महालक्ष्मी व्रत 2025 में कब से शुरू होंगे, जानें शुभ मुहूर्त और कथा
सावन के पवित्र मास के बाद भाद्रपद मास की शुक्ल अष्टमी से महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ होता है। यह व्रत अनुष्ठान सोलह दिनों तक चलता है। इस वर्ष यह अनुष्ठान दिनांक रविवार, 31 अगस्त 2025 | इस बार महालक्ष्मी व्रत 2025 के प्रारंभ और उद्यापन का शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार होगा
महालक्ष्मी व्रत 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त
महालक्ष्मी व्रत | रविवार, अगस्त 31, 2025 को |
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व्रत प्रारंभ | रविवार, अगस्त 31, 2025 को |
व्रत पूर्ण | रविवार, सितम्बर 14, 2025 को |
अष्टमी तिथि प्रारम्भ | अगस्त 30, 2025 को 10:46 पी एम बजे |
अष्टमी तिथि समाप्त | सितम्बर 01, 2025 को 12:57 ए एम बजे |
महालक्ष्मी व्रत का महत्व, क्यों मनाया जाता है यह अनुष्ठान
जैसा कि इस व्रत के नाम से ही स्पष्ट है। यह व्रत देवी लक्ष्मी के महालक्ष्मी रूप के लिए किया जाता है। महालक्ष्मी व्रत में अन्न ग्रहण करना निषेध है और इस सोलह दिन के विधि पूर्वक किये गए व्रत के बाद सोलहवें दिन इस व्रत का उद्यापन करके समापन किया जाता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। साथ ही घर-परिवार की सब समस्याएं दूर होती है और माँ लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।
महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत गणेशोत्सव के पांचवे दिन अष्टमी से होती है। इस दिन को राधाष्टमी या राधा के जन्मदिवस के रूप में भी जान जाता है। महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष से शुरू होकर आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी तक चलता है। महालक्ष्मी व्रत की महत्ता इसीलिए भी है क्योंकि इसे राधाष्टमी और महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ अष्टमी के साथ-साथ दूर्वा अष्टमी के नाम से भी मनाया जाता है और पवित्र दूर्वा घास की पूजा की जाती है।
महालक्ष्मी व्रत कथा
इस कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक गांव में एक निर्धन व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहता था। वह भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था और उनकी नियमित आराधना करता था। उसने अपने घर में दरिद्रता को दूर करने के लिए भगवान विष्णु की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर श्री विष्णु ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा। तब उस व्यक्ति ने वरदान के रूप में माँगा कि देवी लक्ष्मी उसके घर में निवास करें। तब भगवान विष्णु ने उसकी मनोकामना के फलस्वरूप बताया कि यदि तुम लक्ष्मी को अपने घर में लाना चाहते हो तो तुम्हारे गांव के मंदिर में एक स्त्री प्रातः काल उपले थेपने आती है। वह स्त्री असल में माँ लक्ष्मी ही है। जाकर उनसे आग्रह करो की वे तुम्हारे घर में निवास करें। जब देवी लक्ष्मी तुम्हारे घर में निवास करेंगी तब तुम्हारा घर सभी सुख- समृद्धि से संपन्न होगा। इतना कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। उस व्यक्ति ने अगले दिन ऐसा ही किया। जब स्त्री रुपी लक्ष्मी मंदिर में उपले थेपने आई तब वह ने उनसे अपने घर पर निवास करने का आग्रह किया। स्त्री के वेश में माता लक्ष्मी को यह बात समझते देर नहीं लगी की यह उपाय जरूर भगवान विष्णु ने दिया गया है। उन्होंने व्यक्ति को कहा की यदि तुम चाहते हो की मैं तुम्हारे घर में निवास करुँ तो तुम्हें विधिपूर्वक महालक्ष्मी व्रत करना होगा। 16 दिनों तक व्रत करने और 16वें दिन रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी और मैं तुम्हारे घर में निवास अवश्य करूंगी। उस व्यक्ति ने देवी लक्ष्मी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और उत्तर दिशा की ओर मुख करके देवी का आह्वान किया। ततपश्चात देवी लक्ष्मी अपने वचनानुसार ब्राह्मण के घर में वास करने लगी और उसका घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। मान्यता है कि इसी समय से महालक्ष्मी व्रत की परंपरा शुरू हुई।
