वरलक्ष्मी व्रत का महत्व, तिथि और पूजा विधि समझिए

वरलक्ष्मी व्रत का महत्व, तिथि और पूजा विधि समझिए

हिंदू धर्म में कई व्रत को महत्वपूर्ण बताया गया है। इन व्रतों को रखने से आप देवी देवताओं को प्रसन्न कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। हमारी परंपराओं में जो फल पाने की इच्छा आप रखते हैं, उसी के आधार पर आपको उपवास करना होता है। इसके लिए पौराणिक कथाओं में कई उपवासों का उल्लेख हैं। आज हम ऐसे ही एक उपवास के बारे में बात करने वाले हैं, जिसे धन और समृद्धि पाने के लिए किया जाता है। इस व्रत को अष्टलक्ष्मी की पूजा के समान माना जाता है। इस व्रत को दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में काफी महत्वता दी गई है। इसे वरलक्ष्मी व्रत के नाम से जाना जाता है।

माता वरलक्ष्मी को महालक्ष्मी का अवतार माना गया है। इस व्रत को रखकर आप धन और एश्वर्य की देवी महालक्ष्मी को प्रसन्न कर मनवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं। महाराष्ट्र और दक्षिण भारत की महिलाएं इस उपवास को रखती है। साथ ही अगर इस उपवास को पति-पत्नी साथ मिलकर करते हैं, तो उसका कई गुना असर बढ़ जाता है। इससे घर की दरिद्रता खत्म हो जाती है, और अखंड लक्ष्मी की स्थापना होती है। साथ ही घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। वरलक्ष्मी व्रत श्रावण शुक्ल पक्ष के अंतिम शुक्रवार को मनाया जाता है। यह राखी और श्रावण पूर्णिमा से कुछ दिन पहले आता है।

वरलक्ष्मी व्रत तिथि और पूजा मुहूर्त

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देवी लक्ष्मी की पूजा करने के लिए सबसे सही समय उचित लग्न के दौरान होता है। ऐसा माना जाता है कि  यदि निश्चित लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाती है, तो माता लक्ष्मी दीर्घकालिक समृद्धि प्रदान करती है।

हमने एक दिन में चार पूजा का समय दिया है, जब निश्चित लग्न प्रबल होता है। वरलक्ष्मी पूजा के लिए कोई भी उपयुक्त समय चुना जा सकता है। हालांकि, शाम का समय जो प्रदोष के साथ आता है, देवी लक्ष्मी की पूजा करने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी वर-लक्ष्मी की पूजा करना अष्टलक्ष्मी यानी धन की आठ देवियों आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी की पूजा करने के सामान है। हालांकि उत्तर भारत के मुकाबले यह व्रत दक्षिण भारत में ज्यादा महत्वपूर्ण है। वरलक्ष्मी व्रत देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने और आशीर्वाद लेने के लिए सबसे उपयुक्त दिनों में से एक है।

वरलक्ष्मी व्रत के दिन माता लक्ष्मी की पूजा कराने के लिए यहां क्लिक करें….

वरलक्ष्मी व्रतसमय
वरलक्ष्मी व्रत 2025शुक्रवार, 08 अगस्त, 2025
सिंह लग्न पूजा मुहूर्त06:52 पूर्वाह्न से 08:51 पूर्वाह्न तक
अवधि01 घंटा 59 मिनट
वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्तदोपहर 12:52 बजे से 03:02 बजे तक
अवधि02 घंटे 10 मिनट
कुम्भ लग्न पूजा मुहूर्तशाम 07:06 बजे से रात 08:52 बजे तक
अवधि01 घंटा 46 मिनट
वृषभ लग्न पूजा मुहूर्त12:27 पूर्वाह्न से 02:31 पूर्वाह्न, 09 अगस्त
अवधि02 घंटे 04 मिनट

