दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) पूजा: मां को प्रसन्न करने का है सहज तरीका

हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ, पुराण, साहित्य आदि बताते हैं कि जब भी सत्य और असत्य, अच्छाई और बुराई, सही और गलत के बीच युद्ध हुआ है तो हमेशा जीत सत्य की हुई है। यह न केवल मनुष्यों बल्कि देवताओं के साथ भी लागू होता है। देवताओं ने भी कई लड़ाई और युद्धों में हिस्सा लिया है, ये युद्ध हमेशा साबित करते नजर आए हैं कि अच्छाई हमेशा बुराई पर जीत हासिल करती है। झूठ पर सच और बुरे विचारों पर देवत्व विचारधारा को जीत मिलती है। हिंदू धर्मग्रंथों, वेदों और पुराणों में विस्तृत कई प्रसंग हैं जो देवताओं और देवी की वीरता की गाथा और ब्रह्मांड को राक्षसों से सुरक्षित रखने की उनकी दिव्य इच्छा को प्रकट करते हैं। वे बताते हैं कि किस तरह देवों के साथ ही शक्ति स्वरूपा देवी ने संसार की रक्षा की है। कैसे मां शक्ति ने सभी को संरक्षण किया है, इसके लिए बड़े से बड़ा त्याग भी दिया है। 

दुर्गा सप्तशती में संस्कृत भाषा में लिखित श्लोक हैं। इनका गान माता यानी देवी स्वरूपा शक्ति की यशगाथा के गुणगान के लिए किया जाता है। देवी शक्ति की जीत का जश्न मनाने के लिए इनका स्मरण और उच्चारण किया जाता है, जिसे दुर्गा मां या मां चंडी के नाम से जाना जाता है। और जब भी किसी भी आकार या संख्या के राक्षसों द्वारा कोई गड़बड़ी पैदा की जाएगी, कोई गलत कृत्य किया जाएगा, बुरे कार्य किए जाएंगे तो वह वापस लड़ने के लिए प्रकट होंगी। उनका नाश करेंगी। फिर यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहता है, तब तक जारी रहता है कि मां शक्ति बुरी ताकतों का नाश नहीं कर देती हैं, उनका अंत नहीं कर देती हैं। देवी शक्ति तब तक हार नहीं मानती जब तक एक-एक दानव का वध नहीं हो जाता। हमारा यह लेख भी माता शक्ति, मां दुर्गा को समर्पित है। मां का चेहरा तेज से भरपूर होता है, ओज पूर्ण उनका मुख, उनका ललाट, उनका दिव्य स्वरूप भक्तों व सभी अनुसरण करने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता है। भक्त देवी से मोहित हो जाते हैं, उनके स्वरूप से प्रभावित हो जाते हैं, अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं। भक्त देवी के साहस प्रशंसा करते थकते नहीं है। उनके साहस, उनकी वीरता का गुणगान हर तरफ होता है। मां शक्ति के गुणगान का सबसे अच्छा जरिया है दुर्गा सप्तशती। इसके जरिए न केवल मां का गुणगान किया जा सकता है, बल्कि मां के ममतामयी और दानव संहारिणी स्वरूप को समझा जा सकता है। यहां हम पूर्ण दुर्गा सप्तशती से जुड़े विभिन्न पहलुओं को बताएंगे। हम दुर्गा सप्तशती के लाभों और सही दुर्गा सप्तशती विधि और पूजा का पालन करने के महत्व को भी यहां लेख के जरिए बताएंगे।  


श्री दुर्गा सप्तशती - दानवों पर माता रानी की विजय की अनोखी गाथा

संस्कृत में दुर्गा सप्तशती में माता शक्ति की वीरता और साहस की गाथाएं निहित हैं। इसमें निहित है कि किस तरह माता दुर्गा ने भयानक और घातक युद्ध में राक्षसों पर विजय हासिल की, किस तरह  असुरों का नाश किया। इस पवित्र हिंदू धर्म के पुस्तक को देवी महात्म्यम् या चंडी पाठ के रूप में भी जाना जाता है। ऋषि वेद व्यास द्वारा लिखित, संस्कृत भाषा में पूर्ण दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का एक हिस्सा है, जिसकी रचना 400 सीई और 600 सीई के बीच हुई थी।