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महालक्ष्मी व्रत एवं पूजा विधि
- इस व्रत को प्रारंभ करने के लिए भादो या भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को स्नान करके दो सकोरे (सूप) में ज्वारे (गेहूं) बोये जाते हैं। प्रतिदिन 16 दिनों तक इन्हें जल से सींचा जाता है।
- ज्वारे बोने के दिन ही सफ़ेद कच्चे धागे से 16 तार का एक डोरा बनाएं। डोरे की लंबाई इतनी होती है कि इसे आसानी से गले में पहन सकें।
- इस डोरे में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर 16 गठानें लगाएं तथा हल्दी से पीला करके पूजा के स्थान पर रख दें तथा प्रतिदिन 16 दूब और 16 गेहूं चढ़ाकर पूजा करें।
- स्नान के बाद पूर्ण श्रृंगार करें।
- अखंड ज्योति का एक और दीपक अलग से जलाकर रखें।
- मिट्टी का एक हाथी बनाएं या कुम्हार से बनवा लें जिस पर महालक्ष्मी जी की मूर्ति बैठी हो।
- सायंकाल जिस स्थान पर पूजन करना हो, उसे गोबर से लीपकर पवित्र करें। रंगोली बनाकर बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर हाथी को रखें।
- तांबे का एक कलश जल से भरकर पाट पर रखें तथा महालक्ष्मी की मूर्ति की स्थापना करें। इस मूर्ति के पास महालक्ष्मी श्री यंत्र रखें।
- एक थाली में पूजन की सामग्री (रोली, गुलाल, अबीर, अक्षत, लाल धागा, मेहंदी, हल्दी, टीकी, लौंग, इलायची, खारक, बादाम, पान, गोल सुपारी, बिछिया, वस्त्र, फूल, दूब, अगरबत्ती, कपूर, इत्र, फल-फूल, पंचामृत, मावे का प्रसाद आदि) रखें।
- केल के पत्तों से झांकी बनाएं। संभव हो सके तो कमल के फूल भी चढ़ाएं।
- पाट पर 16 तार वाला डोरा एवं ज्वारे रखें। विधिपूर्वक महालक्ष्मीजी का पूजा करें तथा कथा सुनें एवं आरती करें। इसके बाद डोरे को गले में पहनें अथवा भुजा से बांधें।
- अंतिम अष्टमी के दिन प्रात:काल स्नान आदि से निवृत होकर महालक्ष्मी व्रत का विधिपूर्व उद्यापन करें।
महालक्ष्मी व्रत 2025 उद्यापन विधि
- पहले दिन हाथ में बांधे गए 16 गांठ वाले रक्षासूत्र को खोलकर नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें।
- पूजा मुहूर्त में महालक्ष्मी की प्रतिमा की स्थापना करें और उनकी अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल, फल, मिठाई, चन्दन, पत्र, माला, सफ़ेद कमल या कोई भी कमल का फूल और कमलगट्टा अर्पित कर पूजा करें।
- फिर लक्ष्मी जी को सफेद बर्फी या किशमिश का भोग लगाएं।
- महालक्ष्मी व्रत की कथा सुनें।
- श्री लक्ष्मी महामंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद… ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥” मंत्र के जाप के बाद महालक्ष्मी की आरती करें।
- उसके बाद अपनी मनोकामना प्रकट करके प्रसाद परिजनों में वितरित कर दें।
- अंत में विधिपूर्वक माता महालक्ष्मी की प्रतिमा का विसर्जन कर व्रत को पूर्ण करें।
महालक्ष्मी व्रत के समय, नमक वाला भोजन और मांसाहार खाने से बचना चाहिए। आमतौर पर यह अनुष्ठान महाराष्ट्रियन परिवारों द्वारा किया जाता है, लेकिन महालक्ष्मी व्रत को पूरी श्रद्धा से संपन्न करने से देवी महालक्ष्मी अपने सभी भक्तों को सुख और संपत्ति का आशीर्वाद देती है तथा उस घर परिवार में हमेशा खुशहाली और शांति बनी रहती है। हम आशा करते है, महालक्ष्मी व्रत 2025 आपके लिए शुभ हो।
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