विश्वेश्वर व्रत 2024: जानिए कथा, तिथि और इसका महत्व

विश्वेश्वर व्रत 2024: जानिए कथा, तिथि और इसका महत्व

हमारे पुराणों में कई सारे व्रत उल्लेखित किए गए हैं, जिसमें विश्वेश्वर व्रत की भी बहुत महिमा बताई गई है। आपको बता दें कि त्रिनेत्र भगवान शिव को ही विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है। विश्वेश्वर व्रत का यह शुभ दिन प्रदोष व्रत के दिन ही पड़ता है। इस साल 2024 में भगवान शिव की उपासना का यह पवित्र दिवस 14 नवंबर 2024, गुरुवार को है। भगवान भोलेनाथ को विश्वनाथ नाम से भी जाना जाता है। यही कारण है कि काशी में स्थित ज्योतिर्लिंग को काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह उपवास कार्तिक पूर्णिमा से पहले भीष्म पंचक के तीसरे दिन किया जाता है।


विश्वेश्वर व्रत का महत्व

विश्वेश्वर व्रत की महिमा भी काफी निराली है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है, इसलिए कहा जाता है कि इस व्रत का पालन कर भगवान शिव से जो भी वरदान मांगा जाता है, वह आपको मिलता है। भगवान शिव के इस स्वरूप को समर्पित एक मंदिर कर्नाटक में है, जिसे विश्वेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा येलुरु श्री विश्वेश्वर मंदिर भी प्रसिद्ध है, जिसे महाथोबारा येलुरु श्री विश्वेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित यह व्रत करने से आपके जीवन में सुख-समृद्धि और आनंद की प्राप्ति होती है। विश्वेश्वर व्रत पर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आप रुद्राभिषेक जरूर करवाएं। यजुर्वेदिय पद्धति से रुद्राभिषेक करवाने के लिए आप यहां क्लिक करें।


कब है विश्वेश्वर व्रत

भगवान भोलनाथ की उपासना का यह दिन कार्तिक पूर्णिमा से पहले भीष्म पंचक के पांच दिन के त्यौहार में तीसरे दिन इस व्रत को किया जाता है। साल 2024 में यह व्रत 14 नवंबर 2024, गुरुवार को है। इस दिन आप अपने भगवान शिव का रूद्राभिषेक भी करा सकते हैं।


विश्वेश्वर व्रत कथा

विश्वेश्वर व्रत को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है, इस कथा के अनुसार कुथार राजवंश का कुंडा नाम का राजा था। उसने ऋषि भार्गव को अपने यहां पधारने का न्यौता दिया, लेकिन ऋषि भार्गव यह कहते हुए मना कर दिया कि आपके राज्य में मंदिर और पवित्र नदियां नहीं है। जहां कार्तिक पूर्णिमा से पहले भीष्म पंचक के तीसरे दिन पूजा की जा सकें।

राजा कुंडा को इस बात की खबर लगते ही उन्होंने अपना राज्य छोड़ दिया, और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गंगा तट पर चले। वहां उन्होंने एक यज्ञ किया, जिससे भगवान शिव काफी प्रसन्न हो गए। इसके बाद राजा कुंडा ने भगवान शिव से अपने राज्य में रहने का वरदान मांग लिया। भगवान शिव भी राजा कुंडा के राज्य में रहने के लिए सहमत हो गए। लेकिन, जब भगवान शिव वहां एक कंद के पेड़ में रहने लगे। वहां एक आदिवासी महिला अपने बेटे की तलाश कर रही है, जो जंगल में खो गया था। उस महिला ने पेड़ के पास जाकर कंद काटने के लिए पेड़ पर अपनी तलवार मारी, उस पेड़ से खून निकलने लगा। खून को देखकर महिला को लगा कि वह कंद नहीं बल्कि उसका बेटा है। यह देखर वह अपने बेटे का नाम ‘येलु’ पुकारते हुए जोर-जोर से रोने लगी। तभी भगवान शिव वहां पर लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। उस महिला की तलवार का वह निशान आज भी लिंग उस येलुरु श्री विश्वेश्वर मंदिर में देखा जा सकता है। तभी से इस दिवस को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कर्नाटक का येलुरु श्री विश्वेश्वर मंदिर उसी जगह पर बना हुआ है।

विश्वेश्वर व्रत की पूजा को दौरान आपको भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना करनी चाहिए। अगर आप भगवान शिव को प्रसन्न कर पाते हैं, तो आपके जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। आप इस मौके पर भगवान शिव का रूद्राभिषेक भी करवा सकते हैं। रूद्राभिषेक कराने के लिए यहां क्लिक करें।

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