दुर्गा सप्तशती में देवी दुर्गा की सर्वोच्च शक्ति की प्रशंसा करने वाले लगभग 700 जाप किए गए हैं। इन श्लोकों को 13 अध्यायों में विभाजित किया गया है। हर अध्याय में मां दुर्गा के एक नए अवतार के बारे में बताया गया है, उनकी अभिव्यक्ति का उत्सव मनाया जाता है। दुर्गा सप्तशती के इन सभी अध्यायों में घातक राक्षसों के नाम और शक्तिशाली देवी के उनके साथ हुए युद्ध का उल्लेख किया गया है। कई भक्त उन्हें इस ब्रह्मांड को बनाने वाली माता के रूप में भी पूजते हैं। कई उपासक देवी अम्बा या जगदंबिका का आह्वान करने के लिए नवरात्रि के नौ दिनों में संस्कृत में पवित्र श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं।


दुर्गा सप्तशती विधि: हर अध्याय एक यात्रा के समान

हिंदू धर्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस धर्म के हर ग्रंथ को पढऩे का अपना एक खास तरीका होता है। एक खास विधि का अनुसरण करके ही हर धर्म ग्रंथ में लिखे गए मंत्रों का जाप किया जा सकता है। जिस तरह प्रत्येक पवित्र ग्रंथ को पढऩे का एक निश्चित तरीका होता है, उसी तरह दुर्गा सप्तशती की पूजा विधि अधिकतम सकारात्मक प्रभाव के लिए पवित्र पाठ को पढ़ते समय पालन की जाने वाली प्रक्रिया का अनुसरण करना जरूरी है। पूर्ण दुर्गा सप्तशती का संस्कृत में पाठ करने के दो तरीके हैं। पहला तरीका त्रयंगम है। इसमें पाठक को नवक्षरी मंत्र के साथ देवी कवचम, अर्गला स्तोत्रम और देवी कीलकम क्रम में तीन प्रार्थनाएं पढऩी होती हैं। इनके पूरा होने के बाद, पाठक को श्री दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों को पढऩा और पाठ करना होता है।

दूसरा तरीका नवांगम है। इस तरीके में जहां भक्त देवी न्यासा, देवी आवाहन, देवी नमामि, अर्गली स्तोत्रम, कीलका स्तोत्रम, देवी हृदय, ढाला, देवी ध्यान और देवी कवच के नाम पर नौ प्रार्थनाएं पढ़ता है, इसके बाद दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय हैं। .

इसके 1 से 10 तक के अध्याय राक्षसों और देवी शक्ति के बीच युद्ध के बारे में विस्तार से बताते हैं, जबकि अध्याय 11 से 13 तक देवी मां को गुणगान और उनकी पूजा करने के सकारात्मक आशीर्वाद, लाभ और फल के बारे में हैं। दुर्गा सप्तशती का अध्याय 1 शैतानों मधु और कैटभ के बीच लड़ाई का एक विस्तार से वर्णन है। अध्याय 2, 3 और 4 में देवी दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच युद्ध का वर्णन है। महिषासुर जैसे खतरनाक असुर की मौत के बाद मां शक्ति को महिषासुरमर्दिनी नाम दिया गया था।

श्री दुर्गा सप्तशती के 5वें और 6वें अध्याय में  धूम्रलोचन राक्षस के वध के बारे में बताया गया है। अध्याय 7 मां काली द्वारा असुर भाइयों चंड मुंड के संहार के बारे में है। 8वें अध्याय में बताया गया है कि कैसे मां काली ने राक्षस रक्तबीज का वध किया। किस तरह रक्तबीज के रक्त की बूंद को धरती पर गिरने से पूर्व ही चाटकर राक्षण की शक्तियों का अंत कर दिया। अंबा माता और दुष्ट भाइयों शुंभ और निशुंभ के बीच का युद्ध, माता रानी की शक्तियों को प्रकट करने वाली अंतिम कहानी है, जिसका वर्णन अध्याय 9 और 10 में किया गया है।

इसका अध्याय 11 मां नारायणी की स्तुति करता है, अध्याय 12 फल और लाभों के बारे में है और अध्याय 13 अंतिम अध्याय है। अंतिम अध्याय में बताया गया है कि किस तरह माता शक्ति ने दो व्यापारियों को आशीर्वाद दिया। श्री दुर्गा सप्तशती का समापन क्षमा यज्ञ या देवी अपराध क्षमा स्तोत्रम के साथ होता है।


दुर्गा सप्तशती का महत्व और लाभ

इस लेख के पिछले भाग में हमने मां शक्ति और दानवों के बीच युद्ध के बारे में उल्लेख किया है। हमने बताया है कि किस तरह देवी ने देवताओं की रक्षा करने के लिए राक्षसों को संहार किया है।

