दिया। इस उपकार का बदला भगवान कृष्ण ने इन्द्रप्रस्थ की सभा में उस समय द्रौपदी के शील की रक्षा कर चुकाया जब द्यूत क्रीडा में हारने के बाद दुशासन भरी सभा में द्रौपदी को नग्न करने का प्रयास कर रहा था।

रक्षाबंधन से जुड़ी ऐसी ऐतिहासिक कहानियां (Raksha Bandhan stories in history)

भारतीय इतिहास में भी रक्षाबंधन से जुड़ी कई कहानियां पढ़ने को मिलती हैं। इनमें सर्वाधिक प्रचलित कहानी मेवाड़ की रानी कर्मावती तथा मुगल बादशाह हुमायूं की है। मध्यकाल में बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। इस हमले का प्रतिकार करने की शक्ति मेवाड़ में नहीं थी अत: मेवाड़ को बचाने के लिए वहां की रानी कर्मावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेज कर अपने राज्य की रक्षा की प्रार्थना की। राखी का मान रखते हुए हुमायूं मेवाड़ पहुंचा और बहादुरशाह के विरुद्ध लड़ाई की।

बॉलीवुड में रक्षाबंधन का पर्व (Raksha Bandhan in Bollywood)

हिंदी फिल्म जगत में भी रक्षाबंधन के पर्व को लेकर कई फिल्में बनाई गई। ‘राखी’ नाम से ही सन 1949 तथा 1962 में दो फिल्में बनाई गई। 1962 में बनी फिल्म में अशोक कुमार, वहीदा रहमान तथा प्रदीप कुमार जैसे दिग्गज सितारों ने काम किया था। इसी तरह 1976 में सचिन और सारिका को लेकर ‘रक्षाबन्धन’ नाम की भी एक फिल्म बनाई गई। इनके अलावा समय-समय पर फिल्मों में रक्षाबंधन के दृश्य भी देखने को मिलते हैं। राखी के महत्व को दर्शाने वाले बहुत से गीतों की रचना भी फिल्मी गीतकार तथा संगीतकारों ने की है।

राशि के अनुसार बांधे राखी

मेष राशि
मेष राशि वालों को लाल रंग की राखी बांधना शुभ होता है। इससे भाई के जीवन में उत्साह और उर्जा बनी रहती है। हालांकि केसरिया या पीले रंग की राखी भी बांधी जा सकती है। इस मौके पर भाई को केसर का तिलक लगाना चाहिए।

वृषभ राशि
वृषभ राशि वालों के लिए सफेद या सिल्‍वर रंग की राखी शुभ होती है। इस दौरान भाई को रोली और चावल का तिलक लगाएं।

मिथुन राशि
इनके लिए हरी या चंदन से बनी राखियां शुभ होती है। इस दौरान भाई को हल्‍दी का तिलक लगाएं।

कर्क राशि
इन्हें सफेद रेशमी धागे की या मोतियों से बनी राखी बांधना शुभ होता है। इस दौरान भाई के माथे पर चंदन का तिलक लगाना चाहिए।

सिंह राशि
इनके लिए सुनहरा, पीला या गुलाबी रंग की राखी शुभ होती है। इस दौरान हल्दी और रोली का तिलक करना चाहिए।

कन्या राशि
इनके लिए सफेद रेशमी या हरे रंग की राखी शुभ होती है। इस दौरान भाई को हल्दी और चंदन का तिलक लगाना शुभ होता है।

तुला राशि
इनके लिए हल्का नीला, सफेद या क्रीम रंग की राखी शुभ होती है। उनके माथे पर केसर का तिलक लगाना शुभ होता है।

वृश्चिक राशि
इनके लिए गुलाबी, लाल या चमकीली राखी शुभ होती है। इस दौरान रोली का तिलक लगाना शुभ होता है।

धनु राशि
भाई धनु राशि का है तो उसे पीलापन लिए हुए रेशमी रंग की राखी बांधना शुभ होता है। इस दौरान हल्दी और कुमकुम का तिलक लगाएं।

मकर राशि
इनके लिए ब्लू या डार्क ब्लू रंग की राखी शुभ होती है। माथे पर केसर का तिलक लगाना चाहिए।

कुंभ राशि
इनके लिए रुद्राक्ष से बनी राखियां शुभ होती हैं। यह संभव न होने पर पीले रंग की राखी भी बांधी जा सकती है। इस दौरान हल्दी का तिलक लगाएं।

मीन राशि
अगर आपकी भाई की राशि मीन है तो उसे सुनहले पीले रंग की राखी बांधे। इस दौरान हल्दी का तिलक लगाना भी शुभ फलदायी होता है।

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