वरलक्ष्मी व्रत की कथा

वरलक्ष्मी व्रत की दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में कई सारी कथाएं प्रचलित हैं। इस व्रत को रखने के बाद इन कथाओं को सुना जाता है। इन्हीं में से एक कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती को इस कथा के बारे में बताया था। पौराणिक काल के मगध देश में एक कुंडी नामक शहर था। इस शहर में एक चारुमति नाम की महिला रहती थी। वह माता लक्ष्मी की बहुत बड़ी उपासक थी। वह अपने परिवार का जितना ख्याल रखती है, उससे कई गुना ज्यादा माता लक्ष्मी के प्रति श्रद्धा रखती थी। एक बार की बात है, जब वह रात के वक्त सो रही थी, तो माता लक्ष्मी ने उसके सपने में आकर इस व्रत के बारे में बताया। चारुमति जब सुबह उठी, तो उसने अपने आसपास की महिलाओं को भी इसके बारे में  बताया, और माता की शक्ति से अवगत कराया। इसके बाद चारुमति के कहने पर सभी महिलाओं ने उपवास रखा। चारुमति के कहे अनुसार महिलाओं ने माता लक्ष्मी की आराधना की। इसके बाद विधिवत रूप से पूजा अर्चना की। जैसे ही महिलाओं ने पूरे विधि विधान से अपना उपवास समाप्त किया, वैसे ही उनके शरीर सोने के गहनों से लद गए। उनका घर भी धन धान्य से भर गया। इसके बाद इस व्रत की महिमा फैलने लगी और बाकी महिलाएं भी माता लक्ष्मी की उपासना करने लगी। तभी से इस व्रत को वरलक्ष्मी के रूप में जाना जाता है।

वरलक्ष्मी व्रत की पूजा विधि

वरलक्ष्मी व्रत के दिन चौथे पहर में उठकर मां लक्ष्मी का मान लेकर दिन की शुरुआत करना चाहिए। सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ सफाई कर स्नान करना चाहिए। फिर गंगाजल का घर में छिड़काव करना चाहिए, अगर गंगाजल उपलब्ध न हो, तो शुद्ध ताजे जल का छिड़काव कर सकते हैं। पूजा के लिए वरलक्ष्मी जी की प्रतिमा, फूल माला, कुमकुम, हल्दी, चंदन पाउडर, विभूति, शीशा, कंघी, आम पत्र, फूल, पान के पत्ते, पंचामृत, दही, केला, दूध, पानी, अगरबत्ती, मोली, धूप, कपूर, प्रसाद, तेल दीपक, अक्षत का इंतजाम कर लें। ध्यान रहें कि यह वस्तु नियमित उपयोग में लाने वाली चीजों में से नहीं होना चाहिए। इसके बाद मां वरलक्ष्मी के बाद व्रत का संकल्‍प लें। मां वरलक्ष्‍मी को नए वस्‍त्र पहना कर जेवर और कुमकुम से सजाएं। इसके बाद एक पाटे पर गणेश जी की मूर्ति के साथ मां लक्ष्‍मी की मूर्ति को पूर्व दिशा में स्‍थापित करें और पूजन स्‍थल पर थोड़ा सा सिंदूर फैलाएं। एक कलश में जल भरकर उसे तांदूल पर रख दें और इसके बाद कलश के चारों तरफ चंदन लगाएं। इसके बाद माता की आरती उतारें।

इस दिन आप भगवान श्री गणेश की पूजा भी करवा सकते हैं। पूजा कराने के लिए यहां क्लिक करें….

कौन है माता वरलक्ष्मी

पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी वरलक्ष्मी, खुद देवी लक्ष्मी का ही रूप है। बताया जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान माता वरलक्ष्मी दुधिया महासागर से प्रकट हुई थी, जिसे क्षीर सागर भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी वजह से उनका रंग एक दम उजला है, और वह उजले वस्त्र ही धारण करती है। माना जाता है कि वरलक्ष्मी अपने उपासकों की हर मनोकामना (वर) को पूरी करती है, साथ ही यह मां लक्ष्मी का अवतार है। इसीलिए इन्हें वरलक्ष्मी के रूप में जाना जाता है।

व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

  • वरलक्ष्मी व्रत में श्री सूक्त पाठ करना बेहद फलदायी माना जाता है। 
  • इस व्रत के दौरान माता वरलक्ष्मी की प्रतिमा के समक्ष 24 घंटे घीं का दीपक जलाकर रखें, इससे मां वरलक्ष्मी अधिक प्रसन्न होगी।
  • इस दिन श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ भी करना चाहिए।
  • संतान प्राप्ति की चाह रखने वाले दंपति को इस दिन गोपाल और हरिवंश पुराण की पूजा करनी चाहिए। 

निष्कर्ष

मां वरलक्ष्मी का व्रत अधिकतर भारत के दक्षिणी राज्यों समेत महाराष्ट्र में किया जाता है। वरलक्ष्मी व्रत में विवाहित महिलाएं अपने पति, बच्चों और परिवार से अन्य सदस्यों की मंगलकामना के लिए दिनभर उपवास रहकर मां लक्ष्मी की पूजा आराधना करती हैं। वहीं, अगर पुरुष भी इस व्रत को करता है, तो इसका कई गुना लाभ दांपति को मिलता है। इस साल यह व्रत शुक्रवार, 08 अगस्त, 2025 को है।