वास्तविक जीवन में हम ऐसे कई राक्षसों और बुराइयों का सामना करते हैं जैसे लालच, घमंड, वासना, क्रोध, बुरी महत्वाकांक्षाएं और अन्य शामिल होते हैं। संस्कृत में श्री दुर्गा सप्तशती के बाद आने वाले हर अध्याय के साथ भक्त अपने भीतर रहने वाले शैतान से लड़ सकता है। यह पवित्र दुर्गा सप्तशती का मुख्य महत्व है।

पहले दो राक्षस मधु और कैटभ थे, जिसका अर्थ है कि हमारे जीवन में जितने भी गलत और कड़वे अनुभव हैं। इसका तात्पर्य है कि जीवन में हमारे आस पास अत्यधिक मिठास या कड़वाहट होती है, हमें उससे प्रभावित नहीं होना चाहिए। उससे प्रभावित रहना ही हमारे लिए सबसे बड़ा कर्म साबित हो सकता है। इसके बाद दूसरा राक्षस था महिषासुर, जो देवी के प्रति वासना और क्रोध दिखाने के लिए जाना जाता है। महिषासुर की वासना, गलत व्यवहार और क्रोध माता रानी को नाराज करने का कारण बना और इसके परिणामस्वरूप उनका अंत हुआ। इससे पता चलता है कि हमें अपनी वासना और क्रोध पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। जीवन में इन पर काबू व नियंत्रण रखकर ही हम जीवन में सफलता हासिल कर सकते हैं।  

ध्रुमलोचन का अर्थ है कि हमारी आंखें हमारे जीवन के लिए बुरी चीजों को निष्कासित करने की क्षमता रखती हैं। चंड मुंड दो ऐसे भाई थे, जिनके लिए हिंसा कोई बड़ी बात नहीं थी। उनका संहार हमें यह बताता है कि हमें आत्म संयम का अभ्यास करना चाहिए। रक्तबीज दानव ऐसा राक्षस था जिसके रक्त की बूंद उसके जैसे कई गुणा दानवों को पैदा कर देती थी। यह एक इंसान की महत्वकांक्षाओं का प्रतीक है, जिस तरह से हमारे मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती है, एक खत्म होने के साथ ही दूसरी जन्म ले लेती है। यह उन इच्छाओं को दर्शाता है जो हमारे पास हैं और जो कभी समाप्त नहीं होती हैं। शुंभ निशुंभ अच्छे और बुरे को दर्शाता है और हमें बताता है कि अनुभवों को सुखद या अप्रिय में विभाजित न करें। वे सभी सीखने के उपकरण हैं।

दुर्गा सप्तशती यह बताती है कि माता का स्मरण हमेशा सफलता की राह पर आगे ले जाता है। मार्ग प्रशस्त करता है। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ शुद्ध मन से पढऩे वाले उपासकों को लाभान्वित करता है।

  • यह आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर आगे बढ़ाता है, यह सारी परेशानियां दूर करता है।
  • भक्त को देवी दुर्गा द्वारा अपार खुशी और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
  • यह जीवन में आपदाओं और अन्य समस्याओं से बचाता है।
  • इसे अशुभ ग्रहों की ऊर्जा को नकारने के लिए भी पढ़ा जाता है। यह गलत ऊर्जा को कम करने का काम करता है।
  • पाठक गरीबी और अस्वस्थता से दूर रहता है। सेहत को मजबूत करता है।
  • इसके पाठ से खाने, अन्न धन की कमी नहीं होती है, बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।

दुर्गा सप्तशती यंत्र - अंत में...

कोई भी व्यक्ति दुर्गा सप्तशती पूजा ऑनलाइन प्राप्त कर सकता है और विस्तृत लाभों के लिए दुर्गा सप्तशती यंत्र भी प्राप्त कर सकता है। कोई भी दुर्गा सप्तशती को मुफ्त में ऑनलाइन भी पढ़ सकता है और माता रानी का आह्वान कर सकता है। अपने दिल और दिमाग के अंदर रहने वाले सभी राक्षसों को मारकर मां दुर्गा को खुश करना और अपने आप को धन्य महसूस करना बहुत आसान है। सोमवार से रविवार तक… और खासकर नवरात्रि के दौरान किसी भी दिन बिना डरे इसका पाठ करें।